जन्मदिन पर विशेष:
नलगढ़ा (नोएडा) में भगतसिंह
मित्रो! गत वर्ष मैंने इस ब्लॉग पर अमर शहीद पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल' के भूमिगत जीवन के बारे में एक पोस्ट लिखी थी.
इस बार क्या अद्भुत संयोग है कि मुझे आज एक ऐसे पवित्र स्थान को देखने का सौभाग्य मिला जिसके बारे में केवल कुछ समाचार पत्रों में पढ़ा था प्रत्यक्ष देखा न था. पेश है उसकी एक संक्षिप्त रिपोर्ट:
सन १९१८ में "मैनपुरी काण्ड" करके बिस्मिल ने दिल्ली के समीप यमुना व हिन्डन नदी के मध्य स्थित बीहडों में शरण ली थी और यहाँ के एक छोटे से गाँव रामपुर जागीर के गूजरों के जानवर चराये थे उसके बाद वे यहाँ से कोसमा अपनी बहन के घर चले गये. इस बात को जब उन्होंने अपनी क्रान्तिकारी पार्टी के लोगों को बताया तो उन्हें यह स्थान छुपने के लिये सबसे ज्यादा सुरक्षित लगा.
आजकल जहाँ "नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे" बन चुका है उससे बिलकुल सटे एक छोटे से गाँव नलगढ़ा में ग्रेटर नोएडा आर्य समाज की ओर से सरदार भगतसिंह के जन्मदिन पर एक यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने वक्ता के रूप में मुझे भी आमन्त्रित किया था. कार्यक्रम के दौरान आर्यदीप पब्लिक स्कूल के स्वामी बिजेन्द्र आर्य जी ने जब यह बात बतायी कि 'क्रान्त' जी यही वह गाँव है जहाँ कभी पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल', चन्द्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु और भगतसिंह आदि अनेक क्रान्तिकारी छुपकर बरतानिया हुकूमत के दौरान अपनी योजनायें बनाया करते थे. केवल इतना ही नहीं, उन्होंने दिल्ली असेम्बली में जो बम फेंका था फेंकने से पूर्व उस जैसे अनेकों बम बनाकर उनका परीक्षण भी इसी जगह किया था. वह पत्थर जिस पर रखकर उस बम का परीक्षण किया था वह इस गाँव के कुछ सरदार लोगों ने आज भी सुरक्षित रखा हुआ है.
मेरी उत्सुकता यह बात सुनकर और भी अधिक बढ़ गयी तो वे लोग मुझे गुरूद्वारे में ले गये. मैंने पहले गुरूद्वारे जाकर पूरी श्रद्धा से पवित्र गुरु ग्रन्थ साहब को नमन किया फिर उस पत्थर को देखने की इच्छा प्रकट की.
मेरे साथ बीटावन सेक्टर की आर.डब्लू.ए. के महामन्त्री हरीन्द्र भाटी अध्यक्ष देवेन्द्र टाइगर, आर्य समाज ग्रेटर नोएडा के रामेश्वर सरपंच, पूर्व न्यायाधीश जयप्रकाश नागर, देवमुनि जी, जनमेजय शास्त्री, धर्मवीर प्रधान व नलगढ़ा गाँव के सरदार सुखदेवसिंह, श्रीमती सुरजीत कौर, जसपालसिंह, महेन्द्रपाल सिंह व अन्य कई लोग थे. मैंने उस पत्थर को बड़े ध्यान से देखा और उसके कई कोणों से फोटो लिये. उन फोटुओं को यहाँ इस ब्लॉग पर दे रहा हूँ.
बिजेन्द्र आर्य ऊँगली के इशारे से पत्थर के एक साइड में बने गड्ढे को दिखाते हुए.
परीक्षण के दौरान बम-विस्फोट से यह गड्ढा काला हो गया साफ़ दिखायी देता है.
इसी पत्थर की दूसरी साइड में बना हुआ लगभग उसी आकार का एक और गड्ढा.
पत्थर के ऊपरी सिरे पर बारूद बनाने का वह स्थान जिस पर शोरा, गन्धक व इमली का कोयला रखकर उसको चटनी की तरह पीसकर बारूद तैयार होता था.
पत्थर को देखते हुए कार्यक्रम में पहुँचे अन्य लोगों की तस्वीर भी ले ली जिससे पत्थर की लम्बाई, चौड़ाई व मोटाई का सरसरी तौर पर अनुमान लगाया जा सके.
इस पत्थर को बड़ी बारीकी से देखने के बाद लगा कि यह तो पुरातत्व विभाग के लिये नितान्त शोध की वस्तु है. निस्संदेह यह पत्थर पोखरण के उस मैदान से भी अधिक महत्व का है जहाँ मिसाइलमैन ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और अटलबिहारी वाजपेयी जी की उपस्थिति में भारत ने कभी परमाणु परीक्षण करने का पहली बार साहस किया था. और अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियों को इसकी भनक तक नहीं लगने दी थी.
नलगढ़ा में जो गुरुद्वारा है उसकी चहारदीवारी से सटाकर सुरक्षित रखे गये इस पत्थर का ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व है. क्या केन्द्र अथवा राज्य सरकार इस स्थल को संरक्षण प्रदान करेगी या केवल सत्तारूढ़ नेताओं की छवि बनाने में ही जुटी रहेगी? फिर चाहे वह नेहरू-गान्धी परिवार हो, सुश्री मायावती हों या कोई और?
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टिप्पणी: दार माने फाँसी का तख्ता
नलगढ़ा (नोएडा) में भगतसिंह
"सर देकर जो दार पर,
कहलाये सरदार.
