Monday, October 17, 2011

Diety of our era

हमारे युग के देवता

हमने जिनको देवता समझ श्रद्धा स्वरूप पूजा की है,
ऐसा क्यों हमने किया कभी इसका कारण सोचा भी है.

देवता उसे कहते हैं जिसने सदा दिया हो लिया न हो,
वह कभी हुआ हो इससे क्या, पर अब भी वह ऐसा ही है.

दुर्गा शिव औ' हनुमान आदि सब इसी कोटि में आते हैं,
इसलिए इन्हें देवता कहा इसलिए इन्हें पूजा भी है.

क्या किसी देवता से कम था उन अमर शहीदों का चरित्र,
खोकर अपना सर्वस्व जिन्होंने हमको स्वतन्त्रता दी है.

उन अमर शहीदों की स्मृति में बनबायें हम भी मन्दिर,
क्या कभी आपने या हमने इस मुद्दे पर चिन्ता की है.

यदि सच समझो तो ये शहीद ही आज हमारे नायक हैं,
बच्चों से कभी कहानी में क्या इसकी भी चर्चा की है?

ये भी पूजा के लायक हैं, हम भी कितने नालायक हैं,
इन दीवानों को भुला  सिर्फ नेताओं की सेवा की है.

सौगन्ध राम की खाते हैं हम मन्दिर वहीं बनायेंगे,
यह कहने वालों से पूछो क्या इस पर कुछ सोचा भी है?

या जो जनता के पैसे से मूर्तियाँ  भव्य लगवाती  है,
उससे भी पूछो -" क्या इनकी खातिर थोड़ा पैसा भी है?"  



No comments: