यह हिन्दी है धर्म-ध्वजा अपनी!
जब देश स्वतन्त्र हुआ अपना तब ऐसी यहाँ कोई बात न थी,
हम एक थे भाषा के प्रश्न को लेकर नेताओं में भी दुभाँति न थी;
कथनी-करनी का जो फ़र्क बढ़ा उसने ही समस्यायें पैदा करीं,
अंग्रेजों के राज में देश की भाषा विदेश की भाषा के साथ न थी.
बड़े भाग से मानुस जोनि मिली इसे कर्म प्रधान बनाये रहो,
जहाँ कर्म सही वहाँ धर्म सही इस बात को ध्यान में लाये रहो,
इस देश में हिन्दी के जन्म-दिवस पे है 'क्रान्त' का नम्र-निवेदन ये -
"यह हिन्दी है धर्म-ध्वजा अपनी इस हिन्दी को आप उठाये रहो!"
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