सरस्वती-वन्दना
कमल पे बैठी हुई मरमरी वदन वाली, कलाम जिसकी इनायत से निखर जाता है.
सरस्वती से मेरी आज ये गुजारिश है, मुझपे आवाज औ ' अल्फाज की नेमत बख्से.
मैं चाहताहूँ कि तुलसीकी तरह होजाऊँ, कोई मानससी किताब इस जहाँको दे पाऊँ.
मेरे लिये ये काम कोई बड़ी बात नहीं, तू मेहरबान अगर एक बार हो जाए.
जो खरी बात कहे जिसमें सबकी खैर रहे, बुलन्दियों पे जो सबकी खुदी को पहुँचाये.
अदब वही है मेरी माँ उसी अदबके लिये, मेरी येजिन्दगी दुनियामें किसी काम आये.
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