भरे बाजार में फजीहत
भीड़ से अब लोग घबराने लगे हैं,
जंगलों का अर्थ बतलाने लगे हैं.
जो हुनर के कायदे मनहूस निकले,
ये उन्हें गिन-गिन के झुठलाने लगे हैं.
फिर भरे बाजार में कर ली फजीहत,
अब नसीहत से भी कतराने लगे हैं.
जिन्दगी के दौर में चित हो गये तो,
मौत का ही मर्सिया गाने लगे हैं.
मुतमइन होकर के जो बैठा हुआ है,
ये उसे जा-जा के समझाने लगे हैं.
'क्रान्त' इनकी नस्ल का इतिहास इतना,
कल खिले थे आज मुरझाने लगे हैं.
शब्दार्थ: मुतमइन=निश्चिन्त,आश्वस्त
भीड़ से अब लोग घबराने लगे हैं,
जंगलों का अर्थ बतलाने लगे हैं.
जो हुनर के कायदे मनहूस निकले,
ये उन्हें गिन-गिन के झुठलाने लगे हैं.
फिर भरे बाजार में कर ली फजीहत,
अब नसीहत से भी कतराने लगे हैं.
जिन्दगी के दौर में चित हो गये तो,
मौत का ही मर्सिया गाने लगे हैं.
मुतमइन होकर के जो बैठा हुआ है,
ये उसे जा-जा के समझाने लगे हैं.
'क्रान्त' इनकी नस्ल का इतिहास इतना,
कल खिले थे आज मुरझाने लगे हैं.
शब्दार्थ: मुतमइन=निश्चिन्त,आश्वस्त
3 comments:
फिर भरे बाजार में कर ली फजीहत,
अब नसीहत से भी कतराने लगे हैं.
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Awesome. it's very true.
प्रिय अवधेश जी!
यही तो इस देश की दुर्दशा का कारण है कि किसी बुद्धिजीवी का कहना न जनता मानती है न नेता जब तक राजनीति में बुद्धिजीवी वर्ग की उपेक्षा होती रहेगी यह देश यूँ ही लुटता-पिटता रहेगा...
बढ़िया है.
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