Tuesday, December 25, 2012

Atal Bihari Vajpayee's Meri Ikyavan Kavitayen:Rhym-Review

Atalji speaking on 19-12-1996

अटलबिहारी वाजपेयी की काव्य-कृति

मेरी इक्यावन कविताएँ

की

काव्य-मीमांसा

समीक्षा गीत

डॉ. मदनलाल वर्मा 'क्रान्त'

१३ अक्टूबर १९९५ को नई दिल्ली के फिक्की सभागार में उपरोक्त कृति का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव ने किया था. इस कृति की काव्य-मीमांसा मैंने एक समीक्षा गीत के रूप में अपनी ही हस्तलिपि में लिखकर अटलजी को उनके निवास स्थान पर जाकर भेंट की थी. बाद में यह सुनील जोगी ने इसे अपनी पुस्तक राजनीति के शिखर: कवि अटलबिहारी वाजपेयी में प्रकाशित भी किया था. आज अटलजी के ८८ वें जन्म-दिन पर मैं इस समीक्षा गीत को यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ. इसमें उक्त कृति की कविताओं के "शीर्षकों" का प्रयोग करते हुए काव्य-मीमांसा करने की कोशिश की गयी है. समीक्षा गीत काव्यशास्त्र की सर्वाधिक नई विधा है जिसका हिन्दी जगत को स्वागत करना चाहिये.

काव्यपरक अनुभूति स्वरों में शामिल हैं तेइस कविताएँ,
कविता में संकल्प बोलता-"आओ! फिर से दिया जलाएँ."
"हरी दूब" पर "अवसर" जैसे हो पहचान निजत्व बोध की,
"गीत नहीं गाता हूँ" में वैराग्य-भावना स्वत्व-शोध की.

है तटस्थ अभिव्यक्ति व्यक्ति की "ना मैं चुप हूँ ना गाता हूँ,"
फिर भी कवि प्रयासरत हो कहता है-"गीत नया गाता हूँ."
है व्यक्तित्व परक दर्शन की शब्दमयी अभिव्यक्ति "ऊंचाई",
"कौरव कौन? कौन पाण्डव?" है राजनीति की यह सच्चाई.

जब "दरार पड़ गयी दूध में" फिर "अलगाव" कहाँ से जाये?
है "मन का सन्तोष" मनुजता पर ये मन कैसे समझाये?
नाम आपका "अटल" "झुक नहीं सकते" यह है अटल-प्रतिज्ञा,
"दूर कहीं रोता है कोई" लिये अकेलेपन की त्रिज्या.

"जीवन बीत गया" यह कोई चक्र नहीं यूँ ही रुक जाये,
जीवन है संघर्ष तभी "ठन गयी मौत से" यह बतलाये.
"राह कौन सी जाऊँ मैं" में यह कैसा भ्रम पाल लिया है?
यह तो एक महानगरी है फिर क्यों सोच-विचार किया है?

"हिरोशिमा की पीड़ा" में है शिव के महाप्रलय की क्रीड़ा,
"नये मील का पत्थर" कहता-पुन: उठाओ व्रत का बीड़ा.
न हो निराशा कभी "मोड़ पर","मनस्विता की गाँठें" खोलें;
"नई गाँठ लगती है" फिर भी यह चादर कबीर सी धो लें.

चक्रव्यूह में चक्षु न भटकें "यक्ष-प्रश्न" के समाधान हों,
निर्मलतामय "क्षमा-याचना" पूर्ण सभी स्वर मूर्तिमान हों.
"राष्ट्रीयता के स्वर" में हैं दसो दिशाओं की कविताएँ,
"स्वतन्त्रता ही की पुकार" है भारत माँ की अभिलाषाएँ.

"अमर आग है" प्रखर तत्व की "परिचय" में हिन्दू-निष्ठा है,
स्वाभिमान गौरव जतलाने "आज सिन्धु में ज्वार उठा है".
"जम्मू की पुकार" के पीछे कहता काश्मीर - हे ईश्वर!
ना जाने किस रोज बढ़ेंगे? "कोटि चरण इस ओर निरन्तर".

मगन "गगन में कब लहरेगा भगवा ध्वज?" यह पुन: हमारा,
"उनको याद करें" जिन सरफ़रोश वीरों ने हमें उबारा.
है गणतन्त्र अमर "सत्ता" के मद में चूर न हम हो जायें,
राष्ट्रीयता के स्वर में सन्देश दे रहीं दस कविताएँ.

