Monday, December 31, 2012

Pitcher of sins

पाप का घड़ा


मित्रो! मैंने कभी "वंशवाद का वैताल" शीर्षक से एक कविता लिखी थी:

सैंतालिस में माटी हो गई कांग्रेस की काया,
उस माटी में वंशवाद का महाप्रेत घुस आया;
नेहरू-इन्द्रा के पीछे राजीव-सोनिया आये,
राहुल बाबा सोच रहे- "कब उनका नम्बर आये?"
कहें 'क्रान्त' जब राहुल बाबा का नम्बर आयेगा,
कांग्रेस के पापों का तब घड़ा फूट जायेगा.

२०१२ के जाते-जाते दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की जो ह्रदय विदारक घटना हुई
उसके कुछ पहलू विचारणीय हैं. मैं इस ब्लॉग के माध्यम से समूचे देश का ध्यान
उन पर ले जाना चाहता हूँ.

देश की राजधानी दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे एक महिला के साथ जो कुछ
हुआ उसमें दिल्ली की मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित से लेकर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गान्धी,
नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज तीनों की राशि "कुम्भ" है. सिंगापुर, जहाँ पहुँचकर उस युवती
महिला ने दम तोड़ा उसकी राशि भी "कुम्भ" है.  कुम्भ घड़े को कहते हैं यह इस बात का
संकेत है कि कांग्रेस सरकार के पापों का घड़ा (कुम्भ) लगभग भर चुका है और यह
राहुल बाबा के आते ही फूटने वाला है.

मेरी डॉ. मनमोहन सिंह जी से प्रार्थना है कि वे स्वेच्छा से २०१३ में राहुल गान्धी को गद्दी
सौंप दें ताकि कांग्रेस के पापों का घड़ा वही अपने सिर पर रखकर अपने पूर्वजों की चिता
की परिक्रमा करते हुए राजघाट के आसपास जाकर फोड़ सकें.

प्रतीक्षा कीजिये अंग्रेजी नववर्ष (२०१३) के शुभागमन की.....
  

Tuesday, December 25, 2012

Atal Bihari Vajpayee's Meri Ikyavan Kavitayen:Rhym-Review

Atalji speaking on 19-12-1996

अटलबिहारी वाजपेयी की काव्य-कृति

मेरी इक्यावन कविताएँ

की

काव्य-मीमांसा

समीक्षा गीत

डॉ. मदनलाल वर्मा 'क्रान्त'

१३ अक्टूबर १९९५ को नई दिल्ली के फिक्की सभागार में उपरोक्त कृति का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव ने किया था. इस कृति की काव्य-मीमांसा मैंने एक समीक्षा गीत के रूप में अपनी ही हस्तलिपि में लिखकर अटलजी को उनके निवास स्थान पर जाकर भेंट की थी. बाद में यह सुनील जोगी ने इसे अपनी पुस्तक राजनीति के शिखर: कवि अटलबिहारी वाजपेयी में प्रकाशित भी किया था. आज अटलजी के ८८ वें जन्म-दिन पर मैं इस समीक्षा गीत को यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ. इसमें उक्त कृति की कविताओं के "शीर्षकों" का प्रयोग करते हुए काव्य-मीमांसा करने की कोशिश की गयी है. समीक्षा गीत काव्यशास्त्र की सर्वाधिक नई विधा है जिसका हिन्दी जगत को स्वागत करना चाहिये.

काव्यपरक अनुभूति स्वरों में शामिल हैं तेइस कविताएँ,
कविता में संकल्प बोलता-"आओ! फिर से दिया जलाएँ."
"हरी दूब" पर "अवसर" जैसे हो पहचान निजत्व बोध की,
"गीत नहीं गाता हूँ" में वैराग्य-भावना स्वत्व-शोध की.

है तटस्थ अभिव्यक्ति व्यक्ति की "ना मैं चुप हूँ ना गाता हूँ,"
फिर भी कवि प्रयासरत हो कहता है-"गीत नया गाता हूँ."
है व्यक्तित्व परक दर्शन की शब्दमयी अभिव्यक्ति "ऊंचाई",
"कौरव कौन? कौन पाण्डव?" है राजनीति की यह सच्चाई.

जब "दरार पड़ गयी दूध में" फिर "अलगाव" कहाँ से जाये?
है "मन का सन्तोष" मनुजता पर ये मन कैसे समझाये?
नाम आपका "अटल" "झुक नहीं सकते" यह है अटल-प्रतिज्ञा,
"दूर कहीं रोता है कोई" लिये अकेलेपन की त्रिज्या.

