सूरते-हाल
कथनी औ' करनी में कितना फ़र्क है!
इसीलिये तो देश हमारा नर्क है!!
स्वार्थ-भाव की कीमत जिसको चाहिये,
उसको कहिये-"आप यहाँ से जाइये!"
जिन्दा है वह कौम जिसे यह भान है,
भाईचारा ही समाज की जान है!!
भाई-भाई में हो रहा कुतर्क है!
इसीलिये तो सबका बेड़ा गर्क है!!
राष्ट्र-धर्म से किसको कितना मोह है?
शासन नहीं, कुशासन का यह द्रोह है!
कूट-नीति छल-नीति प्रभावी हो रही,
राजनीति में 'माया' हावी हो रही!!
देश-प्रेम का मन्त्र किसे अब याद है?
इसीलिये तो घर का घर बरवाद है!!
प्रतिभायें सब यहाँ उपेक्षित हो रहीं,
छद्म-नीतियाँ पथ में काँटे बो रहीं!
धैर्य,धर्म,मित्रता और गृहस्वामिनी,
कुछ भी हो पर हमें न इनकी माननी!!
हठधर्मी का प्रचलन चारो ओर है!
इसीलिये तो 'धर्म' हुआ कमजोर है!!
बुद्धिमान लोगों को यह क्या हो गया?
सुविधाओं में उनका पौरुष खो गया!
अर्थ-लोभ में इतने अन्धे हो रहे,
स्वार्थ-सिद्धि में काले-धन्धे हो रहे!!
यश-प्रसिद्धि में सिद्धि-साधना मौन है!
सिद्धों को अब यहाँ पूछता कौन है??
कभी विश्व-कुल-गौरव था निज देश यह,
घर-घर में पहुँचाया था सन्देश यह---
"सकल विश्व को श्रेष्ठ बनायें आर्य-जन,
भूखा नंगा रहे न कोई भी स्व-जन!!"
किन्तु आज उस आर्य-मन्त्र का क्या हुआ?
इसीलिये है देश आज पिछड़ा हुआ!!
युगों-युगों से हम चिल्लाते आ रहे,
फाड़-फाड़ कर गला बताते आ रहे-
"सकल सिद्धियों का साधन जो 'धर्म' है,
उसी 'धर्म' में निहित तुम्हारा कर्म है!!"
धर्म-कर्म को लोग नहीं अपना रहे!
इसीलिये तो मात हर जगह खा रहे!!
2 comments:
काश कहा जो, सब हो जाता..
महाभारत में महात्मा विदुर ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था- "आशा हि बलवती राजन!"
पाण्डेय जी! "आशा" के साथ मैं एक शब्द "निष्ठा" और जोड़ते हुए पूर्ण विश्वास के साथ कहता हूँ आप दोनों बनाए रखिये "वह सुबह कभी तो आयेगी! वह सुबह कभी तो आयेगी!"
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