देशभक्ति बदनाम हुई तो क्या होगा?
जिस भारत माँ की माँग सदा लोहू से भरती आयी है.
उसकी बलिदानी धरती यदि बदनाम हुई तो क्या होगा?
यह वह भू है जिसके कण-कण में माँ का मधुर दुलार भरा,
तात्या टोपे, नाना साहब, मंगल पाण्डेय का प्यार भरा;
इसके ही उर में समा गयी लड़ते-लड़ते लक्ष्मी बाई,
इतिहास बनाकर चले गये चाफेकर सगे-सगे भाई.
जिनका यश अबतक गाते हैं भारत तो क्या दुनिया के कवि,
उनकी हसरतमय क़ुरबानी नाकाम हुई तो क्या होगा?
यह है बिस्मिल की कर्मभूमि जर्रा-जर्रा तूफ़ान बना,
अशफाकउल्लाह वारसी का अल्लाह यहाँ भगवान बना;
हँसते-हँसते दीवानों ने फाँसी का फन्दा चूमा था,
उनका तूफानी इंकलाब सारी दुनिया में गूँजा था.
भर दिया बसन्ती रँग जिसने रँग लिया लहू से तन जिसने,
उस भगत सिंह की गौरवता निष्काम हुई तो क्या होगा?
नेता सुभाष जिसने इसके कण-कण में लोहू मिला दिया,
अपने बारूदी नारों से अंग्रेजी शासन हिला दिया;
आज़ाद जिसे आज़ादी से नंगे शरीर रहना भाया,
जीते-जी जिसको कोई भी हथकड़ी नहीं पहना पाया.
आखिरी समय तक भारत की मिट्टी से जिनको प्यार रहा,
ऐसे वीरों की वसुन्धरा वीरान हुई तो क्या होगा?
नेहरू जिसने युग की मशाल दी जला शान्ति के शोलों से,
ये उसे बुझाना चला रहे कुछ बड़े राष्ट्र बम-गोलों से;
गान्धी जिसने गोली खाकर आखिरी समय 'हे राम!' कहा,
यह धरती है उसकी जिसने हर भला-बुरा अंजाम सहा.
कश्मीर जहाँ की हर क्यारी तुमने लोहू से सींची है,
उसकी केसर गर सरे-आम नीलाम हुई तो क्या होगा?
सीमा का लाल बहादुर जो सीमा के पार शहीद हुआ,
उसके जाने के बाद आज उसका यह देश मुरीद हुआ;
तुम एक नहीं हो सौ करोड़ से अधिक, हिमालय बन जाओ,
दुश्मन न कहीं से घुस पाये तुम निगहबान बन तन जाओ.
तुम जागो देश पुकार रहा अब समय नहीं है सोने का,
वरना यह चढती हुई सुबह यदि शाम हुई तो क्या होगा?
जिस भारत माँ की माँग सदा लोहू से भरती आयी है.
उसकी बलिदानी धरती यदि बदनाम हुई तो क्या होगा?
यह वह भू है जिसके कण-कण में माँ का मधुर दुलार भरा,
तात्या टोपे, नाना साहब, मंगल पाण्डेय का प्यार भरा;
इसके ही उर में समा गयी लड़ते-लड़ते लक्ष्मी बाई,
इतिहास बनाकर चले गये चाफेकर सगे-सगे भाई.
जिनका यश अबतक गाते हैं भारत तो क्या दुनिया के कवि,
उनकी हसरतमय क़ुरबानी नाकाम हुई तो क्या होगा?
यह है बिस्मिल की कर्मभूमि जर्रा-जर्रा तूफ़ान बना,
अशफाकउल्लाह वारसी का अल्लाह यहाँ भगवान बना;
हँसते-हँसते दीवानों ने फाँसी का फन्दा चूमा था,
उनका तूफानी इंकलाब सारी दुनिया में गूँजा था.
भर दिया बसन्ती रँग जिसने रँग लिया लहू से तन जिसने,
उस भगत सिंह की गौरवता निष्काम हुई तो क्या होगा?
नेता सुभाष जिसने इसके कण-कण में लोहू मिला दिया,
अपने बारूदी नारों से अंग्रेजी शासन हिला दिया;
आज़ाद जिसे आज़ादी से नंगे शरीर रहना भाया,
जीते-जी जिसको कोई भी हथकड़ी नहीं पहना पाया.
आखिरी समय तक भारत की मिट्टी से जिनको प्यार रहा,
ऐसे वीरों की वसुन्धरा वीरान हुई तो क्या होगा?
नेहरू जिसने युग की मशाल दी जला शान्ति के शोलों से,
ये उसे बुझाना चला रहे कुछ बड़े राष्ट्र बम-गोलों से;
गान्धी जिसने गोली खाकर आखिरी समय 'हे राम!' कहा,
यह धरती है उसकी जिसने हर भला-बुरा अंजाम सहा.
कश्मीर जहाँ की हर क्यारी तुमने लोहू से सींची है,
उसकी केसर गर सरे-आम नीलाम हुई तो क्या होगा?
सीमा का लाल बहादुर जो सीमा के पार शहीद हुआ,
उसके जाने के बाद आज उसका यह देश मुरीद हुआ;
तुम एक नहीं हो सौ करोड़ से अधिक, हिमालय बन जाओ,
दुश्मन न कहीं से घुस पाये तुम निगहबान बन तन जाओ.
तुम जागो देश पुकार रहा अब समय नहीं है सोने का,
वरना यह चढती हुई सुबह यदि शाम हुई तो क्या होगा?
1 comment:
चारपाई पर बैठे हुए भगत सिंह का चित्र उनकी पहली गिरफ्तारी के समय का है इसमें उनके दादा जी सरदार अर्जुन सिंह कुर्सी पर बैठे हुए उनसे वार्ता कर रहें हैं न कि डी० एस० पी० गोपाल सिंह पन्नू जैसा कि अंग्रेजों ने प्रचारित किया. (पाठक आज का Hindustan Times देखें) 'काकोरी के वीरों से परिचय' शीर्षक से एक लेख 'कीर्ति' पत्रिका (पंजाबी नाम 'किरती') में भगत सिंह ने मई १९२७ में लिखा था इस लेख के छपते ही भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया था.
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