जो हुई थी इमरजेंसी में ........
कविवर रामचंद्र द्विवेदी 'प्रदीप' के लिखे और संगीतकार सी. रामचंद्र के संगीत से सजे गीत ' ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी' को ५१ साल पहले जब नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में पहली बार लता मंगेशकर ने गाया था तो उनकी आँखें भर आयीं थीं.
मैंने इमरजेंसी के दौरान इसी गीत की तर्ज़ पर यह गीत लिखा था. बाद में यही गीत बम्बई से प्रकाशित "माधुरी" पत्रिका में १० जून १९७७ को प्रकाशित हुआ था. कल जब मुम्बई में लता दीदी ने नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में लाखों लोगों के साथ इसे गाया तो मुझे लगा कि अब आवश्यकता है कि इतिहास को बतलाया जाये. इसलिये अपने ब्लाग के पाठकों के लिये यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ.
ऐ मेरे वतन के लोगों! खुश होके मनाओ दिवाली!
मुद्दत के बाद कटी हैं वो गम की घटाएँ काली!!
पर मत भूलो हम सब पर ऐसे भी बुरे दिन आये!
कुछ याद उन्हें भी कर लो,
कुछ याद उन्हें भी कर लो ....
जो जुल्म गये थे ढाये......!!!
ऐ मेरे वतन के लोगों! जरा सोच के पिछली कहानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!
जब देश में थी दीवाली, बेटा थे सितम ढाने में!
मइया बैठी थी महल में, नेता थे कैदखाने में!!
घुटने पे टिकाकर माथा, सो गये थे वो अभिमानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!
कर संविधान संशोधन पहले छीनी आज़ादी!
ऊपर से लगाकर 'मीसा' नीचे से नसें कटवा दीं!!
फिर प्रेस पे लगाकर सेंशरशिप कर दी कड़ी निगरानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!
कोई नट कोई भाट बना था, कोई चमचा कोई चपरासी!
युवराज पे मरने वाला, कहता था उन्हें अविनाशी!!
इन्दिरा हि बस भारत हैं सुनकर थी हुई हैरानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!
चण्डी की तरह झपटी थी, नेहरू की बहादुर बेटी!
अपनी 'कुर्सी' को बचाने, कस ली थी कमर में पेटी!!
जिस-जिस से उन्हें खतरा था, उस-उस को पिलाया पानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!
जनता को समझ कर माफिक, झट से चुनाव करवाया!
पर पाँसा ऐसा पलटा, सबका हो गया सफाया!!
जब कुछ भि न बन पाया तो कह दिया कि सह लेते हैं!
खुश रहना खिदमतगारों! हम इस्तीफ़ा देते हैं!!
सोचो तो यह सच लगता है, कुर्सी की थी क्रूर कहानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!
2 comments:
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