लोकतन्त्र का चीरहरण
खुले खजाने लुट रही , लोकतन्त्र की लाज ;
खरबों की संपत्ति है , स्विस बैंक में आज.
स्विस बैंक में आज , वही जनतन्त्र चलाते;
आम आदमी को महँगाई से मरवाते.
कहें 'क्रान्त' उस प्रजातन्त्र के हैं क्या माने;
जनता का धन लूटा जाये खुले खजाने.
27 में लिख गये , बिस्मिल जी यह बात;
आज़ादी यदि मिल गयी, हमको रातों- रात .
हमको रातों - रात , राज ऐसा आयेगा;
जिसमें केवल पूँजीवाद पनप पायेगा.
कहें 'क्रान्त' फिररोज पिसेगी जनता इसमें;
कहें 'क्रान्त' फिररोज पिसेगी जनता इसमें;
बिस्मिल जी यह बात लिख गये 27 में.
साँप - नेवला - मोर हैं , एक साथ एकत्र;
लोकतन्त्र को कर रहे,मिलकर ये अपवित्र.
मिलकर ये अपवित्र, रातको मिलकर खाते;
दिन में हमको हाथी जैसे दाँत दिखाते.
कहें 'क्रान्त' कब टूटेगी यह स्वर्ण - श्रंखला;
और डसेंगे कब तक हमको साँप - नेवला?