Saturday, January 28, 2012

Pious Prayer

सरस्वती- वन्दना
   (सिंहावलोकन छन्द)

मेरी मातु! शारदे! तू सार दे समग्रता का,  मूढ़-मति-मानस में सुमति उतार दे;
तार दे उन्हें भी जो हैं कुमति के मारे हुए, भूले भटके हुओं की भूलों को विसार दे;
सार दे तू 'क्रान्त' को समाज-हित-चिन्तन का, बिगड़े हुओं के तू चरित्र को सुधार दे;
धार दे प्रखरता की काव्य के मनीषियों को, प्रार्थना यही है तोंसे मेरी मातु! शारदे!!

मेरी मातु! शारदे! मैं आया हूँ तिहारे द्वार, करके कृपा तू इस ओर भी निहार दे;
हार दे मुझे जो तुने कर में गहा हुआ है, यश की सुगन्धि को तू जग में प्रसार दे;
सार दे सभी जो काम 'क्रान्त' के भी आये, जड़ होती इस ज्योति को तू कर से संवार दे;
वार दें जो देश औ' समाज हित जीवन को, ऐसी शक्ति दे मुझे तू मेरी मातु! शारदे!! 

Tuesday, January 17, 2012

Black Money is protected by Black Cat Commondos?

ये चमकते हुए चुनावी चेहरे?

पाँच राज्य में हो रहे, हैं इस बार चुनाव.
नेता-गण ले घूमते, ब्लैक-कैट वे भाव.

ब्लैक मनी से है जुड़ा, ब्लैक-कैट सम्बन्ध.
जिसपर है जितना मनी, उतना ही अनुबन्ध.

इनके चेहरों की  चमक, औ' देखिये जुनून.
उसके पीछे  है  छुपा, जनता का ही खून.

चाहे हों वह बहिनजी, या भैया का राज.
पीछे-पीछे चल रहे, सूट पहन जमराज.

हिम्मत हो तो घूमिये बिना कमाण्डो यार.
कोई ऊधम सिंह फिर, कर देगा उद्धार.



  

Saturday, January 14, 2012

Happy Earth Day

HAPPY EARTH DAY!
मकर संक्रान्ति पर नव वर्षाभिनन्दन

अहा! कर रहा अभिनन्दन नव-वर्ष तुम्हारा,
यह वसुधा का जन्म-दिवस हो सबको प्यारा.
हमें न मोहे  सुरा-सुन्दरी का आकर्षण,
राष्ट्र-प्रेम की बहे ह्रदय में अविरल धारा.

जिस धरती पर पैदा होकर मर जाते हैं,
उसके लिए होम कर दें यह जीवन सारा.
मानवता जो अब तक पड़ी कराह रही है,
उसके प्रति भी हो कुछ तो कर्तव्य हमारा.

नोट: मित्रो! १४ जनवरी मकर संक्रान्ति के दिन मैंने हम सबकी माँ धरतीमाँ के पावन जन्म-दिवस १४ जनवरी पर अपनी शुभ-कामनायें पहले अंग्रेजी में दी थीं उसके बाद उपरोक्त हिन्दी कविता में प्रस्तुत की थीं इस वर्ष नये नारे "हैप्पी अर्थ डे" के साथ समस्त देश वासियों को अपने ह्रदय से नव वर्ष की शुभ-कामनायें देता हूँ.  

Wednesday, January 11, 2012

A tribute to Lal Bahadur Shastri

  शास्त्री जी को विनम्र श्रद्धांजलि

भारत के अद्वितीय प्रधानमन्त्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री जी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनके द्वारा स्थापित नैतिक मूल्यों का वर्तमान  राजनीतिक  परिस्थितियों में अभी  भी महत्व है.

मेरी यह कविता उनकी पुण्य-तिथि पर समस्त देशवासियों को समर्पित करते हुए मेरी काव्य-कृति ललिता के आँसू से यहाँ पोस्ट की जा रही है;

हे मर्यादा के शुचि प्रतीक! ओ मानवता के पुण्य धाम!
हे अद्वितीय इतिहास पुरुष! शास्त्री! तुमको शत-शत प्रणाम!!

तुमने स्वदेश का कल देखा, अपने जीवन का आज नहीं;
तुमने मानव-मन की पुकार को किया नजर अंदाज नहीं.

तुमने तारों की प्रभा लखी,सूना आकाश नहीं देखा;
तुमने पतझड़ की झाड़ सही,कोरा मधुमास नहीं देखा.

तुमने प्रतिभा की पूजा की, प्रतिमा को किया न नमस्कार;
तुम सिद्धान्तों के लिए लड़े, धर्मों का किया न तिरस्कार.

तुमने जलते अंगारों पर, नंगे  पैरों  चलना  सीखा;
तुमने अभाव के आँगन में भी, भली-भाँति पलना सीखा.

तुमने निर्धनता को सच्चा वरदान कहा, अभिशाप नहीं;
तुमने बौद्धिक विराटता का, माना कोई परिमाप नहीं.

तुमने आदर्शवाद माना, माना  कोई अपवाद नहीं;
तुमने झोंपड़ियाँ भी देखीं, देखे केवल प्रासाद नहीं.

तुम वैज्ञानिक बन आये थे, खोजने सत्य विश्वास शान्ति;
तुमने आवरण नहीं देखा, खोजी अन्तस की छुपी कान्ति.

तुमने केवल पाया न अकेले ललिता का ही ललित प्यार;
तुमको जीवन पर्यन्त मिला, माँ रामदुलारी का दुलार.

तुमने शासन का रथ हाँका पर मंजिल तक पहुँचा न सके;
तुम हाय! अधर में डूब गये, जीवित  स्वदेश फिर आ न सके.

तुम मरे नहीं हो गये अमर, इतना है दृढ विश्वास मगर;
रह गया अधूरा "जय किसान" इसकी अब लेगा कौन खबर?

तुम थे गुलाब के फूल मगर दोपहरी में ही सूख गये;
तुमने था लक्ष्य सही साधा पर अन्तिम क्षण में चूक गये.

जो युद्ध-क्षेत्र में नहीं छुटा, पथ शान्ति-क्षेत्र में छूट गया;
जो ह्रदय रहा संकल्प-निष्ठ, क्यों अनायास ही टूट गया?

यह प्रश्न आज सबके उर में शंका की तरह उभरता है;
पर है वेवश इतिहास मौन, कोई टिप्पणी न करता है?

जो कठिन समस्या राष्ट्र अठारह वर्षों में सुलझा न सका;
भारत का कोई भी दुश्मन तुमको भ्रम में उलझा न सका.

वह कठिन समस्या मात्र अठारह महिने में सुलझा दी थी;
चढ़ चली जवानी अरि-दल पर तुमने वह आग लगा दी थी.

अत्यल्प समय के शासन में सम्पूर्ण राष्ट्र हुंकार उठा;
उठ गयी तुम्हारी जिधर दृष्टि उस ओर लहू ललकार उठा.

तुम गये आँसुओं से आँचल माँ वसुन्धरा का भीग गया;
जन-जन की श्रद्धांजलियों से पावन इतिहास पसीज गया.

हे लाल बहादुर! आज तुम्हारी चिर-प्रयाण-तिथि पर अशान्त-
मन से अपनी यह श्रद्धांजलि, तुमको अर्पित कर रहा 'क्रान्त'.


शब्द संकेत: ललिता (पत्नी का नाम) रामदुलारी (माँ का नाम)