Saturday, March 30, 2013

अनुताप-Hindi version of the poem "Repentence'

             अनुताप
(वेदना के दीप में यही कविता "दर्द बहुत बाकी था" शीर्षक से है)

कडुवाहट घुल गयी हमारे बीच न जाने किन लमहों में,
तुम सुन लेते तो कहने को मन का दर्द बहुत बाकी था.


हम दोनों गूँगे बहरे थे किन्तु इशारे हो जाते थे,
सुख-दुःख का परिचय करने हम एक किनारे हो जाते थे.


क्रूर लहर ने धक्का देकर हमको अलग-अलग कर डाला,
धार न होती तो बहने को स्नेहिल नीर बहुत बाकी था.


जीवन से प्रतिशोध ले लिया ऐसी कोई भूल नहीं थी,
चुप-चुप रहकर इन आँखों ने गलती कभी कबूल नहीं की.


क्या मालुम था पल भर में पहचान परायी हो जायेगी,
अपना लेते तो देने को उर में प्यार बहुत बाकी था. 


Repentance

Repentance

Dear Friends!

This is the English version of my Hindi Poem "दर्द बहुत बाकी था" from my book "Vedna Ke Deep" awarded by Bhawani Prasad Mishra Samman in 2002.

The same poem was included in the other book of mine titled as
"स्वप्न भ्रंश/Dead Dream". Since the events in our life are so common that they can not be forgotten by any body.

I am posting this poem for the international viewers who off and on call me on phone and want to read some of the most wonderful mishappenings in my life.

God knows better I can not guess,
What were the moments that departed us.
Had you listened to me at least,
I had gross of grief to tell.

Though we both were dumb and deaf,
Yet some signs were in between us.
In order to share our joy and grief,
We were at par to fairly dicuss.

But the cruel wave kept apart us so,
That way now we can not go.
Had there been no flow of ego,
I had plenty of plot to spell.

You took revenge till life unto me,
Such was not the fault of mine.
No doubt I kept myself mum,
It does'nt mean I confessed fine.

What was known to me till then, 
That friendship would fade all of sudden.
Had you taken me into your heart,
I had a lot of love to dispel. 

Monday, March 11, 2013

Pandit Ramchandra Dehlavi - Vedic Philosopher

पण्डित रामचन्द्र देहलवी शास्त्रार्थ महारथी  
सौजन्य: http://www.aryasamaj.org/newsite/node/591
मित्रो! बहुत कम लोग जानते होंगे कि आर्य समाज
के विद्वान पण्डित रामचन्द्र देहलवी पुरानी दिल्ली के फव्वारे पर खुलेआम विद्वानों से शास्त्रार्थ किया
करते थे. इन्टरनेट की ही एक वेबसाइट से हमें यह
प्राप्त हुआ है जिसे हम अपने ब्लॉग के प्रिय पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे है हैं.

उनका यहाँ पर जो चित्र दिया गया है उसे भी
हमने http://www.tankara.com/images/RAMCHAN.jpg के सौजन्य से लेकर यहाँ पोस्ट किया है.


ईश्वर पूजा का वैदिक स्वरूप

ओउम् ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्याञ्जगत्|
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा ग्रृधः कस्य स्विद्धनम्||
ओउम् कुर्वन्नेवेह कर्माणि, जिजीविषेच्छतं समाः|
एवं त्व‌यि नान्येतोSस्ति न कर्म लिप्यते नरे||


माननीय बहिनों व भाइयों,

आज का विषय 'ईश्वर पूजा का वैदिक प्रकार, परमात्मा की उपासना का वैदिक प्रकार क्या है' यह आपकी सेवा में वर्णन करूँगा| क्योंकि इसमे कुछ भाग ऐसा है जिसमें ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है इसलिए मेरा यह निवेदन है कि चारों और से अपनी तबीयत हटाकर मेरी और केन्द्रित कर लें ताकि बात जल्दी समझ में आए|

मैंने कल बताया था कि ईश्वर, जीव और प्रकृति ये तीन अनादि पदार्थ है| और इनके अनादि होने का वैज्ञानिक तरीका वर्णन किया था जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता| आज उसे मैं फिर दोहराता हूँ कि जो चीज सबसे छोटी है वह नाकाबिले तकसीम है, उसका विभाग नहीं हो सकता और जो सबसे बड़ी है उसका भी विभाग नहीं हो सकता| यह दो पैमाने हैं जिनसे किसी वस्तु के अनादित्व को जाना जा सकता है| इन दो पैमानों को, मैंने आपके जहन में ताजा करने के लिए दोहरा दिया है| इन दो पैमानों से दुनिया की चीजों को नाप लीजिए| दुनिया में दो प्रकार की चीजें हैं, एक जड़ और दूसरी चेतन| जो जड़ हैं वे ज्ञान शून्य हैं उनमें ज्ञान नहीं है| दूसरी चेतन हैं जिनमें ज्ञान है| इन दोनों प्रकार की चीजों को नाप लीजिए| चेतन में सबसे छोटा जीवात्मा है और सबसे बड़ा परमात्मा है| जड़ वस्तुओं में सबसे छोटा परमाणु है और सबसे बड़ा आकाश है| यह वैज्ञानिक तरीका है जिससे मैंने इन तीन चीजों को (ईश्वर, जीव और प्रकृति) अनादि साबित किया है, कदीम साबित किया है, नित्य साबित किया है| इन्हीं तीनों के बारे में आज बात आएगी जरा ध्यान से सुनिए|

