वोटर लिस्ट में भी घोटाला
कल २८ फरवरी २००८ को मैं अपने घर से २५ किलोमीटर दूर चलकर नोएडा अपने बेटे स्वदेश बहू श्वेता और पत्नी किरन के साथ वोट डालने गया मेरी बेटी सोनू और दामाद सिद्धार्थ भी वहाँ पहुँच कर मेरा इन्तजार कर रहे थे. मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मेरा और मेरी पत्नी दोनों का ही वोटर लिस्ट में नाम नहीं था.
मैंने इसकी शिकायत वहाँ पर मौजूद चुनाव पर्यवेक्षकों से की तो उन्होंने कि वे इसमें हम दोनों की कोई मदद नहीं कर सकते. मैंने पूछा कि फिर इस मतदान पहचान पत्र का क्या उपयोग है? तो वे चुपचाप वहाँ से खिसक लिये यह कहते हुए कि चुनाव के बाद देखेंगे.
मैंने वहाँ पर मौजूद मीडियाकर्मियों से शिकायत करनी चाही तो वे भी कन्नी काट गये और उलटे हम पर यह आरोप लगाने लगे कि आपको मतदाता सूची में नाम देखकर ही घर से आना चाहिये था. मैंने कहा आप मेरी शिकायत रिकार्ड करिये तो वे यह कहकर कि थोडा रुकिए वहाँ पर आये एक प्रत्याशी की रिकार्डिंग करने लगे और फिर तेजी से गाड़ी में सवार होकर फूट लिये शायद उन्हें अगले बूथ पर किसी और प्रत्याशी के वोट डालने का संदेश आ गया था. मुझ जैसे वेचारे कई मतदाता इसी प्रकार मतदान पहचान पत्र होने के वाबजूद अपने मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित रह गये और मायूस होकर अपने-अपने घरों को लौट गये.
मैं ६५ साल की उम्र में पहली बार अपना वोट इस बार नहीं डाल सका. घर पहुँचा तो टीवी पर मीडिया अरविन्द केजरीवाल की खिचाई करने में बुरी तरह लगा हुआ था कि वे अपना वोट डाले बगैर गोवा भाग रहे थे. ऐसे-ऐसे आरोप लगा रहे थे मानों वे देश छोडकर पलायन कर रहे हों.
चर्चा पूरे दिन और देर रात गये तक बराबर चलती रही कि यह पूरी की पूरी अन्ना टीम दूसरों को तो सीख देती है मगर खुद वोट नहीं डालती. इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि मतदान पहचान पत्र होते हुए किसी भी व्यक्ति वोट डालने से वंचित रखना क्या उसके मौलिक अधिकारों का हनन नहीं हैं और क्या इसके लिये चुनाव आयोग पर मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये?
बहरहाल मुझे ऐसा लगता है कि इस बार विधान सभा चुनाव परिणाम चौंकाने वाले होंगे और एक प्रकार से यह चुनाव अब तक का सबसे बड़ा घोटाला सिद्ध होकर रहेगा. येन-केन-प्रकारेण विधान सभाओं की बागडोर केन्द्र सरकार के हाथ में होगी, दैवयोग से जिसका चुनाव-चिन्ह भी हाथ ही है.
कल २८ फरवरी २००८ को मैं अपने घर से २५ किलोमीटर दूर चलकर नोएडा अपने बेटे स्वदेश बहू श्वेता और पत्नी किरन के साथ वोट डालने गया मेरी बेटी सोनू और दामाद सिद्धार्थ भी वहाँ पहुँच कर मेरा इन्तजार कर रहे थे. मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मेरा और मेरी पत्नी दोनों का ही वोटर लिस्ट में नाम नहीं था.
मैंने इसकी शिकायत वहाँ पर मौजूद चुनाव पर्यवेक्षकों से की तो उन्होंने कि वे इसमें हम दोनों की कोई मदद नहीं कर सकते. मैंने पूछा कि फिर इस मतदान पहचान पत्र का क्या उपयोग है? तो वे चुपचाप वहाँ से खिसक लिये यह कहते हुए कि चुनाव के बाद देखेंगे.
मैंने वहाँ पर मौजूद मीडियाकर्मियों से शिकायत करनी चाही तो वे भी कन्नी काट गये और उलटे हम पर यह आरोप लगाने लगे कि आपको मतदाता सूची में नाम देखकर ही घर से आना चाहिये था. मैंने कहा आप मेरी शिकायत रिकार्ड करिये तो वे यह कहकर कि थोडा रुकिए वहाँ पर आये एक प्रत्याशी की रिकार्डिंग करने लगे और फिर तेजी से गाड़ी में सवार होकर फूट लिये शायद उन्हें अगले बूथ पर किसी और प्रत्याशी के वोट डालने का संदेश आ गया था. मुझ जैसे वेचारे कई मतदाता इसी प्रकार मतदान पहचान पत्र होने के वाबजूद अपने मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित रह गये और मायूस होकर अपने-अपने घरों को लौट गये.
मैं ६५ साल की उम्र में पहली बार अपना वोट इस बार नहीं डाल सका. घर पहुँचा तो टीवी पर मीडिया अरविन्द केजरीवाल की खिचाई करने में बुरी तरह लगा हुआ था कि वे अपना वोट डाले बगैर गोवा भाग रहे थे. ऐसे-ऐसे आरोप लगा रहे थे मानों वे देश छोडकर पलायन कर रहे हों.
चर्चा पूरे दिन और देर रात गये तक बराबर चलती रही कि यह पूरी की पूरी अन्ना टीम दूसरों को तो सीख देती है मगर खुद वोट नहीं डालती. इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि मतदान पहचान पत्र होते हुए किसी भी व्यक्ति वोट डालने से वंचित रखना क्या उसके मौलिक अधिकारों का हनन नहीं हैं और क्या इसके लिये चुनाव आयोग पर मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये?
बहरहाल मुझे ऐसा लगता है कि इस बार विधान सभा चुनाव परिणाम चौंकाने वाले होंगे और एक प्रकार से यह चुनाव अब तक का सबसे बड़ा घोटाला सिद्ध होकर रहेगा. येन-केन-प्रकारेण विधान सभाओं की बागडोर केन्द्र सरकार के हाथ में होगी, दैवयोग से जिसका चुनाव-चिन्ह भी हाथ ही है.