हिन्दी-दुर्दशा
हिन्दी में छेड़ा गया, आज़ादी का युद्ध;
तिलक-गान्धी-बोस थे,कोई नहीं विरुद्ध.
कोई नहीं विरुद्ध , मराठी या गुजराती;
बंगाली ने स्नेह दिया, यह है वह बाती.
कहें'क्रान्त'होंतमिल-तेलगू,या हों सिन्धी;
सभी जनों ने केवल अपनाई थी हिन्दी.
उसका ही परिणाम है, देश हुआ आज़ाद;
हम भाषा के भेद को, भुला हुए आबाद.
भुला हुए आबाद,किन्तु जब अवसर आया;
संविधान बनने का तब क्यों उसे भुलाया.
कहें 'क्रान्त' है दोष बताओ,इसमें किसका;
जनता का तो नहीं, बना जो नेता उसका.
आज़ादी के बाद जब, अपना बना विधान;
हिन्दी भाषा को नहीं,मिला उचित स्थान.
मिला उचित स्थान, अड़ गये थे नेहरूजी;
बोले - "पन्द्रह वर्ष रहेगी बस अंग्रेजी."
कहें 'क्रान्त' कर गये, एकता की बरबादी;
हिन्दी को कम करने की , देकर आज़ादी.
हिन्दी ने हमको दिया, आज़ादी का स्वाद;
कूटनीति ने कर दिया, हिन्दी को बरबाद.
हिन्दी को बरबाद, कुटिल केकई न मानी;
पन्द्रह वर्षों में इंग्लिश, हो गयी सयानी.
कहें 'क्रान्त' बन गयी सुहागन,रचकर बिन्दी;
सौतन करती राज, हो गयी बाँदी हिन्दी.
1 comment:
hindi ki durdasha ki prishthabhoomi ka kadwa sach bayan karne ke liye badhaai.....
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