हमारे दुर्भाग्य से या सौभाग्य से भारत में कई मतावलम्बी हैं| उनमें मुख्य रूप से ईसाई, मुसलमान, आर्यसमाजी व सनातनधर्मीं हैं| बाकी और जो हैं उनको इतनी मुख्यता नहीं है| मुसलमानों का , खुदा की इबादत करने का अपना एक तरीका है| ईसाइयों व मुसलमानों में कोई विशेष भेद् नहीं है, थोड़ा ही भेद है इसलिए मैं उन्हें मुसलमानों से जुदा नहीं करता हूँ| सनातन धर्म और आर्यसमाज में भी कोई फर्क नहीं है| हम चाहते हैं कि जो थोड़ा सा भेद उनमें और हममें है वह न रहे| उनको खास तौर से इस मजमून में शामिल कर लिया है| मुसलमानों से इस सम्बन्ध में पूछताछ करने पर पता चलता है कि वे खुदा की इबादत करते हैं| इबादत 'अबद' शब्द से बना है जिसके माने गुलाम के हैं, बन्दे के हैं , सेवक के हैं| इबादत का अर्थ हुआ कि हम अपने मालिक के सामने अपने गुलाम और बन्दे होने का इकरार करते हैं| हम अपनी इबादत में कहते हैं कि ऐ खुदा तू हमारा मालिक है और हम तेरे बन्दे हैं, हम तेरे सेवक हैं, हम तेरे खादिम हैं यह गोया इबादत में हम इकरार करते हैं| इस पर मैंने उनसे एक प्रश्न पूछा था| बहुत पुरानी बात है| दीनानगर की बात है| मौलवी अल्लाह दित्ता बहस कर रहे थे| उनसे मैंने पूछा, "जरा यह फर्माइए कि जब आप नमाज पड़ते वक्त खड़े होते हैं, जब आप रुकू करते है (घुटनों पर हाथ रख कर झुकते हैं) और जब आप सिजदा करते हैं, अपनी पेशानी को जमीन पर रख देते हैं तो इस सबसे आपका क्या मतलब है?" कहने लगे, "पण्डित जी, हम खुदा का आदाब बजा लाते हैं|" मैंने पूछा, " इस आदाब बजा लाने से खुदा पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?" तो मौलवी साहब ने उत्तर दिया, "खुदा इस आदाब बजा लाने से खुश होता है?" तो मैंने कहा कि आप आदाब बजा लाकर उसमें तबदीली पैदा करते हैं| पहले वह खुश नहीं था आपके आदाब बजा लाने से वह खुश हो जाता है| इस तरह उसमें हर वक्त, हर लम्हा, तब्दीली होती रहती है क्योंकि न जाने कौन कहाँ-कहाँ नमाज पढ़ रहा है, उसका आदाब बजा ला रहा है और उसमें हर वक्त कुछ न कुछ परिवर्तन हो रहा है| ऐसा खुदा प्रतिक्षण परिवर्तनशील है| ऐसा खुदा मुतगय्यर होगा, परिवर्तनशील होगा| मौलवी जरा होश में आए और कहने लगे, "पण्डित जी, खुदा पर इसका कोई असर नहीं होता, इसका असर हम पर ही होता है|"  मैंने कहा, " आप सँभल गए, वर्ना आपका खुदा खुदा न रहकर कुछ और ही हो जाता, तबदील होकर न जाने क्या बन जाता|" याद रखिए पर इस आदाब बजा लाने का कोई असर नहीं है|

खुदा से आप फायदा उठाइए| यदि इस बल्ब के सामने आपको कोई पुस्तक पड़नी है तो आप इस प्रकार खड़े हो जाइए जिससे कि आप अच्छे प्रकार से पढ़ सकें| यह आपका कर्त्तव्य है बल्ब का नहीं| इस प्रकार खुदा में कोई तबदीली नहीं होती| मैंने कहा कि आपके तरीके से जो आप एक्टर होंगे और खुदा एक्टेड अपान होगा| आप फाइल होंगे और वह मफऊल होगा, आप कर्त्ता होंगे और वह कर्म हो जाएगा| इसलिए यह मानने योग्य बात नहीं है  कि खुदा पर आदाब बजा लाने का कोई प्रभाव होता है| ईसाइयों के सम्बन्ध में मैंने आपको पहले से ही कहा है कि उनका तरीका मुसलमानों से मिलता‍जुलता ही है|

आर्यसमाज कहता है कि हम भगवान् की उपासना करते हैं उपासना का अर्थ है कि हम उसके निकट‌ जाते हैं, उप अर्थात नजदीक, आसन अर्थात बैठना We sit near God (वी सिट नीयर गाड) हम परमात्मा के करीब बैठते है| To sit near (टु सिट नियर), To abide by (टु एबाइड बाई) and to reside in
(एन्ड टु रिसाइड इन) यह तीन अर्थ हैं उपासना के| आर्यों की दृष्टि से उपासना का अर्थ यह हुआ कि हम उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, हम ईश्वर में निवास करते हैं और हम ईश्वर के गुणों को धारण करते हैं और इस प्रकार उसके निकट हो जाते हैं, करीब हो जाते हैं| करीब होने का यही अर्थ है| एक लड़का अपने उस्ताद के करीब हो जाता है अर्थात जो भी उसने पढ़ाया है उसे अपने दिल में रख लेता है| मेज उसके ज्यादा नजदीक है लेकिन मेज में इल्म को ग्रहण करने की योग्यता नहीं है| कुर्सी भी नजदीक है लेकिन उसमें भी ग्रहण करने की योग्यता नहीं है| लेकिन मेज व कुर्सी से दूर जो बच्चे हैं उनमें ग्रहण करने की योग्यता है| उस्ताद जो कह रहा है वे उसे समझते हैं, जिनमें समझने की काबलियत नहीं है वह अलग चीज है| तो जिन बच्चों ने उस्ताद के पढ़ाये हुए को अधिक से अधिक ग्रहण किया है वे उस अपेक्षा से उतने ही उस्ताद के निकट हैं| इसलिए आर्यसमाजी लोग कहते हैं कि परमात्मा के गुणों को जिसने ज्यादा से ज्यादा ले लिया है वह ईश्वर के अधिक नजदीक है और इसी के माने उपासना है इस उपासना के सम्बन्ध में तफसील है किन्तु यह मैंने मुख्तसर आपको अभी बताया है| यही आर्य तरीका है|

 

Friday, March 8, 2013

Sarfaroshi Ki Tamanna - by Ram Prasad Bismil

सरफ़रोशी की तमन्ना
(Complete Poem in Roman Script)

Friends! I was searching on Internet since long. Today my search has come to an end.

The historic poem penned by Ram Prasad Bismil in the early 1920 when he resettled at Shahjahanpur after lifting the warrant of arrest by the British Government. Since he was well versed in Urdu literature and used to right under the pen name of Bismil,hence he had written this poem (Ghazal) in Urdu baher (meter) called Bahre-Ramal.

Its meter in Urdu is "Faailaatun Faailaatun Faailaatun Faailun."



Sarfaroshi kii tamannaa ab hamaare dil mein hai,  

Dekhnaa hai zor kitnaa baazu-e-qaatil mein hai.

                                                                
Ek se karataa nahin kyon doosaraa kuchh baat-cheet,
                                                                

Dekhtaa hun main jise woh chup teri mehfil mein hai.

                                                                
Aye shaheed-e-mulk-o-millat main tere oopar nisaar,
                                                                

Ab teri himmat ka charchaa gair kii mehfil mein hai.

                                                                
Waqt aane de bataa denge tujhe aye aasamaan,
                                                                

Ham abhii se kyaa bataayen kyaa hamaare dil mein hai.

                                                                
Kheench kar laayee hai ham ko qatl hone ki ummeed,
                                                                

Aashiqon ka aaj jamaghat koonch-e-qaatil mein hai.

                                                                
Hai liye hathiyaar dushman taak mein baithaa udhar,
                                                                

Aur hum taiyyaar hain seena liye apnaa idhar.

                                                                
Khoon se khelenge holi gar vatan mushkil mein hai,
                                                                

Sarfaroshi ki tamannaa ab hamaare dil mein hai.

                                                                
Haath jin mein ho junoon katate nahin talvaar se,
                                                                

Sar jo uth jaate hain vo jhukate nahin lalakaar se.

                                                                
Aur bhadakegaa jo sholaa-saa hamaare dil mein hai,
                                                                 

Sarfaroshi ki tamannaa ab hamaare dil mein hai.

                                                                
Ham to nikale hii the ghar se baandhakar sar pe kafan,
                                                                

Jaan hatheli par liye lo badh chale hain ye qadam.

                                                                
Zindagi to apnii mehamaan maut ki mehfil mein hai,
                                                                

Sarfaroshi ki tamannaa ab hamaare dil mein hai.

                                                                
Yuun khadaa maqtal mein qaatil kah rahaa hai baar-baar,
                                                                 

Kya tamannaa-e-shahaadat bhi kisee ke dil mein hai.

                                                                 
Dil mein tuufaanon ki toli aur nason mein inqilaab,
                                                                 

Hosh dushman ke udaa denge hamein roko na aaj.

