अथ श्री गान्धीजी - कथा
बिछा फटाफट देश में, गुप्तचरों का जाल; यह 'काकोरी-काण्ड' था, उनके लिए सवाल.
उनके लिए सवाल, शीघ्र ही हल करना था ; वरना सत्तावन * जैसा, सबको मरना था.
कहें 'क्रान्त' सब पिंजड़ेमें, भरलिए ठकाठक;चालिस क्रान्ति-कपोत,जालको बिछाफटाफट.
काकोरी का मुकदमा, चला अठारह माह ; बड़े - बड़े लाये गये, इकबालिया गवाह.
इकबालिया गवाह , आह सारे भरते थे ; 'बनारसी' को देख, सभी अचरज करते थे.
कहें 'क्रान्त' गान्धी का था, वह भक्त टपोरी; जिसे पता था कैसे,हुआ काण्ड-काकोरी.
'बनारसी' ही जानता, था बिस्मिल का राज; उसे पता था राम* ही, छीन सकेगा ताज.
छीन सकेगा ताज, आज या कल गान्धी से; इसे हटाओ तभी, बचोगे इस आँधी से.
कहें 'क्रान्त' कंगन के, आगे झुकी आरसी; बना अप्रूवर* गान्धी, का चेला बनारसी.
*सत्तावन = १८५७, *राम ='बिस्मिल' का एक और नाम, *अप्रूवर=सरकारी गवाह "हाथ कंगन को आरसी क्या " एक मुहावरा है जिसका अर्थ है बड़े के आगे छोटे का अस्तित्व कुछ नहीं होता किन्तु यहाँ सारा केस ही उलट दिया गया काकोरी-षड्यन्त्र को अंग्रेजी-षड्यन्त्र में बदल दिया गया.पाठक चाहें तो हिन्दी विकिपीडिया में राम प्रसाद 'बिस्मिल' लेख देख सकते हैं. क्रान्त
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