"जीवन बीत गया" यह कोई चक्र नहीं यूँ ही रुक जाये,
जीवन है संघर्ष तभी "ठन गयी मौत से" यह बतलाये.
"राह कौन सी जाऊँ मैं" में यह कैसा भ्रम पाल लिया है?
यह तो एक महानगरी है फिर क्यों सोच-विचार किया है?

"हिरोशिमा की पीड़ा" में है शिव के महाप्रलय की क्रीड़ा,
"नये मील का पत्थर" कहता-पुन: उठाओ व्रत का बीड़ा.
न हो निराशा कभी "मोड़ पर","मनस्विता की गाँठें" खोलें;
"नई गाँठ लगती है" फिर भी यह चादर कबीर सी धो लें.

चक्रव्यूह में चक्षु न भटकें "यक्ष-प्रश्न" के समाधान हों,
निर्मलतामय "क्षमा-याचना" पूर्ण सभी स्वर मूर्तिमान हों.
"राष्ट्रीयता के स्वर" में हैं दसो दिशाओं की कविताएँ,
"स्वतन्त्रता ही की पुकार" है भारत माँ की अभिलाषाएँ.

"अमर आग है" प्रखर तत्व की "परिचय" में हिन्दू-निष्ठा है,
स्वाभिमान गौरव जतलाने "आज सिन्धु में ज्वार उठा है".
"जम्मू की पुकार" के पीछे कहता काश्मीर - हे ईश्वर!
ना जाने किस रोज बढ़ेंगे? "कोटि चरण इस ओर निरन्तर".

मगन "गगन में कब लहरेगा भगवा ध्वज?" यह पुन: हमारा,
"उनको याद करें" जिन सरफ़रोश वीरों ने हमें उबारा.
है गणतन्त्र अमर "सत्ता" के मद में चूर न हम हो जायें,
राष्ट्रीयता के स्वर में सन्देश दे रहीं दस कविताएँ.

देश भक्त जेलों में ठूँसे हुई "मातृपूजा प्रतिबन्धित",
"कण्ठ-कण्ठ में एक राग है" यह स्वर हुआ राष्ट्र में गुंजित.
अटल चुनौती ने ललकारा-"आये जिस-जिस में हिम्मत हो",
"एक बरस जब बीत गया" तो लगा कि जैसे सत्यागत हो.

जब "जीवन की साँझ ढली" तो लगा कि जैसे डगर कट गयी,
लौटी आश "पुन: चमकेगा दिनकर" काली-निशा छँट गयी.
"कदम मिलाकर चलना होगा" पुन: पड़ोसी से कहते हैं,
होते हैं समृद्ध वही जो मिलकर एक साथ रहते हैं.

अटल चुनौती के स्वर हैं ये सब की सभी आठ कविताएँ,
आओ! इनका दर्शन समझें अपने जीवन में अपनाएँ.
अपनों के सपनों का रोना "रोते-रोते रात सो गयी",
प्रकृति-पुरुष को पास "बुलाती तुम्हें मनाली" बात हो गयी.

मन का "अन्तर्द्वंद्व" न सुलझा ग्रन्थि सवालों की सुलझा ली,
"बबली-लौली" स्नेह-वर्तिका से मनती हर साल दिवाली.
"अपने ही मन से कुछ बोलें" जीवन का हर द्वार खुलेगा,
पिया! "मनाली मत जइयो" अन्धे-युग का धृतराष्ट्र मिलेगा.

"देखो! हम बढ़ते ही जाते" चरैवेति अपना चिन्तन है,
"जंग न होने देंगे" यह हम हिन्दू लोगों का दर्शन है.
जो हिंसा से दूर रहे वह सच्चे अर्थों में हिंदू है,
जो इस् ला को त माने उस मजहब की रग-रग में बू है.

"आओ! मर्दो नामर्द बनो" व्यंग्योक्ति शक्ति का नारा है,
यह "सपना टूट गया" तो फिर कलयुग में संघ सहारा है.
तेइस दस आठ और दस मिलकर हैं इक्यावन कविताएँ,
जीवन-दर्शन की द्योतक हैं- मेरी इक्यावन कविताएँ.

"मेरी इक्यावन कविताएँ" हैं अटलबिहारी का जीवन,
सच है "मनुष्य के भी ऊपर होता है उसका अपना मन".
तुम अपने मन के राजा हो मन का धन कहीं न खो जाये,
कितने ही ऊँचे उठो मगर अभिमान न रत्ती भर आये.

