राजनीति की सीता
पहले था आदर्श हमारा सादा जीवन उच्च विचार
अब है सुविधाओं से भरा लवादा जीवन तुच्छ विचार
कलियुग की बलिहारी देखो लुच्चे लोग मजे में हैं
नेता हुए मदारी जमे जमूरों के मजमे में हैं
राजनीति में राज रह गया कहीं नीति का पता नहीं
इसमें दोष हमारा ही है किसी और की खता नहीं
हम हैं उत्तरदायी हमने ही उनको चुनकर भेजा
जब चुनाव आया तो हमने अच्छा बुरा नहीँ सोचा
कांग्रेस हो गयी बाँझ सारे नेता श्री-हीन हुए
एक विदेशी महिला के आगे वे कितने दीन हुए
काम कम्युनिस्टों का है वे बीजेपी को दें गाली
छोटे दल थाली के बैंगन संसद है उनकी थाली
जीवन का आधार धर्म था उसको तो वनवास दिया
राजनीति को धर्महीन करने का सदा प्रयास किया
इन पैंसठ सालों में इसका चमत्कार हमने देखा
पार कर गयी राजनीति की सीता वह लक्ष्मण रेखा
अब तो कुछ दिन लंका में बस इसी तरह रहने होंगे
जब तक राम न लौटेंगे सीता को दुःख सहने होंगे
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