अथ श्री गान्धीजी कथा
कांग्रेस में गोखले, का सुन्दर व्यक्तित्व; देख गान्धी को लगा, उनमें सही गुरुत्व.
उनमें सही गुरुत्व, तत्व उनका पहचाना; गान्धी ने फिर बुना, देश में ताना-बाना.
कहें 'क्रान्त' अंग्रेज-भक्त, उस 'काग-रेस' में, मार ले गए बाजी,गान्धी कांग्रेस में.
हुई 'बीस' में त्रासदी, तिलक गए परलोक; कांग्रेस में छा गया, भारत-व्यापी शोक.
भारत-व्यापी शोक,लोक-निष्ठा में छाया; गान्धीजीने 'तिलक-फंड', तत्काल बनाया.
कहें 'क्रान्त' उस समय, चबन्नी-मात्र फ़ीस में; एक करोड़ राशि एकत्रित, हुई 'बीस' में.
कांग्रेस फिर हो गयी, रातों-रात रईस; 'गान्धी-बाबा' बन गये, कांग्रेस के 'ईश'.
कांग्रेस के ईश, शीश सब लोग झुकाए; 'मोतीलाल' पुत्र को लेकर, आगे आये.
कहें 'क्रान्त' गान्धीको, सौंपा पुत्र 'जवाहर';जनता में हो गयी लोकप्रिय, कांग्रेस फिर.
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