                                                                 
 Duur rah paaye jo hamse dam kahaan manzil mein hai,
                                                                 

Sarfaroshi kii tamannaa ab hamaare dil mein hai.

                                                                 
 Jism bhi kya jism hai jisamein na ho khoon-e-junoon,
                                                                 

Kya wo toofaan se lade jo kashti-e-saahil mein hai.

                                                                 
Sarfaroshi ki tamannaa ab hamaare dil mein hai
                                                                 

Dekhanaa hai zor kitnaa baaju-e-qaatil mein hai

Tuesday, March 5, 2013

Janta Party's downfall - a reaction

          जनता पार्टी के पतन के कारण
                                                    (बड़े नेताओं की महत्वाकांक्षा)

                          जिसने तुम पर रख वरद हस्त उपकार किया,
                          तुमने असमय उस जयप्रकाश को मार दिया !

                          सम्पूर्ण क्रान्ति का उद्घोषक नव राष्ट्र-पिता,
                          उसको खा गयी तुम्हारे आगम की चिन्ता !
                          वोह अभी और कुछ दिन जिन्दा रह सकता था,
                          पर तुमने उसको मरने को लाचार किया !!

                          जीवन से कितना लड़ा कष्ट कितना भोगा,
                          जे० पी० जैसा  दूसरा न अब पैदा होगा !
                          ईसा को सूली एक बार दी गयी मगर,
                          उसने तो इसका अनुभव कितनी बार किया !!

                          गान्धी की खा सौगन्ध सो गये तुम लेकिन,
                          जन-असन्तोष दे छोड़ तुम्हें यह नामुमकिन !
                          जिस युवा-शक्ति के बल पर तुम सत्ता पाये,
                          उस युवा-शक्ति को तुमने कितना प्यार दिया !!

                          तुम बड़े बड़ों ने अपना ही समझा महत्व,
                          युवकों को दिया नहीं अनुपातिक प्रतिनिधित्व !
                          जीवन थोड़ा रह गया कहाँ मिल पायेगा-
                          सत्ता-सुख, तुमने यही सोच स्वीकार किया !!

                          जेपी ने सोचा था जिनको सत्ता दी है,
                          उनमें से तो अधिकांश गान्धीवादी हैं !
                          पर तुमने गान्धी के सपनों को धूल चटा,
                          वस्तुतः व्यक्तिगत सपनों को साकार किया !!

                          तुमको सत्ता का लोभ अधिक इतना व्यापा,
                          जब मिली प्रसंशा की अब करते हो स्यापा !
                          जो अपनी राह चला उस पर यूँ भौंक-भौंक,
                          तुमने अपना बहुमूल्य समय बेकार किया !!

                          खुद किया न करने दिया रोज रूठते रहे,
                          दूसरे तुम्हारे झगड़ों से जूझते रहे !
                          कोई भी अच्छी बात नहीं मानी तुमने,
                         उल्टे उस पर वक्तव्य दिया प्रतिकार किया !!

                         अब भी कुछ बिगड़ा नहीं स्वार्थ कटुता छोड़ो,
                         इस घटक वाद से अब न अधिक नाता जोड़ो !
                         अन्यथा तुम्हें जे० पी० का लहू न बख्शेगा,
                         फिर मत कहना जनता ने तुम्हें उतार दिया !!

नोट: यदि उस काल खण्ड पर नजर डालें तो उस समय एक चौधरी चरणसिंह की महत्वाकांक्षा के कारण जनता पार्टी का पतन हुआ था. आज उसी समय के अनेक राजनेता विद्यमान हैं लालू यादव, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार और भी कई जिनके नाम लेना मुनासिब नहीं रहेगा जनता सब समझती है. अस्तु!   




Monday, March 4, 2013

Bhartiya Janta Party V/S Congress

तालकटोरा की ताल
मित्रो! कल रात टीवी पर 'तालकटोरा' स्टेडियम में हुए सम्मेलन और उस पर मणिशंकर अय्यर सरीखों की प्रतिक्रिया देखकर कुछ पंक्तियाँ स्वत: प्रकट हुईं आपके लिये यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ


'बीजेपी' ने ठोंक दी, नमो नमो की 'ताल';
लिये 'कटोरा' "हाथ" में, 'काँग्रेस' बदहाल!

कहें 'क्रान्त' तैयार है, कुरुक्षेत्र मैदान;
लालकृष्ण की नीति की, अब होगी पहचान!!

चौरासी के कृष्ण थे, छ्यासठ के कौन्तेय;
पुन: महाभारत वही, अब होगा श्रद्धेय!

कहें 'क्रान्त' फिर भी अगर, रच न सके इतिहास;
युगों-युगों तक पीढ़ियाँ,  झेलेंगी उपहास!!



