अथ श्री गान्धीजी कथा
इन दोनों की अन्ततः, साजिश लायी रंग; मुल्लाजीको देखकर, सभीलोग थे दंग.
सभी लोग थे दंग, इधर नेहरू के साले; जगतनारायणमुल्ला,उधर सभी मतवाले.
कहें 'क्रान्त' दुर्दशा, कचहरीके कोनों की; देख-देख छाती फटती थी, इन दोनों की.
बिस्मिल,रोशनसिंहऔ' अशफाकुल्लाखान; सँग राजिन्दरलाहिड़ी, चारहुएबलिदान,
चार हुए बलिदान, मान भक्तों का डोला; भगतसिंह ने रँगा, बसन्ती, अपना चोला.
कहें 'क्रान्त' आजाद सरीखे, सब जिन्दादिल; देश-दुर्दशा देख, होगये सारे बिस्मिल.
वध कीना सांडर्स का, संसदमेंविस्फोट; भगतसिंह आजाद ने, करी तड़ातड़ चोट.
करी तड़ातड़ चोट , देश ने ली अँगड़ाई ; थाने फूँके गये , बैरकें गयीं जलाई.
कहें'क्रान्त' गान्धीके रोके क्रान्ति रुकी ना; क्रान्तिकारियोंने अंग्रेजोंका वध कीना.
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