बिस्मिल जयन्ती (११ जून १८९७) पर विशेष
हमने बिस्मिल की तड़पती वो गज़ल देखी है
वक़्त-ए-रुख्सत जो लिखी थी वो नकल देखी है
जब क़दम वादी-ए-गुर्बत में उन्होंने रक्खा
हमने उस दौर की जाँबाज फसल देखी है
सरफ़रोशी की तमन्ना में भी कितना दम था
खाक में मिलने की हसरत पे अमल देखी है
आज जरखेज जमीनों में जो उग आयी है
हमने हालात की बीमार फसल देखी है
कल भी देखा था जो हम सबको हिला देता था
और जब कुछ भी न होता हो वो कल देखी है
'क्रान्त' अब मुल्क की हालत पे हँसी आती है
रंज होता था कभी सबको वो कल देखी है
हमने बिस्मिल की तड़पती वो गज़ल देखी है
वक़्त-ए-रुख्सत जो लिखी थी वो नकल देखी है
जब क़दम वादी-ए-गुर्बत में उन्होंने रक्खा
हमने उस दौर की जाँबाज फसल देखी है
सरफ़रोशी की तमन्ना में भी कितना दम था
खाक में मिलने की हसरत पे अमल देखी है
आज जरखेज जमीनों में जो उग आयी है
हमने हालात की बीमार फसल देखी है
कल भी देखा था जो हम सबको हिला देता था
और जब कुछ भी न होता हो वो कल देखी है
'क्रान्त' अब मुल्क की हालत पे हँसी आती है
रंज होता था कभी सबको वो कल देखी है
2 comments:
आज जरखेज जमीनों में जो उग आयी है
हमने हालात की बीमार फसल देखी है
'
क्रान्त' अब मुल्क की हालत पे हँसी आती है
रंज होता था कभी सबको वो कल देखी है...bahut khoob
न रहा उन भावों का उफान, आज तो हवा में सड़न घुली मिलती है..
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