नोट: जिस समय महाभारत का युद्ध हुआ था कृष्ण की आयु ८४ वर्ष की थी लालकृष्ण जी आज ८६ वर्ष के हो चुके हैं अत: नाम के विपरीत कृष्ण से अधिक परिपक्व हैं और नरेन्द्र मोदी कौन्तेय से अधिक युवा!

M.K.Gandhi's role against Indian Revolutionaries

                       अथ श्री गान्धीजी कथा
 
                                              (कुण्डली छन्द में)

मित्रो! इससे पूर्व मैं अपने इसी ब्लॉग पर इसी कथा को कई किश्तों में पोस्ट कर चुका हूँ किन्तु कुछ मित्रों ने मुझे फोन करके यह आग्रह किया कि मैं इसे सन्दर्भ सहित एक बार में ही यहाँ पर दूँ. मैंने उनके आग्रह को स्वीकारते हुए यहाँ पर पुन; पोस्ट किया है. जिन्हें विशेष अध्ययन करना हो वे बाईं ओर दी गयी पुस्तक से देख सकते हैं.

मदनलाल ने जब किया, लन्दन में विस्फोट. अंग्रेजों के हृदय पर, हुई भयंकर चोट.
हुई भयंकर चोट, गान्धी को बुलबाया.परामर्श कर लन्दन से, भारत भिजवाया.
कहे 'क्रान्त' अफ्रीका के अनुभव विशाल ने.गान्धी[2]को भारत भिजवाया मदनलाल[3]ने.

कांग्रेस में गोखले[4], का सुन्दर व्यक्तित्व; देख गान्धी को लगा, उनमें सही गुरुत्व.
उनमें सही गुरुत्व, तत्व उनका पहचाना; गान्धी ने फिर बुना, देश में ताना-बाना.
कहें 'क्रान्त' अंग्रेज-भक्त, उस 'काग-रेस'[5] में, मार ले गये बाजी, गान्धी कांग्रेस में.

हुई 'बीस' में त्रासदी, तिलक गये परलोक; कांग्रेस में छा गया, भारत-व्यापी शोक.
भारत-व्यापी शोक,लोक-निष्ठा में छाया; गान्धीजी ने 'तिलक-फंड', तत्काल बनाया.
कहें 'क्रान्त' उस समय, चबन्नी-मात्र फ़ीस में; एक करोड़ राशि एकत्रित, हुई 'बीस' में.

कांग्रेस फिर हो गयी, रातों-रात रईस; 'गान्धी-बाबा' बन गये, कांग्रेस के 'ईश'.
कांग्रेस के ईश, शीश सब लोग झुकाए; 'मोतीलाल' पुत्र को लेकर, आगे आये.
कहें 'क्रान्त' गान्धी को, सौंपा पुत्र 'जवाहर'; जनता में हो गयी लोकप्रिय, कांग्रेस फिर.

लोगों को सहसा लगा , बड़े-बड़े सब लोग; कांग्रेस को कर रहे निष्ठा से सहयोग.
निष्ठा से सहयोग, योग जनता का पाया; गान्धी ने फिर असहयोग का मन्त्र बताया.
कहें 'क्रान्त' जो हल कर सकता था रोगों को; 'असहयोग आन्दोलन' ठीक लगा लोगों को.

उधर 'खिलाफत' थी इधर,असहयोग पुरजोर; हिन्दुस्तां में मच गया 'स्वतन्त्रता'का शोर.
'स्वतन्त्रता' का शोर, मोर जंगल में नाचा; सबने देखा-देखी में जड़ दिया तमाचा.
कहें 'क्रान्त' चौरीचौरा में हुई बगावत; गान्धीजी घबराये कर दी उधर खिलाफत.

इससे सारे हो गये, नौजवान नाराज; कांग्रेस में देखकर गान्धी जी का राज.
गान्धीजी का राज,लाज जिन-जिन को आई ;उन सबने गान्धीजी को लानत भिजवाई.
कहें 'क्रान्त' फिर इन्कलाब के गूँजे नारे; 'जिन्दाबाद' जवान कह उठे इससे सारे.

सन बाइस में उठ खड़ा, हुआ युवा-विद्रोह; 'बिस्मिल' जैसे नवयुवक,बाट रहे थे जोह.
बाट रहे थे जोह , जोर की थी तैयारी; सरफ़रोश गजलों ने, फूँकी वह चिनगारी.
कहें'क्रान्त' जिसने वह, आग लगा दी इसमें; शोला भड़का हुई क्रान्ति, फिर सन बाइस में.

पच्चिस में नव-वर्ष पर, इश्तिहार को छाप; गूँजी पूरे देश में, अश्वमेध की टाप.
अश्वमेधकी टाप, फ्लॉप थे सारे नेता; सिर्फ क्रान्तिकारी ही थे, चहुँ ओर विजेता.
कहें'क्रान्त' फिर फण्ड जुटाने की कोशिश में; काकोरी का काण्ड,हो गया सन पच्चिस में.

