करप्शन की पैदाइश
(आज भारत के दार्शनिक राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म-दिन है जिसे सम्पूर्ण देश में शिक्षक-दिवस के रूप में मनाया जाता है. उनको स्मरण करते हुए कुछ कवितायेँ कुण्डली छन्द में भ्रष्टाचार पर कुण्डली मार कर बैठे हुए इन अजगरों के कान खोलने के लिये इस ब्लॉग पर दी जा रही हैं. पाठकों की प्रतिक्रिया ही तो हमारा सम्बल है अतः उसमें कंजूसी न करें, धन्यवाद!)
सन सैंतालिस में हुआ, जब ये देश आज़ाद;
विश्व बैंक से तब मिली, खरबों की सौगात.
खरबों की सौगात, बाढ़ पैसे की आयी;
चूक गयी सरकार, न कोई रोक लगायी.
कहें 'क्रान्त' जब हुई, करप्शन की पैदाइश;
कांग्रेस के कुल में, वह था सन सैंतालिस.
कैसे होता देश में, घर-घर यहाँ विकास;
जड़ में मट्ठा डालकर, किया तन्त्र का नाश.
किया तन्त्र का नाश, बढ़ी अंग्रेजी शिक्षा;
चौपट होती गयी, गाँव की बेसिक शिक्षा.
कहें 'क्रान्त' जो जैसा बीज खेत में बोता;
उसका वैसा बृक्ष,और वैसा फल होता.
बेसिक शिक्षा पर यहाँ, होता कितना खर्च;
इस पर जब हमने करी, वर्षों बड़ी रिसर्च;
वर्षों बड़ी रिसर्च, समझ में तब ये आया;
क्यों घनघोर अशिक्षा का यह संकट आया.
कहें 'क्रान्त' यदि विश्व बैंक से मिले न भिक्षा;
यह सरकार न दे पायेगी बेसिक शिक्षा.
जस राजा तैसी प्रजा, प्रजातन्त्र का अर्थ;
प्रजातन्त्र में जस प्रजा, वैसा तन्त्र समर्थ.
वैसा तन्त्र समर्थ, अर्थ समझो ऐसे ही;
प्रजा मूढ़ तो प्रतिनिधि भी होंगे वैसे ही.
कहें 'क्रान्त' बेसिक शिक्षा का मतलब ताजा;
प्रजा रहेगी वैसी ही, चाहे जस राजा.
बेसिक शिक्षा मायने, बुनियादी तालीम;
नहीं मिले तो मानिये, होगा मुल्क यतीम.
होगा मुल्क यतीम, समस्या तब; सुलझेगी;
जब शिक्षा की नींव यहाँ मजबूत बनेगी.
कहें 'क्रान्त' मत विश्व बैंक से माँगो भिक्षा;
अपने दम पर आप सुधारो बेसिक शिक्षा.
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2 comments:
आदरणीय वर्मा जी , आपने कविता के माध्यम से सच्चाई बयान की है। इस सत्य को जन- जन तक पहुंचना होगा और लोगों को सचेत होना होगा अन्यथा भ्रष्टाचार दूर होना हमारा स्वप्न ही बन कर रह जाएगा। आज हमें आप जैसे शिक्षकों की बेहद आवश्यकता है। शिक्षक दिवस पर प्रणाम स्वीकार करें।
Actually these Congressi Politicians do not want the public to be literate otherwise they would have not patronised English Education System.
See me, I got my education in a remote village, where there was no school building even at that time; but my teachers were dedicated. That is why what I am today.
I never took any tution from outside, I simply attended the classes and got first class marks theoughout in my carrier. I have two chidren but I did not sent them to any Convent School. They are tought in Saraswati Shishu Mandir, the result is both of my son & daugher are the most obidient, disciplined and uncorrupt, because of the basic education given to them with moral ethics.
Madam! this is my personal experience which I would like to share with any body like you.
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