अनुताप
(वेदना के दीप में यही कविता "दर्द बहुत बाकी था" शीर्षक से है)
कडुवाहट घुल गयी हमारे बीच न जाने किन लमहों में,
तुम सुन लेते तो कहने को मन का दर्द बहुत बाकी था.
हम दोनों गूँगे बहरे थे किन्तु इशारे हो जाते थे,
सुख-दुःख का परिचय करने हम एक किनारे हो जाते थे.
क्रूर लहर ने धक्का देकर हमको अलग-अलग कर डाला,
धार न होती तो बहने को स्नेहिल नीर बहुत बाकी था.
जीवन से प्रतिशोध ले लिया ऐसी कोई भूल नहीं थी,
चुप-चुप रहकर इन आँखों ने गलती कभी कबूल नहीं की.
क्या मालुम था पल भर में पहचान परायी हो जायेगी,
अपना लेते तो देने को उर में प्यार बहुत बाकी था.
(वेदना के दीप में यही कविता "दर्द बहुत बाकी था" शीर्षक से है)
कडुवाहट घुल गयी हमारे बीच न जाने किन लमहों में,
तुम सुन लेते तो कहने को मन का दर्द बहुत बाकी था.
हम दोनों गूँगे बहरे थे किन्तु इशारे हो जाते थे,
सुख-दुःख का परिचय करने हम एक किनारे हो जाते थे.
क्रूर लहर ने धक्का देकर हमको अलग-अलग कर डाला,
धार न होती तो बहने को स्नेहिल नीर बहुत बाकी था.
जीवन से प्रतिशोध ले लिया ऐसी कोई भूल नहीं थी,
चुप-चुप रहकर इन आँखों ने गलती कभी कबूल नहीं की.
क्या मालुम था पल भर में पहचान परायी हो जायेगी,
अपना लेते तो देने को उर में प्यार बहुत बाकी था.
1 comment:
काश प्रतीक्षा प्यार जगाती।
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