देश भक्त जेलों में ठूँसे हुई "मातृपूजा प्रतिबन्धित",
"कण्ठ-कण्ठ में एक राग है" यह स्वर हुआ राष्ट्र में गुंजित.
अटल चुनौती ने ललकारा-"आये जिस-जिस में हिम्मत हो",
"एक बरस जब बीत गया" तो लगा कि जैसे सत्यागत हो.

जब "जीवन की साँझ ढली" तो लगा कि जैसे डगर कट गयी,
लौटी आश "पुन: चमकेगा दिनकर" काली-निशा छँट गयी.
"कदम मिलाकर चलना होगा" पुन: पड़ोसी से कहते हैं,
होते हैं समृद्ध वही जो मिलकर एक साथ रहते हैं.

अटल चुनौती के स्वर हैं ये सब की सभी आठ कविताएँ,
आओ! इनका दर्शन समझें अपने जीवन में अपनाएँ.
अपनों के सपनों का रोना "रोते-रोते रात सो गयी",
प्रकृति-पुरुष को पास "बुलाती तुम्हें मनाली" बात हो गयी.

मन का "अन्तर्द्वंद्व" न सुलझा ग्रन्थि सवालों की सुलझा ली,
"बबली-लौली" स्नेह-वर्तिका से मनती हर साल दिवाली.
"अपने ही मन से कुछ बोलें" जीवन का हर द्वार खुलेगा,
पिया! "मनाली मत जइयो" अन्धे-युग का धृतराष्ट्र मिलेगा.

"देखो! हम बढ़ते ही जाते" चरैवेति अपना चिन्तन है,
"जंग न होने देंगे" यह हम हिन्दू लोगों का दर्शन है.
जो हिंसा से दूर रहे वह सच्चे अर्थों में हिंदू है,
जो इस् ला को त माने उस मजहब की रग-रग में बू है.

"आओ! मर्दो नामर्द बनो" व्यंग्योक्ति शक्ति का नारा है,
यह "सपना टूट गया" तो फिर कलयुग में संघ सहारा है.
तेइस दस आठ और दस मिलकर हैं इक्यावन कविताएँ,
जीवन-दर्शन की द्योतक हैं- मेरी इक्यावन कविताएँ.

"मेरी इक्यावन कविताएँ" हैं अटलबिहारी का जीवन,
सच है "मनुष्य के भी ऊपर होता है उसका अपना मन".
तुम अपने मन के राजा हो मन का धन कहीं न खो जाये,
कितने ही ऊँचे उठो मगर अभिमान न रत्ती भर आये.

अपनेपन की सौगन्ध आपको 'क्रान्त' दे रहा बार-बार,
श्रद्धेय अटलजी! जीवन भर बस यूँ ही रहना निर्विकार.
  
 नोट:- अपनी प्रतिक्रिया अवश्य भेजें, हमें आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी. इसमें ऊपर जो चित्र दिया है वह अटल जी का उस समय का ऐतिहासिक चित्र है जब वे रामप्रसाद 'बिस्मिल' की पुण्य-तिथि पर नई दिल्ली में आयोजित पुस्तक-विमोचन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे. पृष्ठभूमि में लगा हुआ क्रान्तिकारी पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल' का चित्र कार्यक्रम के पश्चात् भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय में लगवा दिया गया था. उस समय नरेन्द्र मोदी जी केन्द्रीय कार्यालय में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में नियुक्त थे.



4 comments:

Madan Mohan Saxena said...

बहुत सटीक प्रस्तुति.वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी प्रभावी प्रस्तुति, रचना का सार्थक अवमूल्यन।

KRANT M.L.Verma said...

Dear Friends!
I have updated above post with the title lines of Atalji's poems in bold letters.
Moreover a historical photo of Atalji taken on the occasion of release of Bismil's books "Sarfaroshi Ki Tamanna" at Constitution Club New Delhi on 19-12-1996 has also been incorporated to renew the bygone days of his times.

Kaptan Rajput said...

Weldon Bhai Sahab Ji kya Sabdhon ka Chayan kiya h aapne ..... Tan Man mast ho gaya aapki rachana padhkar.............. Aati Uttam.