चौदह का चुनाव
मित्रो! इस समय चुनाव-चर्चा चरम पर है ऐसे में हम जैसे आम-आदमी की सोच को दर्शाती एक गज़ल पोस्ट कर रहा हूँ यह कालजयी रचना है जिसका मूल्यांकन शायद कभी समय ही करेगा!
हम तो ले देके दौड़ लेते हैं!
वे हवाओं से होड़ लेते हैं!
पैंतरेबाज लोग इतने हैं,
मुँह सफाई से मोड़ लेते हैं!
आज उँगली पकड़ के चलते हैं,
कल कलाई मरोड़ लेते हैं!
तोड़ने के हुनर में माहिर हैं,
दल इशारों में तोड़ लेते हैं!
हमसे सीधा ज़रब नहीं जुड़ता,
वे तो तकसीम जोड़ लेते हैं!
'क्रान्त' इनका यकीन मत करना,
ये मुखौटे भी ओढ़ लेते हैं!!
मित्रो! इस समय चुनाव-चर्चा चरम पर है ऐसे में हम जैसे आम-आदमी की सोच को दर्शाती एक गज़ल पोस्ट कर रहा हूँ यह कालजयी रचना है जिसका मूल्यांकन शायद कभी समय ही करेगा!
हम तो ले देके दौड़ लेते हैं!
वे हवाओं से होड़ लेते हैं!
पैंतरेबाज लोग इतने हैं,
मुँह सफाई से मोड़ लेते हैं!
आज उँगली पकड़ के चलते हैं,
कल कलाई मरोड़ लेते हैं!
तोड़ने के हुनर में माहिर हैं,
दल इशारों में तोड़ लेते हैं!
हमसे सीधा ज़रब नहीं जुड़ता,
वे तो तकसीम जोड़ लेते हैं!
'क्रान्त' इनका यकीन मत करना,
ये मुखौटे भी ओढ़ लेते हैं!!
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