अपनेपन की सौगन्ध आपको 'क्रान्त' दे रहा बार-बार,
श्रद्धेय अटलजी! जीवन भर बस यूँ ही रहना निर्विकार.
  
 नोट:- अपनी प्रतिक्रिया अवश्य भेजें, हमें आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी. इसमें ऊपर जो चित्र दिया है वह अटल जी का उस समय का ऐतिहासिक चित्र है जब वे रामप्रसाद 'बिस्मिल' की पुण्य-तिथि पर नई दिल्ली में आयोजित पुस्तक-विमोचन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे. पृष्ठभूमि में लगा हुआ क्रान्तिकारी पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल' का चित्र कार्यक्रम के पश्चात् भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय में लगवा दिया गया था. उस समय नरेन्द्र मोदी जी केन्द्रीय कार्यालय में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में नियुक्त थे.



Poet Shyam Nirmam is no more!

श्याम निर्मम (1950-2012) की स्मृति में

उनकी कृति हाशिये पर हम के समर्थन में लिखा गया

समीक्षा गीत 

(आज मन बहुत उदास है मेरे प्रिय मित्र श्याम निर्मम आज नहीं रहे अब केवल उनकी कीर्ति ही शेष रह गयी है. कभी उन्होंने मुझे अपनी कृति "हाशिये पर हम" भेंट की थी. मैंने उस पर एक "समीक्षा गीत" लिखकर उन्हें भेजा था. पता नहीं उन्होंने उसका कहीं उल्लेख या उपयोग किया अथवा नहीं बहरहाल उस समीक्षा गीत को यहाँ इस ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ. )

निर्मम क्यों हो? प्रश्न किया जब माँ की ममता ने,
उत्तर दिया पिता की बूढ़ी होती क्षमता ने;
मैं माटी का गीत लिये जब लहरों पर उतरा,
नौका एक काँपती है सामने खड़ा खतरा.
हुआ सत्य-शिव-सुन्दर फिर भी अंतहीन यात्रा,
उम्र हुई खरगोश बढ़ गयी जीवन की मात्रा.

ये विराट बौने आहत तुम साँकल कभी हुए,
शंख आत्मबल का टूटा भ्रम बादल सभी हुए;
चील मछलियों पर डेरा डाले मँडराती है,
फूल कोई अधखिला उसे यह हवा डराती है;
सब हो गया हवन जीवन कितना सन्नाटा है!
चित्र बिगड़ते बनते उन्हें धार ने काटा है.

अरे बोल रे मन! क्यों हुईं मदनगंधा साँसें,
सदा रौशनी उसको मिलती जो देता झाँसे;
हमीं वंशधर हैं सूरज के जो दिन-रात जले,
हैं वीरान बस्तियाँ मन की, बंजारे निकले;
ये सलाइयाँ सुरमे की कह रहीं उदासी गा!
ज्योति-पन्थ दिखला सबको तू खुद मशाल बन जा.

सूखी घास रौंदते घोड़े, ये ही दिव्य हुए;
थर्राता है गगन, धुँआ होकर हम हव्य हुए;
क्यों सपनों का अहं छले, बेखबर हुआ निर्झर;
अभी मौन है बंशी, मैं कड़वा काढ़ा तू ज्वर.
ऐहसासों की नमी हुई गुम ऐसा घाव हुआ,
सफ़र जिन्दगी का जैसे कोई भटकाव हुआ.

रोज सवेरा उगता है इठलाता है यौवन,
हमें साँप सा डसता है घनघोर अकेलापन;
टूटेंगे सब जाल कुहासी जो तूने डाले,
कंठ सभी भर्राये जब टूटे तम के जाले.
गुलमोहर की छाँव भरे दिन हुए दिशाओं के,
पावन गंध हुई, नूपुर बज उठे हवाओं के .

खामोशियाँ बैंजनी मोती की, कवि-स्वर घायल;
वातायन के सेतु काँपते, गुमसुम है पायल; 
ऐसे में एहसास करीलों में कुछ तितली सा,
बौने हुए बड़े दम घुटता जल में मछली का;

अमृत सब चाहते यहाँ पर शंकर कौन बने?
शिखर ढह रहे छन्दों के गीतों की कौन सुने?
हम कविता के बीज हमारे शब्दों में है दम!
आज हाशिये पर हम तो क्या कल होंगे परचम!!