स्वाधीन देश की राजनीति बतला कब तक,
कुर्सी की खातिर किस-किस को मरवाएगी ?
कुर्सी की खातिर किस-किस को मरवाएगी ?
सिलसिला राजनीतिक हत्याओं का आखिर,
इस लोकतन्त्र में कब तक और चलाएगी ?
जब रहा देश परतन्त्र, असंख्य शहीदों ने, देकर अपना बलिदान इसे आज़ाद किया,
पैसे के बल पर कांग्रेस में घुस आये, लोगों ने इसको अपने लिए गुलाम किया.
साजिश का पहले-पहल शिकार सुभाष हुए, जिनको विमान-दुर्घटना करके मरवाया.
फिर मत-विभेद के कारण गान्धी का शरीर, गोलियाँ दागकर किसने छलनी करवाया?
किस तरह रूस में शास्त्रीजी को दिया जहर,जिनकी क्षमताओंका युगको आभास नहीं,
यदि वे जीवित रहते तो इतना निश्चित था, 'नेहरू-युग' का ढूँढे मिलता इतिहास नहीं.
कश्मीर-जेल में किसके एक इशारे पर, मरवाये गये प्रखर नेता श्यामा प्रसाद ?
गाड़ी में किसने उपाध्यायजी को जाकर, कर दिया ख़त्म, मेटा विरोधियों का विवाद ?
नागरवाला की हत्या किसने करवाई? , पी०पी० कुमारमंगल का कोई पता नहीं ?
जनता शासनके आते ही डाक्टरचुघ का,परिवार ख़त्म करदिया,कौन जानता नहीं ?
इतना ही नहीं डाक्टर चुघ के हत्यारे, कर्नल आनन्द सफाई से हो गये साफ़.
कानून देश का अन्धा न्यायालय बहरा, आयोगों ने सारे गुनाह कर दिये माफ़.
जे०पी०के गुर्दों को किसने नाकाम किया, जो डायलिसिस की सूली पर झूलते रहे.
आपात-काल में कितने ही निर्दोष मरे, बलिहारी तेरी समय, लोग भूलते रहे.
खागयी गुलाबी-चना-काण्ड की बहस जिन्हें, वे ललितनारायणमिश्र जो कि जप लिये गये.
'रा' के कितने ही अधिकारी गण मार दिये. पर सभी ' जीप-दुर्घटना' में शो किये गये.
जो धूमकेतु - सा राजनीति में उभरा था, उस बेचारे संजय का किसने किया काम ?
फिर बुलेटप्रूफ ब्लाउज उतार हत्यारिन ने, कर दिया देश की कुर्सी का किस्सा तमाम .
तू हिन्दू-मुस्लिम कभी सिक्ख को हिन्दू से , आपस में लड़वा कर कुर्सी हथियाती है.
हिन्दोस्तान की भोली जनता पता नहीं , हर बार तेरे चक्कर में क्यों आ जाती है ?
जो हवावाज थे उनको कुर्सी दी इसने , पर वह भी तेरी मनसा भाँप नहीं पाये.
लिट्टे से पंगा लिया और मुँह की खायी , पेरम्बदूर में अपनी जान गँवा आये.
उनकी हत्यारिन से चुपके-चुपके जाकर, तू यदा-कदा तन्हाई में मिल आती है.
जिसको संसद पर हमला करने भेजा था,तू ही फाँसी से अब तक उसे बचाती है.
12 comments:
इनमे से कई नाम ऐसे हैं जिनके बारे में पता नही, जैसे नागरवाला,पी०पी० कुमारमंगल,डाक्टर चुघ वगैरह.
सही बात सामने लाने के लिए कृपया इसपर भी एक लेखमाला पोस्ट कीजिये ......
This poem was published in 'Swadesh' (Gwalior) after the death of Mrs Indira Gandhi. My another poem was published in a book 'Ekta Ka Sandesh' after the death of Mr Rajiv Gandhi. Even then these politicians are not taking it into their notice. But I am still performing my duty so that any day the public of India arises, awakens and stop not till the goal is achieved.
जानकारी के लिये धन्यवाद.
adarniya Krant ji
Hum sabhee aalochna hi karte rahten hain. hamne desh ko kya diyaa ye sochne ki baat hai. Hum apne andar ahankar palkar ek doosre par keechad uchaalte rahte hain is dhara se ham alag nahee hain. hamaara buddhijeevee varg bhee aaj bhramit hai. desh ki parvah kis ko hai. aur is gandi rajneeti ko kaun nahee jantaa ek majdoor se he pooch leejiye.
dixit sb
आदरणीय दीक्षित जी!
हमने ६५ वर्ष के इस छोटे से जीवन में बहुत कुछ दिया है. मसलन रामप्रसाद 'बिस्मिल' का जब्तशुदा साहित्य खोजकर दिया, १८५७ से १९४७ तक का पूरे ९० वर्ष का क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास देश को दिया लालबहादुर शास्त्री के जीवन पर "ललिता के आँसू" जैसा प्रबन्ध काव्य हिन्दी जगत को दिया जिसको विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ प्रबन्ध काव्यों में ८६ वाँ स्थान दिया गया और अभी भी बहुत कुछ देना है. पर एक प्रश्न आप और सब से पूछना चाहता हूँ देश समाज और आपने हमें क्या दिया? गुर्बत,मँहगाई,उपेक्षा और हिकारत. यदि मेरी बात चुभी हो तो माफ कीजियेगा पर क्या करें सच्चाई बड़ी कड़वी होती है हर किसी को हजम नहीं होती.
आपका ही
क्रान्त
(Mobile:09811851477)
प्रिय बन्धु!
आपकी पीड़ा को कोई मुझ जैसा सहृदय ही समझ सकता है सब नहीं!
आपकी पुस्तक "ललिता के आँसू" मैंने एक ही बार में पूरी की पूरी पढ़ डाली थी; उसके समग्र-कृति-दर्शन में डॉ. रामानंद शर्मा ने बड़ी सटीक टिप्पणी की है-"ऐसे एकान्त साधकों से ही हिन्दी का भला होगा!"
आप आयु में मुझसे बेशक छोटे होंगे परन्तु कृतित्व में निस्संदेह बहुत बड़े हैं....
मैं आपकी साधना के सामने नत-मस्तक हूँ!
आपका
(पहचानिये कौन हो सकता है?)
आदरणीय भाई साहब!
प्रणाम!
आपको भला कैसे भूल सकता हूँ? आपने ही यह कविता श्रीयुत वचनेश त्रिपाठी जी को इस अनुरोध
के साथ भिजवाई थी कि वे इसे राष्ट्रधर्म में छापें.
और उन्होंने इसे छापा भी...
मेरी पुस्तक के विमोचन के समय आप दिल्ली भी आये थे आपका उस समय का चित्र भी मेरे पास है
जब रज्जू भैया ने अपने इर्द-गिर्द बढ़ती भीड़ को देखकर कहा था--"चित्र को विचित्र मत बनाओ!"
कभी हमारे गरीबखाने पर तशरीफ लाइये बहुत सारी शिकायतें हैं जो मिल बैठकर ही दूर हो पायेंगी...
आपने जो टिप्पणी की मैं उसके लायक तो रत्ती भर भी नहीं...
क्या आपका फोन नम्बर वही है या बदल गया? बहरहाल आज ही आपसे फोन पर सम्पर्क करूँगा....
bilkul sahi likha aapne
In today's politics nobody likes the
straight forward men like Krant M.L.
Verma. Everybody requires yesman arround himself.
हत्यारा राजनीति कटु सत्य
Bahut badiya sir.
Bdiya poem hai
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