Tuesday, November 15, 2011

What is our contribution?

भ्रष्टाचार और हम

चर्चा है अत्यधिक भ्रष्ट हर सरकारी अधिकारी है,
जिसने  इसको जन्म दिया उसकी भी जिम्मेदारी है.
किसने उसको भ्रष्ट बनाने में कितना सहयोग किया,
कभी न ये हमने सोचा है यह कैसी लाचारी है?

जो समाज काफी बिगड़ा है आओ उसे बनायें कुछ,
हम औरों को छोड़ स्वयं निज जीवन में अपनायें कुछ,
जितने यहाँ बुद्धिजीवी हैं उनसे यही निवेदन है,
व्यक्ति-व्यक्ति निर्माण-भाव सारे समाज में लायें कुछ.

जिस समाज से जुड़े रहे हम कहो उसे क्या दे पाये,
अर्थ-स्वार्थ-चिन्तन में उसको इस स्थिति तक ले आये,
इस पर स्वयं विचार करें फिर जीवन में संकल्प करें,
वही करें जो धर्म-ध्वजा को कर्म-शिखा तक पहुँचाये.

हम फ्रेमों में तस्वीरों-से अपने को ही जड़े रहे,
बन्द किबाड़ें करके घर में अजगर जैसे पड़े रहे,
इसी मानसिकता के चलते बात नहीं कुछ बन पायी,
केवल बात बढ़ाने में ही अपनी जिद पर अड़े रहे.

जुड़ा धर्म के साथ कर्म है इस पर नहीं विचार किया,
प्रत्युत हमने कर्म छोडकर  केवल पापाचार किया,
यदि एकात्म-मनुज का चिन्तन हम समाज को दे पाते,
यहीं स्वर्ग होता धरती पर सबने यह स्वीकार किया.

लेकिन यह स्वीकार मात्र करने से काम नहीं होगा,
अपना सिर्फ प्रचार मात्र करने से काम नहीं होगा,
इस समाज में परिवर्तन अब नई पौध ही लायेगी,
कर्म-क्रान्ति हो गयी शुरू तो फिर आराम नहीं होगा.

जन-जन को दायित्व-वोध हम सबको करवाना होगा,
नीति-युक्त कर्तव्य-भाव अपने मन में लाना होगा,
एक और यदि जीवन है तो अपर ओर है मृत्यु खड़ी,
इन दोनों के बीच सही निर्णय को अपनाना होगा.

एक राष्ट्र का एक भाव हो संकल्पों की जिज्ञासा,
एक राष्ट्र का एक धर्म हो संकल्पों की अभिलाषा,
एक राष्ट्र का एक घोष "जय-हिन्द", घोषणा "जय-हिन्दी"
इन सबके अतिरिक्त राष्ट्र की और न कोई परिभाषा.

आओ फिर हुंकार करें कविवर दिनकर की वाणी में,
आओ फिर कोहराम मचा दें अखिल विश्व-ब्रह्माणी में,
एक बार सम्पूर्ण राष्ट्र उद्घोष कर उठे-"जय-हिन्दी"
स्वाभिमान का स्वर गूँजे भारतवासी हर प्राणी में. 

1 comment:

SANDEEP PANWAR said...

बेहतरीन प्रस्तुति।
शानदार अभिव्यक्ति