Sunday, January 23, 2011

Poetry of Proverbs (updated)


##मुहावरों की ग़ज़ल##

तिलक लगाये माला पहने भेस बनाये बैठे हैं,
तपसी की मुद्रा में बगुले घात लगाये बैठे हैं।

घर का जोगी हुआ जोगिया आन गाँव का सिद्ध हुआ,
भैंस खड़ी पगुराय रही वे बीन बजाये बैठे हैं।

नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने को निकली है,
सभी मियाँ मिट्ठू उसका आदाब बजाये बैठे हैं।

घर की इज्जत गिरवीं रखकर विश्व बैंक के लॉकर में,
बड़े मजे से खुद को साहूकार बताये बैठे हैं।

उग्रवाद के आगे  इनकी बनियों वाली भाषा है,
अबकी मार बताऊँ तुझको ईंट उठाये बैठे हैं।

जबसे इनका भेद खुला है खीस काढ़नी भूल गये,
शीश उठाने वाले अपना मुँह लटकाये बैठे हैं।

मुँह में राम बगल में छूरी लिये बेधड़क घूम रहे,
आस्तीन में साँप सरीखे फ़न फैलाये बैठे हैं।

विष रस भरे कनक घट जैसे चिकने चुपड़े चेहरे हैं,
बोकर पेड़ बबूल आम की आस लगाये बैठे हैं।

नए मुसलमाँ बने तभी तो डेढ़ ईंट की मस्जिद में,
अल्लाह अल्लाह कर खुद को ईमाम बताये बैठे हैं।

दाल भले ही गले न फिर भी लिये काठ की हाँडी को,
ये चुनाव के चूल्हे पर कब से लटकाए बैठे हैं।

मुँह में इनके दाँत नहीं हैं और पेट में आँत नहीं,
कुड़ी देखकर मेकअप से चेहरा चमकाये बैठे हैं।

खम्भा नोच न पाये तो ये जाने क्या कर डालेंगे,
टी०वी०चैनेल पर बिल्ली जैसे खिसियाये बैठे हैं।

अपनी-अपनी ढपली पर ये अपना राग अलाप रहे,
गधे ऊँट की शादी में ज्यों साज सजाये बैठे हैं।

एक-दूसरे की करके तारीफ़ बड़े खुश हैं दोनों,
क्या पाया है रूप! आप क्या सुर में गाये बैठे हैं!

टका सेर में धर्म बिक रहा टका सेर ईमान यहाँ,
चौपट राजा नगरी में अन्धेर मचाये  बैठे हैं।

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ थे छोटे मियाँ सुभान अल्लाह,
पैरों तले जमीन नहीं आकाश उठाये बैठे हैं।

अश्वमेध के घोड़े सा रानी का बेलन घूम रहा,
शेर कर रहे "हुआ हुआ" गीदड़ झल्लाये बैठे हैं।

मुँह सी लेते हैं अपना जब मोहरें लूटी जायें तो,
छाप कोयलों पर पड़ती तो गाल फुलाये बैठे हैं।

'क्रान्त' इन अन्धों के आगे रोये तो दीदे खोओगे,
यहाँ हंस कौओं के आगे शीश झुकाये  बैठे हैं।

नेताजी की अस्थियों की डी.एन.ए. जाँच क्यों नहीं?

