एक ओवर में सात छक्के
(एक नो बाल पर )
पहला
खुद मनमोहन सिंह भी रहे नहीँ बेदाग़
जाते-जाते लग गया उनकी छबि को दाग़
उनकी छबि को दाग़ स्वयं प्रस्ताव न लाते
और न उसको जोड़-तोड़ कर पास कराते
कहें 'क्रान्त' अपने पाले में बुला दुशासन
अपना चीरहरण करवाये खुद मनमोहन
दूसरा
सत्ता का यह स्वाद है सचमुच बड़ा विचित्र
इसमें आकर सन्त भी रहता नहीं पवित्र
रहता नहीं पवित्र समझ में अब यह आया
मनमोहन सा ज्ञानी भी जब चक्कर खाया
कहें 'क्रान्त' यह पहले ही से हमे पता था
कठपुतली के पीछे है धागा सत्ता का
तीसरा
धागा इनमें कौन है कठपुतली है कौन?
जनता सब कुछ जानती हम बिल्कुल हैं मौन
हम बिल्कुल हैं मौन मीडिया को कहने दो
जनता को यह कष्ट अकेले ही सहने दो
कहें 'क्रान्त' यदि भाग्य देश का अबकी जागा
तो जनता ही तोड़ेगी सत्ता का धागा.
चौथा
खुले खजाने लुट रही लोकतन्त्र की लाज
अरबों की सम्पत्ति है स्विस बैंक में आज
स्विस बैंक में आज वही जनतन्त्र चलाते
आम आदमी को महँगाई से मरवाते
कहें 'क्रान्त' उस प्रजातन्त्र के हैं क्या माने?
जनता का धन लूटा जाये खुले खजाने
पाँचवाँ
सत्ताइस में लिख गये बिस्मिल* जी यह बात
आजादी यदि मिल गयी हमको रातों-रात
हमको रातों-रात राज ऐसा आयेगा
जिसमें केवल पूँजीवाद पनप पायेगा
कहें 'क्रान्त' फिर रोज पिसेगी जनता इसमें
बिस्मिल जी यह बात लिख गये सत्ताइस में
*रामप्रसाद 'बिस्मिल' (१९२७ में फाँसी से ३ दिन पूर्व)
छठा
जनता यदि यह चाहती हो जीवन आसान
तो चुनाव में वह करे शत-प्रतिशत मतदान
शत-प्रतिशत मतदान करे संकल्प अभी से
बीजेपी या कांग्रेस को चुन ले जी से
कहें 'क्रान्त' दो दल की हो संसद में सत्ता
लग्गू-भग्गू-पिछलग्गू को चुने न जनता
सातवाँ
साँप - नेवला - मोर हैं एक साथ एकत्र
लोकतन्त्र को कर रहे मिलकर ये अपवित्र
मिलकर ये अपवित्र रात को मिलकर खाते
दिन को हमको हाथी जैसे दाँत दिखाते
कहें 'क्रान्त' कब टूटेगी यह स्वर्ण-शृंखला
कब तक और डसेंगे हमको साँप नेवला?
नोट: मित्रो! ये सातो कुण्डली २१ जुलाई २००८ को डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा स्वयं अपनी ही सरकार के पक्ष में प्रस्ताव लाने तथा अगले ही दिन २२ जुलाई २००८ को उसे पास कराने में हुई नौटंकी से आहत होकर मैंने लिखी थीं ये सातो कुण्डली नोएडा से चेतना मंच में यथावत प्रकाशित हुई थीं. जनता की याददाश्त बड़ी कमजोर होती है अत: इन्हें यहाँ ब्लॉग पर अप्लोड किया जा रहा है.