भगतसिंह की बिस्मिल को श्रद्धांजलि
१९ दिसम्बर १९२७ को बिस्मिल सहित काकोरी काण्ड के चारो साथी क्रान्तिकारियों को फाँसी के समाचार से आहत होकर 'विद्रोही' उपनाम से भगतसिंह ने किरती में एक लेख लिखा था जो जनवरी १९२८ के अंक में प्रकाशित हुआ था. उसका एक अंश हम यहाँ दे रहे हैं. इस लेख के छपते ही भगतसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया था. यह चित्र उसी समय का है जो सर्वत्र पाया जाता है.
श्री रामप्रसाद 'बिस्मिल'
फाँसी पर ले जाते समय आपने बड़े जोर से कहा-"वन्दे मातरम्!", "भारतमाता की जय!!" और शान्ति से चलते हुए कहा- "मालिक! तेरी रज़ा रहे और तू हि तू रहे, बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे; जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे, तेरा हि जिक्र और तेरी जुस्तजू रहे!"
फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर आपने कहा- "I wish the downfall of British Empire" अर्थात मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ. उसके पश्चात् यह शेर कहा- "अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों कि भीड़; एक मिट जाने कि हसरत अब दिले-बिस्मिल में है!"
फिर ईश्वर के आगे एक प्रार्थना (वह शक्ति हमें दो दयानिधे!...) की और फिर एक मन्त्र (ओम् विश्वानि देव!...) पढ़ना शुरू किया. रस्सी खींची गयी. रामप्रसादजी फाँसी पर लटक गये!
अपने लेख के अन्त में भगतसिंह ने लिखा था- "आज वह वीर इस संसार में नहीं है. उसे अंग्रेजी सरकार ने अपना सबसे खौफ़नाक दुश्मन समझा. आम ख्याल यह है कि उसका कसूर यही था कि वह गुलाम देश में जन्म लेकर भी सरकार के लिये बड़ा भारी खतरा बन गया था और लड़ाई की विद्या से खूब परिचित था. आपको मैनपुरी षड्यन्त्र के नेता श्री गेंदालाल दीक्षित जैसे शूरवीर ने विशेष तौर पर शिक्षा देकर तैयार किया था...वही शिक्षा आपकी मृत्यु का कारण बनी."
प्रात: ७ बजे आपकी लाश मिली और बड़ा भारी जुलूस निकला. 'स्वदेश' में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार आपकी माताजी ने कहा था- "मैं अपने पुत्र की इस मृत्यु पर प्रसन्न हूँ, दुखी नहीं. मैं श्रीरामचन्द्र जैसा ही पुत्र चाहती थी. वैसा ही मेरा राम था. बोलो श्रीरामचन्द्र की जय!"
लेख के अन्त में भगतसिंह के उद्गार बड़े ही मर्मस्पर्शी थे उन्हें आपके साथ शेयर कर रहा हूँ:
"रामप्रसादजी की सारी हसरतें दिल-ही-दिल में रह गयीं. फाँसी से दो दिन पहले सी.आई.डी. के डिप्टी एस.पी. आर.ए.हार्टन और सेशन जज मि. हैमिल्टन आपसे मिन्नतें करते रहे कि आप मौखिक रूप से ही सब बातें बता दो. आपको १५००० रुपया नकद दिया जायेगा और सरकारी खर्चे पर विलायत भेजकर बैरिस्टर की पढ़ाई करवायी जायेगी. लेकिन आप कब इन बातों की परवाह करते थे. आप तो हुकूमतों को ठुकराने वाले व कभी -कभार जन्म लेने वालों में से थे. मुकद्दमे के दिनों आपसे जज ने पूछा था -'आपके पास क्या डिग्री है?' तो आपने हँसकर जवाब दिया था - 'सम्राट बनाने वालों को डिग्री की कोई जरूरत नहीं होती, क्लाइव के पास भी तो कोई डिग्री नही थी.' आज वह वीर हमारे बीच नहीं है. आह!"
१९ दिसम्बर १९२७ को बिस्मिल सहित काकोरी काण्ड के चारो साथी क्रान्तिकारियों को फाँसी के समाचार से आहत होकर 'विद्रोही' उपनाम से भगतसिंह ने किरती में एक लेख लिखा था जो जनवरी १९२८ के अंक में प्रकाशित हुआ था. उसका एक अंश हम यहाँ दे रहे हैं. इस लेख के छपते ही भगतसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया था. यह चित्र उसी समय का है जो सर्वत्र पाया जाता है.
श्री रामप्रसाद 'बिस्मिल'
श्री रामप्रसाद 'बिस्मिल' बड़े होनहार नौजवान थे. गज़ब के शायर थे. देखने में भी बहुत सुन्दर थे. योग्य बहुत थे. उन्हें जानने वाले कहते हैं कि यदि किसी और जगह या किसी और देश या किसी और समय पैदा हुए होते तो सेनाध्यक्ष बनते. आपको पूरे षड्यन्त्र का नेता माना गया है. चाहे बहुत ज्यादा पढ़े हुए नहीं थे लेकिन फिर भी पण्डित जगतनारायण मुल्ला जैसे सरकारी वकील की सुध बुध भुला देते थे.'चीफ कोर्ट' में अपनी अपील खुद लिखी थी, जिससे कि जजों को भी यह कहना पड़ा कि इसे लिखने में जरूर ही किसी बहुत बुद्धिमान और योग्य व्यक्ति का हाथ है.