मुँह तो उज्ज्वल कीजिये,
सरदारों का यार !"
मित्रो! गत वर्ष मैंने इस ब्लॉग पर अमर शहीद पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल' के भूमिगत जीवन के बारे में एक पोस्ट लिखी थी.
इस बार क्या अद्भुत संयोग है कि मुझे आज एक ऐसे पवित्र स्थान को देखने का सौभाग्य मिला जिसके बारे में केवल कुछ समाचार पत्रों में पढ़ा था प्रत्यक्ष देखा न था. पेश है उसकी एक संक्षिप्त रिपोर्ट:
सन १९१८ में "मैनपुरी काण्ड" करके बिस्मिल ने दिल्ली के समीप यमुना व हिन्डन नदी के मध्य स्थित बीहडों में शरण ली थी और यहाँ के एक छोटे से गाँव रामपुर जागीर के गूजरों के जानवर चराये थे उसके बाद वे यहाँ से कोसमा अपनी बहन के घर चले गये. इस बात को जब उन्होंने अपनी क्रान्तिकारी पार्टी के लोगों को बताया तो उन्हें यह स्थान छुपने के लिये सबसे ज्यादा सुरक्षित लगा.
आजकल जहाँ "नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे" बन चुका है उससे बिलकुल सटे एक छोटे से गाँव नलगढ़ा में ग्रेटर नोएडा आर्य समाज की ओर से सरदार भगतसिंह के जन्मदिन पर एक यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने वक्ता के रूप में मुझे भी आमन्त्रित किया था. कार्यक्रम के दौरान आर्यदीप पब्लिक स्कूल के स्वामी बिजेन्द्र आर्य जी ने जब यह बात बतायी कि 'क्रान्त' जी यही वह गाँव है जहाँ कभी पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल', चन्द्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु और भगतसिंह आदि अनेक क्रान्तिकारी छुपकर बरतानिया हुकूमत के दौरान अपनी योजनायें बनाया करते थे. केवल इतना ही नहीं, उन्होंने दिल्ली असेम्बली में जो बम फेंका था फेंकने से पूर्व उस जैसे अनेकों बम बनाकर उनका परीक्षण भी इसी जगह किया था. वह पत्थर जिस पर रखकर उस बम का परीक्षण किया था वह इस गाँव के कुछ सरदार लोगों ने आज भी सुरक्षित रखा हुआ है.
मेरी उत्सुकता यह बात सुनकर और भी अधिक बढ़ गयी तो वे लोग मुझे गुरूद्वारे में ले गये. मैंने पहले गुरूद्वारे जाकर पूरी श्रद्धा से पवित्र गुरु ग्रन्थ साहब को नमन किया फिर उस पत्थर को देखने की इच्छा प्रकट की.
मेरे साथ बीटावन सेक्टर की आर.डब्लू.ए. के महामन्त्री हरीन्द्र भाटी अध्यक्ष देवेन्द्र टाइगर, आर्य समाज ग्रेटर नोएडा के रामेश्वर सरपंच, पूर्व न्यायाधीश जयप्रकाश नागर, देवमुनि जी, जनमेजय शास्त्री, धर्मवीर प्रधान व नलगढ़ा गाँव के सरदार सुखदेवसिंह, श्रीमती सुरजीत कौर, जसपालसिंह, महेन्द्रपाल सिंह व अन्य कई लोग थे. मैंने उस पत्थर को बड़े ध्यान से देखा और उसके कई कोणों से फोटो लिये. उन फोटुओं को यहाँ इस ब्लॉग पर दे रहा हूँ.
बिजेन्द्र आर्य ऊँगली के इशारे से पत्थर के एक साइड में बने गड्ढे को दिखाते हुए.
परीक्षण के दौरान बम-विस्फोट से यह गड्ढा काला हो गया साफ़ दिखायी देता है.
इसी पत्थर की दूसरी साइड में बना हुआ लगभग उसी आकार का एक और गड्ढा.
पत्थर के ऊपरी सिरे पर बारूद बनाने का वह स्थान जिस पर शोरा, गन्धक व इमली का कोयला रखकर उसको चटनी की तरह पीसकर बारूद तैयार होता था.
पत्थर को देखते हुए कार्यक्रम में पहुँचे अन्य लोगों की तस्वीर भी ले ली जिससे पत्थर की लम्बाई, चौड़ाई व मोटाई का सरसरी तौर पर अनुमान लगाया जा सके.
इस पत्थर को बड़ी बारीकी से देखने के बाद लगा कि यह तो पुरातत्व विभाग के लिये नितान्त शोध की वस्तु है. निस्संदेह यह पत्थर पोखरण के उस मैदान से भी अधिक महत्व का है जहाँ मिसाइलमैन ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और अटलबिहारी वाजपेयी जी की उपस्थिति में भारत ने कभी परमाणु परीक्षण करने का पहली बार साहस किया था. और अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियों को इसकी भनक तक नहीं लगने दी थी.
नलगढ़ा में जो गुरुद्वारा है उसकी चहारदीवारी से सटाकर सुरक्षित रखे गये इस पत्थर का ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व है. क्या केन्द्र अथवा राज्य सरकार इस स्थल को संरक्षण प्रदान करेगी या केवल सत्तारूढ़ नेताओं की छवि बनाने में ही जुटी रहेगी? फिर चाहे वह नेहरू-गान्धी परिवार हो, सुश्री मायावती हों या कोई और?
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टिप्पणी: दार माने फाँसी का तख्ता