विराट की सभा को सम्बोधित करते |
युग-पुरुष कृष्ण
(खोजपूर्ण लेख)
आज से ५२३८ वर्ष पूर्व भारतीय पंचांग के अनुसार द्वापरयुग के अन्तिम चरण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी बुधवार को अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र के अन्तर्गत वृष लग्न में कृष्ण का जन्म मथुरा में कंस की जेल में हुआ था. तेजस्वी बालकृष्ण ने अपने जन्म के छठे दिन ही कंस द्वारा भेजी गयी राक्षसी पूतना के पयोधर (स्तनों) को अपने नुकीले दाँतों से काटकर उसका वध करके पूत के पाँव पालने में होने वाली कहावत को चरितार्थ कर दिखाया था.अर्थात जन्म के साथ ही वह चर्चा का विषय बन चुके थे.
मात्र ११ वर्ष की अल्पायु में उन्होंने सकटासुर व बकासुर सरीखे भयानक राक्षसों तथा कालियानाग जैसे भयंकर सर्पासुर को काल के गाल में पहुँचा कर अपने मामा कंस की नींद हराम कर दी थी.१४ वर्ष की आयु में गोवर्धन का मन्त्र समाज को देकर अहंकारी इन्द्र का मान मर्दन किया और १८ वर्ष के होते ही अपने से कई गुना बलशाली मथुरा-नरेश कंस को खुले अखाड़े में युद्ध करने के लिये ललकारा और फ्रीस्टाइल कुश्ती में उससे तब तक युद्ध किया जब तक उसके प्राण-पखेरू उड़ नहीं गये. कंस के अखाड़े में उतरने से पहले उसके अंगरक्षक जरासंध ने जब कृष्ण को चुनौती दी तो उन्होंने उसे भी यमलोक पहुँचा दिया था. ऐसे पराक्रमी थे कृष्ण!
कंस-बध के पश्चात कृष्ण ने सबसे पहले अपने माता-पिता देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार से मुक्त किया और अपने नाना उग्रसेन को मथुरा के राजसिंहासन पर बैठाया. कृष्ण अगर चाहते तो स्वयं भी राज्य हथिया सकते थे किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया. इससे उनकी प्रतिष्ठा जनता जनार्दन में और ज्यादा बढ़ गयी क्योंकि त्याग की समाज ने सदैव पूजा की है. राम ने भी यही किया था जब बालि को मारकर सुग्रीव और रावण को मारकर विभीषण को राज्य सौंप दिया था. उसी भारतीय परम्परा का कृष्ण ने भी अनुसरण किया.
आज से ५२१३ वर्ष पूर्व पच्चीस वर्ष की आयु में कृष्ण का विवाह विदर्भ-नरेश भीष्मक की पुत्री रुक्मणी से हुआ. रुक्मणी अत्यन्त रूपवती थी. उसके पिता उसका विवाह चेदिदेश (वर्तमान बुन्देलखण्ड) के राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से करना चाहते थे जो कृष्ण का सगा फुफेरा भाई था. परन्तु रुक्मिणी दिल से कृष्ण को चाहती थी. उसने कृष्ण को संदेश भेजकर जब यह बात बतायी तो कृष्ण ने विदर्भ पहुँचकर रुक्मिणी के भाई रुक्म से युद्ध किया और उसे पराजित कर उसकी बहन से गन्दर्भ-विवाह रचा लिया. जब यह बात शिशुपाल को पता चली तो वह कृष्ण का शत्रु हो गया.पूरे ४३ वर्ष तक चली इस शत्रुता का अन्त तब हुआ जब एक सभा में एक सौ एक गाली देने पर कृष्ण ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया. उस समय कृष्ण ६८ वर्ष के थे.
कृष्ण की सगी बुआ पृथा को उनके नाना शूरसेन ने मालवा के राजा कुन्तिभोज को गोद दे दिया था क्योंकि उसके कोई सन्तान न थी. राजा कुन्तिभोज ने पृथा का नाम बदल कर कुन्ती रख दिया था. कुन्ती ने एक बार सूर्य देवता का त्राटक किया इससे वह गर्भवती हो गयी और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसे उसने लोकलाज के भय से नदी में बहा दिया. बड़ा होकर यही कर्ण हुआ. कुन्ती का विवाह पाण्डु से कर दिया गया जिनसे उसके पाँच पुत्र हुए जो पाण्डव कहलाये. ये सभी कृष्ण के फुफेरे भाई थे.