काकोरी के पास में, चलती गाड़ी रोक; बिस्मिल के नेतृत्व में, दिया मियाँ[6] को ठोक.
दिया मियाँ को ठोक, मियाँ की लेकर जूती[7]; सरकारी-धन हथियाने, को गाड़ी लूटी.
कहें'क्रान्त' भयभीत, हो गयी चमड़ी गोरी; उसने कहा कि साजिश है, घटना काकोरी.

बिछा फटाफट देश में, गुप्तचरों का जाल; यह 'काकोरी-काण्ड' था, उनके लिये सवाल.
उनके लिए सवाल, शीघ्र ही हल करना था ; वरना सत्तावन[8] जैसा, सबको मरना था.
कहें 'क्रान्त' सब पिंजड़े में, भर लिये ठकाठक; चालिस क्रान्ति-कपोत,जाल को बिछा फटाफट.

काकोरी का मुकदमा, चला अठारह माह; बड़े - बड़े लाये गये, इकबालिया गवाह.
इकबालिया गवाह , आह सारे भरते थे; 'बनारसी' को देख, सभी अचरज करते थे.
कहें 'क्रान्त' गान्धी का था, वह भक्त टपोरी; जिसे पता था कैसे,हुआ काण्ड-काकोरी.

'बनारसी' ही जानता, था बिस्मिल का राज; उसे पता था राम[9] ही, छीन सकेगा ताज.
छीन सकेगा ताज, आज या कल गान्धी से; इसे हटाओ तभी, बचोगे इस आँधी से.
कहें 'क्रान्त' कंगन के, आगे झुकी आरसी[10]; बना अप्रूवर[11] गान्धी, का चेला बनारसी.

इन दोनों की अन्ततः, साजिश लायी रंग; मुल्लाजी को देखकर, सभी लोग थे दंग.
सभी लोग थे दंग, इधर नेहरू के साले; जगतनारायण मुल्ला,उधर सभी मतवाले.
कहें 'क्रान्त' दुर्दशा, कचहरी के कोनों की; देख-देख छाती फटती थी, इन दोनों की.

बिस्मिल,रोशनसिंह औ' अशफाकुल्ला खान; सँग राजिन्दर लाहिड़ी, चार हुए बलिदान.
चार हुए बलिदान, मान भक्तों का डोला; भगत सिंह ने रँगा, बसन्ती अपना चोला.
कहें 'क्रान्त' आजाद सरीखे, सब जिन्दा दिल; देश-दुर्दशा देख, हो गये सारे बिस्मिल.

वध कीना सांडर्स का, संसद में विस्फोट; भगत सिंह आजाद ने, करी तड़ातड़ चोट.
करी तड़ातड़ चोट , देश ने ली अँगड़ाई; थाने फूँके गये, बैरकें गयीं जलाई.
कहें'क्रान्त' गान्धी के रोके क्रान्ति रुकी ना; क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजों का वध कीना.

गान्धी-इरविन-पैक्ट में, जब ये उठा विवाद; भगत सिंह यदि मर गया, होगा बड़ा फसाद.
होगा बड़ा फसाद, टालते हैं यदि फाँसी; काँग्रेस-अधिवेशन में, होगी बदमाशी.
कहें 'क्रान्त' है युवा वर्ग की ऐसी आँधी; इसमें क्या कर पायेंगे बेचारे गान्धी.

बोले वायसराय से गान्धीजी तत्काल-"आज नहीं तो कल जिसे मरना है हर हाल.
मरना है हर हाल, देर फिर मत करवाओ; अधिवेशन से पहले ही फाँसी दिलवाओ.
कहें 'क्रान्त' जिससे जो होना है सो हो ले; रोज-रोज का झंझट निबटे" गान्धी बोले.

एक-एक कर हो गया, ग्यारह[12] का बलिदान; गान्धी जी को तब लगा, अब है काम आसान.
अब है काम आसान,लीक पर इनको लाओ; युवा-वर्ग का लीडर नेहरू को बनवाओ.
कहें 'क्रान्त' उठ खड़ा हुआ सुभाष नर-नाहर; बोला-"अब मैं बदला लूँगा एक-एक कर".

त्रिपुरी औ' हरिपुरा में, दो-दो बाजी जीत; काँग्रेस में की शुरू,फिर चुनाव की रीत.
फिर चुनाव की रीत, रीढ़ गान्धी की तोड़ी; जब वो भन्नाए तो तुरत पार्टी छोड़ी.
कहें'क्रान्त' फॉरवर्ड ब्लाक की नीव फिर धरी; नरनाहर सुभाष ने,वह स्थल था त्रिपुरी.

कलकत्ता में जब किया,नेता जी को कैद; भेष बदल जापान वे,पहुँचे हो मुस्तैद.
पहुँचे हो मुस्तैद,फ़ौज अन्ततः बनायी; सिंगापुर में दिल्ली चलो अवाज लगायी.
कहें 'क्रान्त' गान्धी को लगा इधर सत्ता में- कुछ न मिलेगा, जा पहुँचे वे कलकत्ता में.

