सरस्वती- वन्दना
(सिंहावलोकन छन्द)
मेरी मातु! शारदे! तू सार दे समग्रता का, मूढ़-मति-मानस में सुमति उतार दे;
तार दे उन्हें भी जो हैं कुमति के मारे हुए, भूले भटके हुओं की भूलों को विसार दे;
सार दे तू 'क्रान्त' को समाज-हित-चिन्तन का, बिगड़े हुओं के तू चरित्र को सुधार दे;
धार दे प्रखरता की काव्य के मनीषियों को, प्रार्थना यही है तोंसे मेरी मातु! शारदे!!
मेरी मातु! शारदे! मैं आया हूँ तिहारे द्वार, करके कृपा तू इस ओर भी निहार दे;
हार दे मुझे जो तुने कर में गहा हुआ है, यश की सुगन्धि को तू जग में प्रसार दे;
सार दे सभी जो काम 'क्रान्त' के भी आये, जड़ होती इस ज्योति को तू कर से संवार दे;
वार दें जो देश औ' समाज हित जीवन को, ऐसी शक्ति दे मुझे तू मेरी मातु! शारदे!!
2 comments:
sundar vandana aaj apke dwara suni to aur achhi lahi.
gyaenshwari (sakhi) singh
सिंहावलोकन छन्द में जब लिख गयी ये प्रार्थना।
तो मन में आया पोस्ट कर दूँ मैं ये वाणी- वन्दना॥
ज्ञानेश्वरी जैसी सखी को बात कुछ सच्ची लगी।
उसने कमेण्ट किया तभी ये “प्रार्थना अच्छी लगी॥”
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