होली रसिया
तूने कौन गली होरी रचाई रसिया !
तूने कौन गली .........
गेहूँ जौ की बाल मूछ पे दे-दे ताव बुलावे
दे-दे ताव बुलावे .........
अलसी ओढ़े शाल बैंजनी दूर खड़ी नटि जावे
दूर खड़ी नटि जावे ........
अरहर के झुरुमुट से खेले पुरवा आँख मिचौली
पछुवा के सँग सरसों बोली-
"होली आई होली !"
तूने अच्छी भली धूम मचाई रसिया !
तूने कौन गली होरी
रचाई रसिया !
तूने कौन गली ........
सेमल होंठ लगाये लाली आम खड़ा बौराये
आम खड़ा बौराये .........
तोता चोंच लड़ाये मैना मन ही मन मुस्काये
मन ही मन मुस्काये ........
सतरंगी पिचकारी पकड़े सूरज दिया दिखायी
नई नवेली उषा सिमट कर
घूँघट में शरमायी !
तूने गौने मिली बाकी भिगोयी अँगिया
तूने कौन गली होरी
मचाई रसिया
तूने कौन गली !
2 comments:
In the month of Fagun (March)a festival of colours 'HOLI' is observed in Northern India.In
this festival not only men & women,youngesters
& elders play 'Holi' with artificial colours but
the 'Nature' i.e.'Prakriti'also play with it's
criative outcomes.This lyrical poem reflects the
philosophical rythm of 'Nature' in eternal form.
Sadar....
Rangbhari prastuti, Holi ki shubhkamnayen..
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