जैसे ही जापान की हुई युद्ध में हार; नेताजी को यह लगा अब लड़ना बेकार.
अब लड़ना बेकार,जा रहे थे जहाज में; हुई हवाई-दुर्घटना, जल गये आग में.
कहें 'क्रान्त' जिन्दा होने का भ्रम वैसे ही- फैलाया नेता जी निकले थे जैसे ही.

नेताजी की मौत को, अब तक बना रहस्य; लोग राज करते रहे,इस देश में अवश्य.
इस देश में अवश्य, हुए नेहरू जी पहले; फिर उनकी बेटी को सपने दिखे सुनहले.
कहें 'क्रान्त' फिर हुई रूस में घटना ताजी; जिसमें मरवाये शास्त्री जैसे नेताजी.

हत्याओं का सिलसिला गान्धी जी के बाद; खूब चला तब भी, हुआ जब ये देश आजाद.
जब ये देश आजाद, यही तो बिडंवना है; गान्धी-नेहरू के आगे सोचना मना है.
कहें'क्रान्त' सिलसिलेवार इन घटनाओं का, कृतियों में इतिहास[13] लिखा है हत्याओं का.

सन्दर्भ:-

2. M.K.Gandhi was 2nd, the 1st 'Safety Valve' was Congress, established in 1885 by Britsh Govt .

3.मदनलाल धींगरा, जिसने 1.7.1909 को लन्दन जाकर कर्जन वायली का वध किया था
4.गोपाल कृष्ण गोखले
5. कौओं की दौड़
6.काकोरी काण्ड में अहमद अली नाम का एक मात्र मुसाफिर मारा गया था, मियाँ शब्द उसी के लिए आया है
7. "मियाँ की जूती,मियाँ की चाँद" एक मुहावरा है जिसका अर्थ है अंग्रेजों के पैसे से ही अंग्रेजों को हथियार खरीद कर मारना
8. सत्तावन = १८५७
9. राम ='बिस्मिल' का एक और नाम
10. "हाथ कंगन को आरसी क्या " एक मुहावरा है जिसका अर्थ है बड़े के आगे छोटे का अस्तित्व कुछ नहीं होता किन्तु यहाँ सारा केस ही उलट दिया गया काकोरी-षड्यन्त्र को अंग्रेजी-षड्यन्त्र में बदल दिया गया
11. अप्रूवर=सरकारी गवाह
12. १-राजेन्द्र लाहिड़ी,२-रामप्रसाद'बिस्मिल',३-रोशनसिंह,४-अशफाकउल्ला खां,५-लाला लाजपतराय, ६-यतीन्द्रनाथ दास,७-भगतसिंह,८-सुखदेव,९-राजगुरु,१०-चन्द्रशेखर'आजाद',११-गणेशशंकर विद्यार्थी

Saturday, March 2, 2013

Black money converting heritage culture of India?

काले धन से भारतीयता को खतरा

मित्रो!  हमारी परम्परागत भारतीय विरासत को आज सबसे बड़ा खतरा हिन्दू विरोधी ताकतों से है जिन्हें विदेशों में जमा काले धन से पाला पोसा जा रहा है.  कुछ बिन्दु आपके सामने विचारार्थ प्रस्तुत हैं. यहाँ पर यह बताना और भी आवश्यक है कि यह लेख मेरे एक मित्र श्रीयुत संजयकुमार मौर्य (महान देश भारत) ने ई-मेल द्वारा मुझे भेजा था. मैंने उसमें वर्तनी व व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियाँ दूर करने के बाद ही अपने ब्लॉग पर पोस्ट किया है.

१- विदेशों में जमा काले धन का इस्तेमाल गरीब हिन्दुओं को ईसाई धर्म अपनाने के लिये प्रलोभन के रूप में किया ज़ा रहा है.  देखा जाये तो यह काला धन  हमारी गाढ़ी कमाई का  है जो हमारे ही धर्म के खिलाफ प्रयोग हो रहा है.

२- काला धन सभी हिन्दुत्व विरोधी देशों को सिर्फ़ एक से डेढ़  प्रतिशत ब्याज पर दिया ज़ा रहा है.

३- यही काला धन भारत को ऊँचे दर पर कर्ज के रूप में दिया ज़ा रहा है और उन कर्जदाताओ की शर्त पर हम अपने सभी प्राकृतिक संसाधन विदेशी कम्पनियों को कौड़ियों के भाव बेंच दे रहे हैं. हमारे देश के ये दुश्मन हमारे ही पैसे से और पैसा कमाकर भारत को बरबाद करने में जुटे हैं.  इस समय १२५ करोड़ भारतीयों पर प्रति व्यक्ति २८००० रुपये कर्जा है.

४- इस काले धन के प्रभाव में हमारे बिके हुए नेता किसी भी हिन्दुत्व विरोधी कानून को तत्काल पारित कर देते हैं.

