लहू देकर जिसे मुश्किल से हम आजाद कर पाये,
हमारे मुल्क का यह हाल! किन लोगों की साजिश है?
मित्रो! यह तो थी पूर्व जन्म की व्यथा अब इस जन्म
की सुनाऊँ तो कलेजा बाहर निकल कर मुँह में आ जायेगा.
खैर सुन लीजिये फिर जो मन में आये कीजिये आगे हम कुछ नहीं बोलेंगे क्योंकि मेडम बोलेंगी कि बोलता है.
खैर सुन लीजिये फिर जो मन में आये कीजिये आगे हम कुछ नहीं बोलेंगे क्योंकि मेडम बोलेंगी कि बोलता है.
सन १९४७ में आज़ादी मिली इसका दुष्प्रचार सरकारी खर्चे पर खूब किया गया इस गाने के साथ-"दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल साबरमती के सन्त! तूने कर दिया कमाल?"
पिछले कई महीनों से एक दूसरा सन्त एक लाख किलोमीटर की यात्रा करके कुछ कमाल दिखाने या यूँ समझो क्रान्ति का सिंहनाद करने के लिये मध्यप्रदेश से चलकर देश की राजधानी दिल्ली के हवाई अड्डे पर जैसे ही उतरा कि बापू के बन्दरों ने उसे वहीँ घेर लिया और कहने लगे कि हम तुम्हारी सब माँगें मान लेंगे बस इतना करो कि किसानों के बारे में सोचना और बोलना छोड़ दो वर्ना कहीं ये भड़क गये तो हमारा पुश्तैनी विकास खटाई में पड़ जायेगा. बेचारा सन्त असमंजस में पड़ गया कि क्या करें? मीडिया उसकी छवि ख़राब कराने में जुटा हुआ है.
हमारा कहना है कि "कांग्रेस हटाओ देश बचाओ" के एक सूत्री कार्यक्रम से ही इस देश का भला हो सकता है. पर इस सन्त के साथ कुछ सुविधा भोगी जुड़ गये हैं जो उन्हें बरगला रहे हैं. वे अपने दोनों हाथों में लड्डू रखकर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने की दौड़ में शामिल होना चाहते हैं पर उनके हाथ कुछ भी आने वाला नहीं.
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