Thursday, May 29, 2014

Narendra Modi fulfilling last desire of Ram Prasad Bismil

अन्तिम समय की बातें


राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने गोरखपुर जेल की कालकोठरी से 16 दिसम्बर 1927 ई० को निम्नलिखित पंक्‍तियों का उल्लेख अपनी आत्मकथा में किया था:


"जब तक कर्म क्षय नहीं होता, आत्मा को जन्म मरण के बन्धन में पड़ना ही होता है, यह शास्‍त्रों का निश्‍चय है। यद्यपि यह बात वह परब्रह्म ही जानता है कि किन कर्मों के परिणामस्वरूप कौन सा शरीर इस आत्मा को ग्रहण करना होगा किन्तु अपने लिए यह मेरा दृढ़ निश्‍चय है कि मैं उत्तम शरीर धारण कर नवीन शक्‍तियों सहित अति शीघ्र ही पुनः भारतवर्ष में ही किसी निकटवर्ती सम्बन्धी या इष्‍ट मित्र के गृह में जन्म ग्रहण करूँगा, क्योंकि मेरा जन्म-जन्मान्तर उद्देश्य रहेगा कि मनुष्य मात्र को सभी प्रकृति पदार्थों पर समानाधिकार प्राप्‍त हो। कोई किसी पर हकूमत न करे। सारे संसार में जनतन्त्र की स्थापना हो। वर्तमान समय में भारतवर्ष की अवस्था बड़ी शोचनीय है। अतएव लगातार कई जन्म इसी देश में ग्रहण करने होंगे और जब तक कि भारतवर्ष के नर-नारी पूर्णतया सर्वरूपेण स्वतन्त्र न हो जायें, परमात्मा से मेरी यह प्रार्थना होगी कि वह मुझे इसी देश में जन्म दे, ताकि उसकी पवित्र वाणी - वेद वाणी का अनुपम घोष मनुष्य मात्र के कानों तक पहुँचाने में समर्थ हो सकूँ। सम्भव है कि मैं मार्ग-निर्धारण में भूल करूँ, पर इसमें मेरा कोई विशेष दोष नहीं, क्योंकि मैं भी तो अल्पज्ञ जीव मात्र ही हूँ। भूल न करना केवल सर्वज्ञ से ही सम्भव है। हमें परिस्थितियों के अनुसार ही सब कार्य करने पड़े और करने होंगे। परमात्मा अगले जन्म से सुबुद्धि प्रदान करे ताकि मैं जिस मार्ग का अनुसरण करूँ वह त्रुटि रहित ही हो।"


इन पंक्तियों में जिन नवीन शक्तियों का उल्लेख बिस्मिलजी ने किया है वह सभी शक्तियाँ परमात्मा ने नरेन्द्र भाई मोदी में समाहित कर दी हैं। इसका परिणाम पूरा विश्व शीघ्र ही देखेगा प्रतीक्षा कीजिये।

Wednesday, May 14, 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं

अमर शहीद पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' की उर्दू गज़ल
 
 "Kranti Geetanjali" written by Pt Ram Prasad Bismil was banned by the British Govt on 10th of December 1930. I got it from National Archives and edited it. It was published in 2006 by Praveen Prakashan 4760-61, 23, Ansari Road, Darya Ganj, New Delhi 110002. What Bismil had written about 90 years back is going to be true now in free India under the leadership of Narendra Modi
 
मादरे-हिन्द गमगीन न हो अच्छे दिन आने वाले हैं
आज़ादी का पैगाम तुझे हम जल्द सुनाने वाले हैं
 
माँ तुझको जिन जल्लादों ने दी है तकलीफ़ जईफ़ी में
मायूस न हो मगरूरों को हम मजा चखाने वाले हैं
 
कमजोर हैं औ' मुफ़्लिस हैं हम गो कुंजे-कफ़स में बेबस हैं 
बेकस हैं लाख मगर माता हम आफ़त के पर्काले हैं 
 
हिन्दू औ' मुसलमाँ मिलकर के जो चाहें सो कर सकते हैं 
अय चर्खे-कुहन हुशियार हो तू पुरजोर हमारे नाले हैं 
 
मेरी रूह को करना क़ैदे-कफ़स इन्कास से बाहर है उनके 
आज़ाद है अपना दिल शैदा गो लाख जुबां पे ताले हैं 
 
मग्लूब हैं जो होंगे ग़ालिब महकूम हैं जो होंगे हाकिम 
कब एक-सा दौर रहा किसका कुदरत के तौर निराले हैं 
 
आज़ादी के दीवानों ने वह मन्त्र चलाया है 'बिस्मिल'
लरज़ा है जिससे अर्शे-समाँ सरकार को जान के लाले हैं  
 
 
नोट: आप इस कविता  की स्कैण्ड कापी  https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10203134595419607&set=a.4542436752833.234393.1048633668&type=1&theater इस लिंक पर भी देख सकते हैं .

शब्दार्थ संकेत: जईफ़ी=बृद्धावस्था, मगरूरों =घमण्डियों, मुफ़लिस=कंगाल, कुंजे-कफ़स=क़ैदखाने, परकाले=चिंगारी, चर्खे-कुहन=कालचक्र,नाले=इरादे, क़ैदे-कफ़स=हथकड़ी-बेड़ियों में, इन्कास=बस
मग्लूब=निर्धन, ग़ालिब=शक्तिशाली, महकूम=नौकर/दास, हाकिम=अफसर,लर्ज़ा=आन्दोलित, अर्शे-समां=सारा वातावरण