बिस्मिल का हिन्दी-प्रेम
"न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना.
मुझे वर दे यही माता ! रहूँ भारत पे दीवाना.
मुझे हो प्रेम हिन्दी से, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी;
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहनना- ओढना- खाना.
रहे मेरे भवन में रौशनी , हिन्दी - चिरागों की;
कि जिसकी लौ पे जलकर खाक हो 'बिस्मिल'-सा परवाना."
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मन की लहर पुस्तक से साभार
2 comments:
Bahut Accha Verma Ji...
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"न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना.
मुझे वर दे यही माता ! रहूँ भारत पे दीवाना.
Poet's love for Hindi and his country is mesmerizing. Hats off to him.
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