जीवन का गणित संस्कृत काव्यानुवाद
गर्व गुणाकार हो गये. बहु गुणाकार गर्वा: अभवन,
शून्य से विचार हो गये. शून्यवत सद्विचारा: अभवन.
अर्धव्यास हल तो कर लिया, अर्ध व्यासैव हल क्रीयते,
प्रश्न परिधि पार हो गये. पार परिधेय प्रश्ना: अभवन.
शक्ति वर्गमूल बन गयी, वर्गमूलैव शक्तिर भवत,
कष्ट घनाकार हो गये. घन समाकार कष्टा: अभवन.
शब्द लम्बवत तने रहे, लम्बवत शब्द ईदृश अभवन,
अर्थ निराधार हो गये. यत निराधार अर्था: अभवन.
दर्द घटाने के फेर में, यत्न यत्किंचितपि क्रीयते,
जोड़ के शिकार हो गये. क्लेश न्यूनात अधिका: अभवन.
मूलधन चुका न सके हम, मूलधन 'क्रान्त' मा मुच्यते,
सूद पर उधार हो गये. ब्याजवत ऋणग्रहीता अभवन.
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