1942 के आन्दोलन के असली सूत्रधार लालबहादुर शास्त्रीजी
"शत्रु-दलन के लिए काल बनकर आये थे,
पड़ी भँवर में नाव पाल बनकर आये थे;
कैसे तुम्हें सराहें कैसे नमन करें हम,
लालबहादुर यहाँ लाल बनकर आये थे."
आग्नेय कवि दामोदरस्वरूप 'विद्रोही' की इन पंक्तियों के साथ शास्त्रीजी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालता हुआ यह एतिहासिक प्रकरण हिन्दी विकिपीडिया से साभार उद्धृत किया जा रहा है:
दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी ने आजाद हिन्द फौज को "दिल्ली चलो" का नारा दिया, गान्धी जी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए ८ अगस्त १९४२ की रात में ही बम्बई से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेस में चले गये। ९ अगस्त १९४२ के दिन इस आन्दोलन को लालबहादुर शास्त्री सरीखे एक छोटे से व्यक्ति ने प्रचण्ड रूप दे दिया। १९ अगस्त, १९४२ को पूरे ११ दिन आन्दोलन चलाने के बाद शास्त्रीजी गिरफ्तार हो गये।
इस तथ्य का उल्लेख भारत की पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने धरती का लाल पुस्तक में अपने लेख मेरे राजनीतिक गुरु: शास्त्रीजी में किया था।
९ अगस्त १९२५ को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से राम प्रसाद 'बिस्मिल' के नेतृत्व में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ ) के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी काण्ड किया था जिसकी यादगार ताजा रखने के लिये पूरे देश में प्रतिवर्ष ९ अगस्त को "काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस" मनाने की परम्परा भगत सिंह ने प्रारम्भ कर दी थी और इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। गान्धी जी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत ९ अगस्त १९४२ का दिन चुना था। काश! गान्धी जी सन् १९२२ में चौरीचौरा काण्ड से घबड़ाकर अपना असहयोग आन्दोलन वापस न लेते तो इतने सारे देशभक्त फाँसी पर झूलकर अपना मूल्यवान जीवन क्यों होम करते ?
शास्त्रीजी बम्बई से चुपचाप खिसक लिए और इलाहाबाद जाकर आनंद भवन में जा ठहरे क्योंकि वहाँ पुलिस का परिंदा भी न पहुँच सकता था. उधर बम्बई में ९ अगस्त १९४२ को दिन निकलने से पहले ही काँग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और काँग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गान्धी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में सारी सुविधाओं के साथ, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबन्द रखने का नाटक ब्रिटिश साम्राज्य ने किया था ताकि जनान्दोलन को दबाने में बल-प्रयोग से इनमें से किसी को कोई हानि न हो। सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में ९४० लोग मारे गये १६३० घायल हुए, १८००० डी० आई० आर० में नजरबन्द हुए तथा ६०२२९ गिरफ्तार हुए। आन्दोलन को कुचलने के ये आँकड़े दिल्ली की तत्कालीन सेण्ट्रल असेम्बली में ऑनरेबुल होम मेम्बर ने पेश किये थे।
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