सत्य का पन्थ
सत्य का पन्थ बेहद कड़ा है
यह अजूबा भी कितना बड़ा है
भीड़ की भीड़ हल खोजती है
प्रश्न को प्रश्न घेरे खड़ा है
धूप के आइने हैं ये इनमें
बिम्ब-प्रतिबिम्ब गहरे गड़ा है
परिचितों में हमीं हैं अकेले
वक्त से जिसका पाला पड़ा है
रेत में फूल उगने लगे हैं
घोंसलों में नगीना जड़ा है
'क्रान्त' समझा के हम थक चुके हैं
आज का व्यक्ति चिकना घड़ा है
सत्य का पन्थ बेहद कड़ा है
यह अजूबा भी कितना बड़ा है
भीड़ की भीड़ हल खोजती है
प्रश्न को प्रश्न घेरे खड़ा है
धूप के आइने हैं ये इनमें
बिम्ब-प्रतिबिम्ब गहरे गड़ा है
परिचितों में हमीं हैं अकेले
वक्त से जिसका पाला पड़ा है
रेत में फूल उगने लगे हैं
घोंसलों में नगीना जड़ा है
'क्रान्त' समझा के हम थक चुके हैं
आज का व्यक्ति चिकना घड़ा है
No comments:
Post a Comment