Wednesday, May 14, 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं

अमर शहीद पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' की उर्दू गज़ल
 
 "Kranti Geetanjali" written by Pt Ram Prasad Bismil was banned by the British Govt on 10th of December 1930. I got it from National Archives and edited it. It was published in 2006 by Praveen Prakashan 4760-61, 23, Ansari Road, Darya Ganj, New Delhi 110002. What Bismil had written about 90 years back is going to be true now in free India under the leadership of Narendra Modi
 
मादरे-हिन्द गमगीन न हो अच्छे दिन आने वाले हैं
आज़ादी का पैगाम तुझे हम जल्द सुनाने वाले हैं
 
माँ तुझको जिन जल्लादों ने दी है तकलीफ़ जईफ़ी में
मायूस न हो मगरूरों को हम मजा चखाने वाले हैं
 
कमजोर हैं औ' मुफ़्लिस हैं हम गो कुंजे-कफ़स में बेबस हैं 
बेकस हैं लाख मगर माता हम आफ़त के पर्काले हैं 
 
हिन्दू औ' मुसलमाँ मिलकर के जो चाहें सो कर सकते हैं 
अय चर्खे-कुहन हुशियार हो तू पुरजोर हमारे नाले हैं 
 
मेरी रूह को करना क़ैदे-कफ़स इन्कास से बाहर है उनके 
आज़ाद है अपना दिल शैदा गो लाख जुबां पे ताले हैं 
 
मग्लूब हैं जो होंगे ग़ालिब महकूम हैं जो होंगे हाकिम 
कब एक-सा दौर रहा किसका कुदरत के तौर निराले हैं 
 
आज़ादी के दीवानों ने वह मन्त्र चलाया है 'बिस्मिल'
लरज़ा है जिससे अर्शे-समाँ सरकार को जान के लाले हैं  
 
 
नोट: आप इस कविता  की स्कैण्ड कापी  https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10203134595419607&set=a.4542436752833.234393.1048633668&type=1&theater इस लिंक पर भी देख सकते हैं .

शब्दार्थ संकेत: जईफ़ी=बृद्धावस्था, मगरूरों =घमण्डियों, मुफ़लिस=कंगाल, कुंजे-कफ़स=क़ैदखाने, परकाले=चिंगारी, चर्खे-कुहन=कालचक्र,नाले=इरादे, क़ैदे-कफ़स=हथकड़ी-बेड़ियों में, इन्कास=बस
मग्लूब=निर्धन, ग़ालिब=शक्तिशाली, महकूम=नौकर/दास, हाकिम=अफसर,लर्ज़ा=आन्दोलित, अर्शे-समां=सारा वातावरण 

2 comments:

KRANT M.L.Verma said...

मित्रो! दुःख तो इस बात का है कि बिस्मिल की रचनाओं के साथ लोगों ने हमेशा से ही अन्याय किया। स्वयं रज्जू भैया ने मेरी कृति सरफ़रोशी की तमन्ना के आशीर्वचन में यह लिखा है कि रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएँ प्रायः अन्य लोगों के नाम से छापी जाती रहीं और किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। क्रान्त जी ने इस कार्य को सम्पन्न करने का बीड़ा उठाया इसके लिए उन्हें सब प्रकार की शुभ कामनाएँ मैं अपनी ओर से देता हूँ।
प्रसून जोशी को बीजेपी के लिए यह गीत लिखते समय सच्चे मन से यह तथ्य उजागर कर देना चाहिए था कि यह विज्ञापन गीत उन्होंने बिस्मिल की कविता से भाव उधार लेकर लिखा है।

KRANT M.L.Verma said...

जब बंकिम चन्द्र चटर्जी ने आनन्द मठ उपन्यास में वन्दे मातरम् गीत को लिखा था तब उनके मित्रों ने उनकी हँसी उड़ायी थी। इस पर बंकिमदा ने जवाब दिया था कि देखना एक दिन यह वन्दे मातरम् मन्त्र बन जायेगा परन्तु मुझे अफसोस है कि वह दिन मैं देखने को जिन्दा नहीं रहूँगा।
बाद में वही हुआ वन्दे मातरम् क्रान्तिकारियों के लिए मन्त्र बन गया। ठीक यही बिस्मिलजी की क्रान्ति गीतांजलि में 1929 में प्रकाशित "अच्छे दिन आने वाले हैं" कविता के साथ हुआ। प्रकाशित होने के 85 वर्ष बाद 1914 में वही "हेडलाइन" नरेन्द्र मोदी के चुनाव अभियान में लोकप्रिय कविता बन गयी।
अब इसे इतिहासकार किस रूप में इस्तेमाल करते हैं मुझे नहीं मालूम परन्तु मैंने तथ्य आपके समक्ष रख दिए हैं।