२३ जनवरी १८९७ को कटक में जन्मे सुभाष का स्वभाव बचपन से ही विद्रोही था. आई.सी.एस. परीक्षा प्रथम प्रयास में ही पास कर लेने के बावजूद ब्रिटिश सरकार की नौकरी को लात मारते हुए भारत सचिव ई.एस.मांटेग्यू को अपना त्यागपत्र सौंपकर सुभाष स्वदेश लौटे और कांग्रेस में शामिल हो गए. क्रांतिकारियों  से सहानुभूति के कारण उनकी गांधीजी से कभी नहीं पटी जिसके परिणामस्वरूप वे कई बार ब्रिटिश सरकार के कोपभाजन बने. कांग्रेस में युवा नेता के रूप में उनकी सीधी प्रतियोगिता पंडित जवाहर लाल नेहरू से थी शायद इसी कारण वे गांधीजी के विश्वासपात्र कभी भी न बन सके. गांधी जी से मनमुटाव के चलते वे कई बार जेल गए और कई बार घर पर नजरबन्द रहे. हरिपुरा और त्रिपुरी में दो दो बार उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया किन्तु गांधीजी के समर्थन से प्रत्याशी बने पट्टाभि सीतारमैया को सीधे चुनाव में हराने के बाद तो वे स्पष्ट रूप से गांधीजी की आँख की किरकिरी ही बन गए.रोज रोज की खटपट से तंग आकर सुभाष ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और फारवर्ड ब्लाक के नाम से अलग पार्टी बना ली.घर पर नजरबंदी के बावजूद भेष बदलकर वे जर्मनी के रास्ते जापान पहुंचे. हिटलर ने उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें नेताजी की उपाधि से विभूषित किया जिसके बाद वे पूरे विश्व में नेताजी के नाम से ही पुकारे जाने लगे. 

आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान हाथ में आते ही सुभाष ने ब्रिटिश साम्राज्य से सीधी टक्कर लेने का ऐलान किया.चूँकि जापान सुभाष का साथ दे रहा था अतः वे बर्मा के रास्ते भारत की सीमा में प्रविष्ट हुए और कई स्थानों पर विजय पताका फहराते हुए कोहिमा तक आ पहुंचे किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार ने नेताजी के मंसूबों पर पानी फेर दिया और दिल्ली पहुंचकर लालकिले पर विजय पताका फहराने का उनका सपना अधूरा ही रह गया.नेताजी मोर्चा बदलने की तैयारी में थे क़ि एक अप्रत्याशित दुर्घटना में उनका विमान ध्वस्त हो गया और १८ अगस्त १९४५ को ताइहोकू हवाई अड्डे से उड़ान भरते ही नेताजी को कराल काल ने अपनी गोद में समेट लिया. उनकी अस्थियाँ आज भी जापान के रेंकोजी मंदिर में सुरक्षित रखी हुई हैं जिन्हें भारत सरकार ने यहाँ लाने का कोई विचार तक न किया. आज आवश्यकता इस बात की है कि  भारत की जनता सरकार पर इस बात का दबाव डाले कि वह नेताजी की अस्थियाँ जापान से मंगाकर उनकी एकमात्र जीवित पुत्री अनीता फाफ से डी.एन.ए.टेस्ट करवाए और इस बात की पुष्टि करे कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में ही हुई थी वे अन्यत्र कहीं नहीं मरे जैसी कि अटकलें आज तक बराबर लगाई जाती रही हैं. हाँ! यदि सरकार ऐसा नहीं करती तो इस बात की भी स्वतः पुष्टि हो जाएगी कि नेताजी की मृत्यु को १९४७ में भारत और इंग्लैंड  के बीच हुए गुप्त समझौते के तहत एक रहस्य बनाकर रखा गया और समय समय पर आयोग बिठाकर जनता के पैसे का दुरूपयोग किया. पाठक  चाहें  तो  साहित्य अकादमी  या  तीन मूर्ति भवन  के  पुस्तकालय में 'स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास' नामक पुस्तक  में इससे सम्बंधित और भी कई दस्तावेज देख सकते हैं.

Saturday, January 15, 2011

NEW YEAR'S GREETINGS on MAKAR SANKRANTI

AH! HOW SO DEAR IS GREETING NEW YEAR,
A HAPPY NEW YEAR TO YOU AND ALL.
IT NEEDTH NO MAN WITH WOMAN & BEER,
BUT BLOOD IN VEINS FOR NATION'S CALL.
FOR LAND WHEREIN WE BORN  & DIE,
OUR HEARTS BE FULL OF LOVE AND DUTY.
BEWARE & LISTEN TO HUMAN'S CRY,
TO RESPECT OTHERS BE OURS BEAUTY. 

IT'S A HAPPY BIRTH DAY OF MOTHER EARTH.
CELEBRATE IT & ENJOY IN HEAVEN A BERTH.