श्याम निर्मम (1950-2012) की स्मृति में
उनकी कृति हाशिये पर हम के समर्थन में लिखा गया
समीक्षा गीत
(आज मन बहुत उदास है मेरे प्रिय मित्र श्याम निर्मम आज नहीं रहे अब केवल उनकी कीर्ति ही शेष रह गयी है. कभी उन्होंने मुझे अपनी कृति "हाशिये पर हम" भेंट की थी. मैंने उस पर एक "समीक्षा गीत" लिखकर उन्हें भेजा था. पता नहीं उन्होंने उसका कहीं उल्लेख या उपयोग किया अथवा नहीं बहरहाल उस समीक्षा गीत को यहाँ इस ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ. )
निर्मम क्यों हो? प्रश्न किया जब माँ की ममता ने,
उत्तर दिया पिता की बूढ़ी होती क्षमता ने;
मैं माटी का गीत लिये जब लहरों पर उतरा,
नौका एक काँपती है सामने खड़ा खतरा.
हुआ सत्य-शिव-सुन्दर फिर भी अंतहीन यात्रा,
उम्र हुई खरगोश बढ़ गयी जीवन की मात्रा.
ये विराट बौने आहत तुम साँकल कभी हुए,
शंख आत्मबल का टूटा भ्रम बादल सभी हुए;
चील मछलियों पर डेरा डाले मँडराती है,
फूल कोई अधखिला उसे यह हवा डराती है;
सब हो गया हवन जीवन कितना सन्नाटा है!
चित्र बिगड़ते बनते उन्हें धार ने काटा है.
अरे बोल रे मन! क्यों हुईं मदनगंधा साँसें,
सदा रौशनी उसको मिलती जो देता झाँसे;
हमीं वंशधर हैं सूरज के जो दिन-रात जले,
हैं वीरान बस्तियाँ मन की, बंजारे निकले;
ये सलाइयाँ सुरमे की कह रहीं उदासी गा!
ज्योति-पन्थ दिखला सबको तू खुद मशाल बन जा.
सूखी घास रौंदते घोड़े, ये ही दिव्य हुए;
थर्राता है गगन, धुँआ होकर हम हव्य हुए;
क्यों सपनों का अहं छले, बेखबर हुआ निर्झर;
अभी मौन है बंशी, मैं कड़वा काढ़ा तू ज्वर.
ऐहसासों की नमी हुई गुम ऐसा घाव हुआ,
सफ़र जिन्दगी का जैसे कोई भटकाव हुआ.
रोज सवेरा उगता है इठलाता है यौवन,
हमें साँप सा डसता है घनघोर अकेलापन;
टूटेंगे सब जाल कुहासी जो तूने डाले,
कंठ सभी भर्राये जब टूटे तम के जाले.
गुलमोहर की छाँव भरे दिन हुए दिशाओं के,
उनकी कृति हाशिये पर हम के समर्थन में लिखा गया
समीक्षा गीत
(आज मन बहुत उदास है मेरे प्रिय मित्र श्याम निर्मम आज नहीं रहे अब केवल उनकी कीर्ति ही शेष रह गयी है. कभी उन्होंने मुझे अपनी कृति "हाशिये पर हम" भेंट की थी. मैंने उस पर एक "समीक्षा गीत" लिखकर उन्हें भेजा था. पता नहीं उन्होंने उसका कहीं उल्लेख या उपयोग किया अथवा नहीं बहरहाल उस समीक्षा गीत को यहाँ इस ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ. )
निर्मम क्यों हो? प्रश्न किया जब माँ की ममता ने,
उत्तर दिया पिता की बूढ़ी होती क्षमता ने;
मैं माटी का गीत लिये जब लहरों पर उतरा,
नौका एक काँपती है सामने खड़ा खतरा.
हुआ सत्य-शिव-सुन्दर फिर भी अंतहीन यात्रा,
उम्र हुई खरगोश बढ़ गयी जीवन की मात्रा.
ये विराट बौने आहत तुम साँकल कभी हुए,
शंख आत्मबल का टूटा भ्रम बादल सभी हुए;
चील मछलियों पर डेरा डाले मँडराती है,
फूल कोई अधखिला उसे यह हवा डराती है;
सब हो गया हवन जीवन कितना सन्नाटा है!
चित्र बिगड़ते बनते उन्हें धार ने काटा है.
अरे बोल रे मन! क्यों हुईं मदनगंधा साँसें,
सदा रौशनी उसको मिलती जो देता झाँसे;
हमीं वंशधर हैं सूरज के जो दिन-रात जले,
हैं वीरान बस्तियाँ मन की, बंजारे निकले;
ये सलाइयाँ सुरमे की कह रहीं उदासी गा!
ज्योति-पन्थ दिखला सबको तू खुद मशाल बन जा.
सूखी घास रौंदते घोड़े, ये ही दिव्य हुए;
थर्राता है गगन, धुँआ होकर हम हव्य हुए;
क्यों सपनों का अहं छले, बेखबर हुआ निर्झर;
अभी मौन है बंशी, मैं कड़वा काढ़ा तू ज्वर.
ऐहसासों की नमी हुई गुम ऐसा घाव हुआ,
सफ़र जिन्दगी का जैसे कोई भटकाव हुआ.
रोज सवेरा उगता है इठलाता है यौवन,
हमें साँप सा डसता है घनघोर अकेलापन;
टूटेंगे सब जाल कुहासी जो तूने डाले,
कंठ सभी भर्राये जब टूटे तम के जाले.
गुलमोहर की छाँव भरे दिन हुए दिशाओं के,
पावन गंध हुई, नूपुर बज उठे हवाओं के .
खामोशियाँ बैंजनी मोती की, कवि-स्वर घायल;
वातायन के सेतु काँपते, गुमसुम है पायल;
ऐसे में एहसास करीलों में कुछ तितली सा,
बौने हुए बड़े दम घुटता जल में मछली का;
अमृत सब चाहते यहाँ पर शंकर कौन बने?
शिखर ढह रहे छन्दों के गीतों की कौन सुने?
हम कविता के बीज हमारे शब्दों में है दम!
आज हाशिये पर हम तो क्या कल होंगे परचम!!
3 comments:
My dear friends! The address of Dr. Shyam 'Nirmam' is E-28, Lajpatnagar, Sahibabad, Ghaziabad, U.P. (India)
His Contact No is 09811279368 (Parag)
विनम्र श्रद्धांजलि..जलकर सबके जीवन पथ की राह बने हम।
mujhe bahut dukh hai aur bahut aahat hoon kyoki mene apne hi gher me unhe apni rachna sunai thi aur unki rachnai suni thi ve hamesha sahitya me jinda rahege.
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