Thursday, February 28, 2013

Water resource management

जल संसाधन प्रबन्धन
                (कुण्डली छन्द में)

दुनिया भर की गन्दगी, रहे नदी में डाल;
वही गन्दगी एक दिन, हो जाती विकराल.
हो जाती विकराल, बाढ़ जैसे आती है;
एक बार में सारी कसर निकल जाती है.
कहें 'क्रान्त' हो रही प्रदूषित गंगा घर की;
डाल रहे गन्दगी उसी में दुनिया भर की.

गंगा हो या घाघरा, गर्रा या खन्नौत;
नगरों की ही गन्दगी इन्हें दे रही मौत.
इन्हें दे रही मौत, देख इनकी बेहोशी;
प्रलयंकर हो जाती शिव की कन्या कोसी.
कहें 'क्रान्त' संकल्प अगर मन में चंगा हो,
क्या मजाल है कभी प्रदूषित यह गंगा हो.

जिन पर है विज्ञान का, बहुत बड़ा नेटवर्क;
उन पर भी जल-आपदा से पड़ता है फ़र्क.
से पड़ता है फ़र्क, तभी चौकन्ने रहते;
नदियाँ उनकी शुद्ध, न उनमें नाले बहते.
कहें 'क्रान्त' वे सीवर का जल संशोधित कर,
वहाँ भेजते उसे, कमी रहती है जिन पर.

भारत में जल-आपदा, से निबटें इस भाँति;
बनी रहे जिससे सदा, जन-जीवन में शान्ति.
जन-जीवन में शान्ति,महानगरों का मलवा;
सीवर के जल संग बनाओ उसका हलवा.
कहें 'क्रान्त' उर्वरक बनाकर सदावरत में;
खेतों को बाँटो, हो खुशहाली भारत में.

वर्षा का जल भूमि के, अन्दर करें प्रविष्ट;
जिससे जलस्तर रहे, वसुधा का आविष्ट.
वसुधा का आविष्ट, उसे यूँ ही न बहायें;
बोरिंग करके धरती के अन्दर पहुँचायें.
कहें 'क्रान्त' यह भी है एक समस्या का हल;
नाली में बहने से रोंकें, वसुधा का जल.

नाले जब बरसात में, भर जाते चहुँ ओर;
दिल्ली हो या बम्बई, मच जाता है शोर.
मच जाता है शोर, समस्या जब बढ़ जाती;
माँग केन्द्र से मदद, बजट सब चट कर जाती.
कहें 'क्रान्त' यह नहीं सोचते बैठे-ठाले;
कुछ ऐसा भी करें, नगर में दिखें न नाले.

इसका यही उपाय है, गली-गली में एक;
बोरिंग कर बरसात का, सारा जल दें फेंक.
सारा जल दें फेंक, न वह नालों में जाये;
और न जिससे भू का जलस्तर गिर पाये.
कहें 'क्रान्त' यदि काम न हो शासन के बस का;
विशेषज्ञ को बुला, उसे ठेका दें इसका.

अब भी हैं इस देश में, विशेषज्ञ और दक्ष;
जिनका यदि सहयोग हम, ले पायें प्रत्यक्ष.
ले पायें प्रत्यक्ष, समस्या कैसी भी हो;
जो न आपसे किसी तरह हल हो सकती हो.
कहें 'क्रान्त' यदि ऐसी स्थिति आये जब भी;
विशेषज्ञ से लाभ उठा सकते हैं अब भी. 

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

विकास को आइना दिखाता हुआ गीत..

Anonymous said...

प्रवीण पाण्डेय जी यह गीत नहीं कुण्डली छन्द में लिखी हुई लम्बी कविता है "कुण्डली" छन्द की विशेषता यह होती है कि वह जिस शब्द से प्रारम्भ होता है उसी पर जाकर समाप्त होता है. सिद्धहस्त कवि ही इस छन्द में लिख पाते हैं सब नहीं.

KRANT M.L.Verma said...

जल संरक्षण पर यदि वर्तमान सरकार मेरी इस पोस्ट पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उसे शासन और प्रशासन में लागू करे तो अच्छे परिणाम निकल सकते हैं।