देखें कौन आता है यह फर्ज़ बजा लाने को?
ईंट से ईंट बजा दी ये सुना था हमने ,
आज वह काम अयोध्या में हुआ दिखता है .
यह समन्दर है जो अपनी पे उतर आये तो ,
सारी दुनिया को ये औकात बता सकता है .
आज खतरा नहीं हमको है मुसलमानों से ,
घर में जयचन्द की औलादें बहुत ज्यादा हैं .
मेरा कहना है कि इन सबसे निपट लो पहले ,
कौम को अपनी मिटाने पे ये आमादा हैं .
हम तो लोहू की सियाही से ये सब लिखते हैं ,
ताकि सोया ये लहू जागे कसम खाने को .
हम किसी जन्म में थे 'चन्द' कभी थे 'बिस्मिल' ,
देखें कौन आता है यह फर्ज़ बजा लाने को ?
टिप्पणी : यह कविता मैंने अयोध्या काण्ड के बाद लिखी थी परन्तु परिस्थितियाँ अभी भी ज्यों की त्यों हैं.
ईंट से ईंट बजा दी ये सुना था हमने ,
आज वह काम अयोध्या में हुआ दिखता है .
यह समन्दर है जो अपनी पे उतर आये तो ,
सारी दुनिया को ये औकात बता सकता है .
आज खतरा नहीं हमको है मुसलमानों से ,
घर में जयचन्द की औलादें बहुत ज्यादा हैं .
मेरा कहना है कि इन सबसे निपट लो पहले ,
कौम को अपनी मिटाने पे ये आमादा हैं .
हम तो लोहू की सियाही से ये सब लिखते हैं ,
ताकि सोया ये लहू जागे कसम खाने को .
हम किसी जन्म में थे 'चन्द' कभी थे 'बिस्मिल' ,
देखें कौन आता है यह फर्ज़ बजा लाने को ?
टिप्पणी : यह कविता मैंने अयोध्या काण्ड के बाद लिखी थी परन्तु परिस्थितियाँ अभी भी ज्यों की त्यों हैं.
1 comment:
मैंने यह कविता (नज़्म) अटलजी को भेजी थी। उन्होंने जो उत्तर मुझे भेजा था वह पत्र मैंने अपनी फेसबुक पर डाल दिया है कोई भी उसे देख सकता है।
डॉ. मदनलाल वर्मा 'क्रान्त'
�� 09811851477
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