Sunday, September 11, 2011

Hail Hindi (14 Sept 2011)

हिन्दी-दुर्दशा

हिन्दी में छेड़ा गया, आज़ादी का युद्ध;
तिलक-गान्धी-बोस थे,कोई नहीं विरुद्ध.
कोई नहीं विरुद्ध , मराठी या गुजराती;
बंगाली ने स्नेह दिया, यह है वह बाती.
कहें'क्रान्त'होंतमिल-तेलगू,या हों सिन्धी;
सभी जनों ने केवल अपनाई थी हिन्दी.

उसका ही परिणाम है, देश हुआ आज़ाद;
हम भाषा के भेद को, भुला हुए आबाद.
भुला हुए आबाद,किन्तु जब अवसर आया;
संविधान बनने का तब क्यों उसे भुलाया.
कहें 'क्रान्त' है दोष बताओ,इसमें किसका;
जनता का तो नहीं, बना जो नेता उसका.

आज़ादी के बाद जब, अपना बना विधान;
हिन्दी भाषा को नहीं,मिला उचित स्थान.
मिला उचित स्थान, अड़ गये थे नेहरूजी; 
बोले -  "पन्द्रह  वर्ष  रहेगी   बस अंग्रेजी."
कहें 'क्रान्त' कर गये, एकता की बरबादी;
हिन्दी को कम  करने की , देकर आज़ादी. 

हिन्दी ने हमको दिया, आज़ादी का स्वाद;
कूटनीति ने कर दिया, हिन्दी को बरबाद.
हिन्दी को बरबाद, कुटिल केकई न मानी;
पन्द्रह वर्षों में  इंग्लिश, हो गयी सयानी.
कहें 'क्रान्त' बन गयी सुहागन,रचकर बिन्दी;
सौतन करती राज, हो गयी बाँदी हिन्दी.

1 comment:

ओमप्रकाश यती said...

hindi ki durdasha ki prishthabhoomi ka kadwa sach bayan karne ke liye badhaai.....