५- कालेधन का सर्वाधिक उपयोग भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने में किया ज़ा रहा है जिसमें ९८ प्रतिशत  (कन्वर्टेड मुसलमानों सहित)  हिन्दू  ही मरते हैं.  ध्यान देने वाली बात ये है कि भारत में आज तक आतंकवाद में ईसाइयों की सबसे कम मौतें  हुई हैं.

६- भारत में ईसाई बाहुल्य  इलाको में आतंकवाद के नाम पर सिर्फ हिन्दुओं का ही क़त्ल किया जाता  है और आतंकवाद के नाम पर सरकार इसे हिन्दुओं का नाम मिटाने में प्रयोग कर रही है.  उत्तर पूर्व क्षेत्र में हिन्दू दिनों दिन गायब होते ज़ा रहे है.

७- देखा जाये तो भारत में अधिकतर काला धन इन्हीं हिन्दू विरोधी ईसाइयों  का है.

८- यदि आप सोनिया गान्धी की "राष्ट्रीय सलाहकार परिषद्" के सदस्यों की लिस्ट देखें तो आप पायेंगे कि इसके सभी के सभी सदस्य हिन्दू मूल्यों का विरोध करते हैं. यही नहीं, ये लोग हमेशा  हिन्दुत्व विरोधी नियम कानून व  अध्यादेश पारित कर  अन्यान्य सलाहकार कमेटियाँ नियुक्त करते  रहते हैं.

९- भारत में ४०० लाख करोड़ का काला धन भारत को हमेशा ही गुलाम बनाये रखने के लिए काफी है.  इसी में से बहुत थोड़ा सा पैसा  खर्च  करके विदेशी कम्पनियों को भारत लूटने की खुली छूट मिली हुई है. केवल इतना ही नहीं, जो हर साल भारत से २० लाख करोड़ लुट रहे  हैं वह हमारे देश के कुटीर उद्योगों को बन्द कराकर उन्हें आर्थिक रूप से गुलाम ही बना रहे हैं.

१०- भारतीय स्कूलों का पाठ्यक्रम  इसी काले धन की मार्फत बदल कर हमारे बच्चों का दिमाग गुलामी की ओर धकेला जा रहा है.  शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण तन्त्र  पर पहले ही माफिया का कब्ज़ा हो चुका है.

११- भारत की पवित्र धरती से २०००० लाख करोड़ की सम्पदा को लूटकर विदेशों में जमा किया ज़ा रहा है और उसके बदले गरीबों पर धौंस जमायी  जा रही है. बेचारी आम जनता सोचती है कि उसका क्या जा रहा है? अकेले कोयले के मामले में ही सिर्फ मनमोहन सिंह जी  के कार्यकाल में २६ लाख करोड़ की लूट हुई है.  आज बाजार में १२ रूपये किलो बिकने वाला कोयला सिर्फ़ १० पैसे किलो के भाव पर लुटा दिया गया.  इसमें भी काले धन का खुला खेल खेला गया.

१२- पेट्रोलियम पदार्थों (तेल, डीजल और रसोई गैस) में काले धन का खेल तो पूरे भारतवासियों के होश ही उड़ा देगा जब यह मामला खुलकर सामने आयेगा. विदेशी तेल कम्पनियों को उनकी मर्जी माफिक तेल के दाम बढ़ाने की खुली छूट दे दी गयी है.

क्योंकि भारतीयता और हिन्दुत्व में  ज्यादा फर्क नहीं है और भारत में रहने वाले ९९.९९ प्रतिशत भारतीयों के पूर्वज हिन्दू ही  हैं जिससे उनके जीवन में हर कदम पर हिन्दुत्व स्पष्ट परिलक्षित होता है.  हिन्दुत्व को  वे बर्बाद नहीं कर रहे, बल्कि  दशमलव जीरो एक प्रतिशत पूंजीवादी भारतीय और विदेशों में रह रहे हमारे दुश्मन  बर्बाद करने पर तुले हुए हैं.  इस काम के लिये हराम के काले धन का  धड़ल्ले से  इस्तेमाल किया ज़ा रहा है और कांग्रेस सरकार इसमें अपना अहम् रोल अदा कर रही है.

इसी लिए विगत ६६ वर्षों में हुई भारत की इस कल्पनातीत लूट के माध्यम से विदेशों में जमा काले धन को वापस लाना बहुत जरूरी है.  परन्तु काले धन को लाने में हिन्दुत्व विरोधी ताकतों की कोई रुचि नहीं है,  न टी०वी० वालों की और  न कांग्रेस सरकार की.  अत:  आज जरूरत इस बात की है कि हर भारतीय  या तो कालेधन को वापस लाने के अभियान में अपना सहयोग करे  या इसका प्रबल विरोध करे. अब हाथ पर हाथ धर कर चुपचाप बैठने का वक्त नहीं बल्कि "काँग्रेस" से खुलकर दो-दो "हाथ" करने का वक्त आ गया है.