Thursday, September 8, 2011

Blood Group-"P"

मिर्ज़ा ग़ालिब की एक ग़ज़ल पर

बिस्मिल जी की ये कता पढ़ें और प्रतिक्रिया दें:

"हकीर होके न हिन्दोस्ताँ में यूँ रहिये.
ये जोर जुल्म जलालत  जहाँ  में  क्यूँ सहिये.
रहे रगों में रबाँ वो लहू नहीं 'बिस्मिल',
बहे जो कौम की खातिर उसे लहू कहिये."

शहीदे-आज़म पंडित राम प्रसाद 'बिस्मिल'
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नोट: "जो आँख ही से न टपके तो फिर लहू क्या है?"- (ग़ालिब). शब्दार्थ:  हकीर=इतना अधिक छोटा

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