मैं, एस०के०गुप्त, प्रो० वी०के० मल्होत्रा एवं श्री अटलबिहारी वाजपेयी |
नक्शा उस दिन सम्पूर्ण देश का बदलेगा जब युवा वर्ग ये चुनौतियाँ स्वीकारेगा
खाली बैठे-बैठे न व्यक्ति कुछ कर पाता जब तक उसमें संकल्प-भाव उत्पन्न न हो,
संकल्प-भाव तब तक उत्पन्न नहीं होता जब तक उसका मस्तिष्क शक्ति-सम्पन्न न हो.
मस्तिष्क शक्ति-सम्पन्न वहाँ कैसे होगा काया मनुष्य की जहाँ पूर्ण जर्जर होगी,
सभ्यता वहाँ कैसे जिन्दा रह पायेगी सम्पूर्ण जाति की जाति जहाँ बर्बर होगी.
यह वही देश है जहाँ शिवा ने जन्म लिया प्रणवीर प्रताप जहाँ जंगल में भटका था,
पिस्तौल-कलम का धनी शायरे-इन्कलाब बिस्मिल अंग्रेजों की आँखों में खटका था.
करके काकोरी-काण्ड समूचे शासन की चूलों को जड़ तक उसने ऐसा हिला दिया,
खुद खाक भले हो गया मगर बलि देकर के अंग्रेज-राज्य मिट्टी में उसने मिला दिया.
आज़ाद चन्द्रशेखर का लोहा मान गये थे बड़े-बड़े अंग्रेज सिपाही अधिकारी,
बेशक शरीर पर अनगिन कोड़े पड़े मगर था भगत सिंह जो बना गवाह न सरकारी.
किस मिट्टी के थे बने हुए वे कर्मवीर जो झुके नहीं जुल्मों के आगे टूट गये,
हम हैं जिनको ऐश्वर्य गुलाम बनाये है, है यही वजह जो हम सब पीछे छूट गये.
आज का युवक भोगों के पीछे अन्धा हो भागता जा रहा तेजी से मुँह बाये है,
अपनी संस्कृति को भुला विवश नादानी में वह नक़ल विदेशी लोगों की अपनाये है.
हो रहा देश में क्या इसका कुछ पता नहीं उसको अपने व्यापारों से अवकाश कहाँ?
जो जैसा चाहे जब-जब जहाँ-जहाँ चाहे वह करता जाये इसकी उसे तलाश कहाँ?
उसका है केवल एक काम आश्रय पाना चाहे वह सही गलत कैसे भी मिल पाये,
मतलब निकले तो गधा बाप बन सकता है बस किसी तरह से उल्लू सीधा हो जाये.
इस इतने बड़े राष्ट्र में नायक एक नहीं सब के सब अपनी ही छबि के उन्नायक हैं,
कवियों में विरले हैं जो सच कह पाते हैं वर्ना अधिकाँश विदूषक हैं या गायक हैं.
यदि हम चाहें यह राष्ट्र परम वैभव पाये तो संस्कार मय जन-जन को होना होगा,
अन्यथा राष्ट्र अब तक खोता ही आया है अपने गुरुत्व को आगे भी खोना होगा.
8 comments:
स्व-जागरुकता और मित्र-विमर्श के लिये आज़ से मैं आपकी हिंदी पोस्टें पढ़ा करूँगा.
मान्यवर ,
नमस्कार .
आपकी रचनाएँ साहित्य जगत की अनमोल निधि हैं .
मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें .
प्रिय प्रतुल व सौम्य संजय!
आप जैसे नौजवानों के लिये अमर शहीद अशफ़ाक उल्ला खान वारसी 'हसरत' की चार पंक्तियाँ दे रहा हूँ इन्हें मित्रों से साझा अवश्य करें.
"किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाये,ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना; मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें सिर्फ़ तुमसे हैं, जबां तुम हो लबे-बाम आ चुका है आफ़ताब अपना." आमीन!!!
Ek hi Dhun Jai JAi bharat...
Youth are awakening it's a good sign for India. Your poem is imparting a remarkable effect upon them. Keep this enthusiasm up. Sir!
मित्रो! एक बात मैं अक्सर सबसे कहता हूँ - "अपने लिये सभी जीते हैं, अपनी चिन्ता सभी करें; उनके लिये कौन जीता है, जो हम सबके लिये मरे?"
इस पर जरा गहराई से विचार कीजिये!
धन्यवाद!!
Krant Ji! Kindly change the two lines now. "Is bar desh ka asli nayak modi hai, baki sab apni chhaviyon ke unnayak hain."
Very very thanks!
नमस्कार,
आपकी रचना पहली बार पढ़ रहा हूँ, मातृ भक्ति ........ जय हो
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