फाँसी पर ले जाते समय आपने बड़े जोर से कहा-"वन्दे मातरम्!", "भारतमाता की जय!!" और शान्ति से चलते हुए कहा- "मालिक! तेरी रज़ा रहे और तू हि तू रहे, बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे; जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे, तेरा हि जिक्र और तेरी जुस्तजू रहे!"
फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर आपने कहा- "I wish the downfall of British Empire" अर्थात मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ. उसके पश्चात् यह शेर कहा- "अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों कि भीड़; एक मिट जाने कि हसरत अब दिले-बिस्मिल में है!"
फिर ईश्वर के आगे एक प्रार्थना (वह शक्ति हमें दो दयानिधे!...) की और फिर एक मन्त्र (ओम् विश्वानि देव!...) पढ़ना शुरू किया. रस्सी खींची गयी. रामप्रसादजी फाँसी पर लटक गये!
अपने लेख के अन्त में भगतसिंह ने लिखा था- "आज वह वीर इस संसार में नहीं है. उसे अंग्रेजी सरकार ने अपना सबसे खौफ़नाक दुश्मन समझा. आम ख्याल यह है कि उसका कसूर यही था कि वह गुलाम देश में जन्म लेकर भी सरकार के लिये बड़ा भारी खतरा बन गया था और लड़ाई की विद्या से खूब परिचित था. आपको मैनपुरी षड्यन्त्र के नेता श्री गेंदालाल दीक्षित जैसे शूरवीर ने विशेष तौर पर शिक्षा देकर तैयार किया था...वही शिक्षा आपकी मृत्यु का कारण बनी."
प्रात: ७ बजे आपकी लाश मिली और बड़ा भारी जुलूस निकला. 'स्वदेश' में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार आपकी माताजी ने कहा था- "मैं अपने पुत्र की इस मृत्यु पर प्रसन्न हूँ, दुखी नहीं. मैं श्रीरामचन्द्र जैसा ही पुत्र चाहती थी. वैसा ही मेरा राम था. बोलो श्रीरामचन्द्र की जय!"
लेख के अन्त में भगतसिंह के उद्गार बड़े ही मर्मस्पर्शी थे उन्हें आपके साथ शेयर कर रहा हूँ:
"रामप्रसादजी की सारी हसरतें दिल-ही-दिल में रह गयीं. फाँसी से दो दिन पहले सी.आई.डी. के डिप्टी एस.पी. आर.ए.हार्टन और सेशन जज मि. हैमिल्टन आपसे मिन्नतें करते रहे कि आप मौखिक रूप से ही सब बातें बता दो. आपको १५००० रुपया नकद दिया जायेगा और सरकारी खर्चे पर विलायत भेजकर बैरिस्टर की पढ़ाई करवायी जायेगी. लेकिन आप कब इन बातों की परवाह करते थे. आप तो हुकूमतों को ठुकराने वाले व कभी -कभार जन्म लेने वालों में से थे. मुकद्दमे के दिनों आपसे जज ने पूछा था -'आपके पास क्या डिग्री है?' तो आपने हँसकर जवाब दिया था - 'सम्राट बनाने वालों को डिग्री की कोई जरूरत नहीं होती, क्लाइव के पास भी तो कोई डिग्री नही थी.' आज वह वीर हमारे बीच नहीं है. आह!"
5 comments:
बहुत सुंदर पोस्ट . इस महान सेनानी ने सन १९१५ में भाई परमानन्द की फाँसी का समाचार सुनकर ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा कर ली थी . उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि
[डॉ.]मुहम्मद अहमद
देश कि खातिर अपनी जाना तक को न्योछवर करने वाले ऐसे वीर बार बार कहा जन्म लेते है भला. ऐसे वीर को शत शत नमन.
The people of present India have really forgotten such heroes like Pt. Ram Prasad Bismil and Ashfaqullah Khan. In stead they are following now-a-days the fake leaders.
Of course these Heroes deserve our true homage.
Yours
Manoj
नमन.
मित्रो ! आज दुःख तो इसी बात का है जो सचमुच भारत रत्न थे उनका सरकार नाम तक नहीं लेती और जिन्होंने
देश के अरबों खरबों घण्टे फालतू फण्ड में बरबाद कर
दिये उन्हें पहले भारत रत्न देती है फिर उनका अपनी पार्टी के वोट बटोरने के लिए इस्तेमाल करती है।
मजे की बात यह है कि वे राज्य सभा की सदस्यता पाकर
भी गैरहाजिर रहते हैं और सरकार से मोटी रकम लेते हैं।
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