कृष्ण के रुक्मिणी से विवाह के पश्चात दो बच्चे हुए-एक पुत्र व एक पुत्री. पुत्र का नाम प्रद्युम्न था और पुत्री का चारुलता. प्रदुम्न का विवाह कामदेव की चिरयुवा पत्नी रति से करके कृष्ण ने शंकर जी के वचन की रक्षा की. चारुलता का विवाह उन्होंने राजा कृतवर्मा के पुत्र बली से किया.
दुर्योधन के षड्यन्त्र से लाक्षागृह में जलने से बाल-बाल बचे पाण्डव जब पांचाल (वर्तमान पंजाब) के राजा द्रुपद की पुत्री के स्वयम्वर में गये तो वहाँ अर्जुन ने धनुर्विद्या का अद्भुत परिचय दिया और द्रोपदी को ब्याह कर घर ले आये. द्रोपदी के स्वयम्बर में कृष्ण भी वहाँ उपस्थित थे. उस समय कृष्ण की आयु ४३ वर्ष और अर्जुन की २५ वर्ष की थी. कृष्ण को सहसा विश्वास न हुआ कि साधुओं के वेष में पाँचो तेजस्वी कौन हैं तो वे उनका पीछा करते हुए उनके घर जा पहुँचे. कुन्ती तब तक अपने पाँचो बेटों के पराक्रम से मुग्ध थीं और उन्होंने स्वयम्वर में जीती हुई वस्तु का बँटवारा पाँचो भाइयों में कर दिया. जब कृष्ण को वहाँ पहुँचकर यह पता चला कि ये पाँचो साधुवेश धारी पाण्डव उनके सगे फुफेरे भाई हैं तो उन्होंने उनसे भाई के स्थान पर मित्रवत् व्यवहार करना उचित समझा और अन्त तक उस मित्रता को निभाया भी. यूँ तो कृष्ण की मित्रता सभी पाँचो भाइयों से थी किन्तु अर्जुन से उन्हें कुछ विशेष ही लगाव था.
महाभारत का युद्ध जब लड़ा गया तो कृष्ण की आयु ८४ वर्ष और अर्जुन की ६६ वर्ष थी. जिस तरह उन्होंने गीता का उपदेश देकर अर्जुन को युद्ध क्षेत्र में डटे रहने के लिये तैयार किया वह अपने आप में एक मिसाल है.
कृष्ण के मार्गदर्शन में महाभारत का युद्ध १८ दिनों में ही समाप्त हो गया किन्तु उसके बाद की विभीषिका देखकर कृष्ण अत्यधिक विचलित हुए. एक संस्कृति का लोप होते हुए उन्होंने अपनी आँखों से देखा था. जो वे नहीं चाहते थे वह सब उनके सामने घटित हुआ था परन्तु इसके अतिरिक्त उनके पास कोई और चारा भी न था.भाई-भाई एक दूसरे के खून से नहा चुके थे और धर्म-अधर्म की लड़ाई कृष्ण के कुशल मार्गदर्शन में लड़ी गयी और जिधर कृष्ण थे उस पक्ष की विजय भी हुई.
धर्मग्रन्थों के अनुसार युग पुरुष योगेश्वर कृष्ण ने पृथ्वी पर पूरे १२५ वर्ष तक जीवन की लीला की और आज से ठीक ५११३ वर्ष पूर्व इस धरती से चले गये. कहते हैं उनके जाते ही कलयुग का प्रारम्भ हो गया. यह ईस्वी सन २०१३ चल रहा है. अर्थात कलयुग का आरम्भ इससे भी ३१०० वर्ष पूर्व हो चुका था.
टिप्पणी: ऊपर जो चित्र दिख रहा है वह विकिमीडिया कॉमन्स की इस साईट से लिया गया है - http://commons.wikimedia.org/wiki/File:Speech_of_Krishna_in_Virata%27s_court.jpg