Saturday, February 12, 2011

कवि: युग धर्म का वाहक


 
 
 
पृथ्वीराज चौहान को जब मुहम्मद गौरी बन्दी बनाकर गजनी ले गया और उसकी आँखें निकाल लीं तब उनके मित्र चन्दबरदाई ने युक्ति से काम लिया और यह प्रचारित किया कि पृथ्वीराज शब्द भेदी तीर चलाने की कला जानते हैं! गौरी को विश्वास नहीं हुआ! इस पर चन्द कवि ने कहा कि बादशाह की परीक्षा ली जाय और यदि असफल रहें तो वह स्वयं अपनी आँखें निकलवाने को तैयार हैं!
परीक्षा ली गयी और चन्द कवि के उपरोक्त एक दोहे ने चौहान को अपना करतब दिखाने में सफलता प्रदान करवा दी!
मेरा यह छन्द उसी प्रसंग को रेखांकित करता है!

जब जनता की आँख कपोत की भाँति
     बिलाव के आते ही बन्द हुई।
जब    कूटनीतिज्ञ   नेताओं   की   चाल  
     किसी   बगुले   जैसी   मन्द   हुई।
जब   गोरी   के   हाथों   में   कैद   हुआ  
     चौहान   तो   पीढ़ी हमारी ही थी,
जिनके   मुख   से   निकसी   हुई   बात  
     इशारों की  भाषा   में   छन्द हुई।

संकेत: लम्बाई की इकाई फुट, गज और कोस का अनुपात  यदि देखें तो तीन  फुट का एक  गज और  पाँच  हजार दो सौ अस्सी फुट का एक कोस होता है! सात कोस  यानी  ७ रेस कोर्स (प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह का निवास), २४ गज  यानी  २४ अकबर रोड ( जहाँ काँग्रेस मुख्यालय है ) और १० फुट  यानी  १० जनपथ. (जो यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गान्धी का निवास है)

७ कोस २४ गज,  १० फुट के दरम्यान!
बेगम हुक्म चला रहीं,  बादशाह  प्रेशान!!

नोट:- यहाँ पर  बादशाह (डॉ. मनमोहन सिंह ) का जो चित्र ऊपर दिया गया है वह विकिकामंस के सौजन्य से लिया गया है !

घुट्टी में भाँग

 अंग्रेजों का राज रहा इसलिए यहाँ अंग्रेजी है।
 संविधान के कारण आई इस भाषा मेँ तेजी है।

 हिन्दी होकर भी हम पर अंग्रेजी लादी जाती है।
 पैदा  होते  ही  घुट्टी में भाँग पिला  दी जाती है।
 हम उसको अपना लेते हैं जो सभ्यता विदेशी है।
चले गये अंग्रेज राज फिर भी करती अंग्रेजी है।

जिस भाषा ने सारी वसुधा को कुटुम्ब बतलाया है।
उसके ग्रन्थोँ का अनुवाद कहाँ से होकर आया है?
ज्ञान और विज्ञान सभी का मूल स्रोत तो देशी है।
किन्तु हमें समझाया जाता यह सम्पदा विदेशी है।

बचपन  में जो बात हमारे दिल दिमाग में बैठ गयी।
उस रस्सी को भले जला दो पर क्या उसकी ऐंठ गयी?
यह कैसी तरकीब निकाली अब तक यही पहेली है।
भारत को गारत करने की कूटनीति अलबेली है।

 यवन यहाँ पर आये तो तम्बाकू हमको खिला गये।
 जब  आये अंग्रेज यहाँ पर चाय बनाकर पिला गये।
 खुद जब किये प्रयोग समझ में आया चाल विदेशी है।
 निकोटीन के कारण तम्बाकू और चाय में तेजी है।

दोनों मीठे जहर पिला पुंसत्व हमारा छीन लिया।
और डालडा खिलाखिलाकर हमें हृदय से हीन किया।
बँटवारा कर गये देश का गिजा हमारी ले ली है।
आज़ादी के बाद खून की होली हमने खेली है।

जब देखो तब आज हमें आपस में ये लड़वाते हैं।
विश्व बैंक से कर्ज़ा देकर हमें गुलाम बनाते हैं।
क्रिकेट मैच की प्रायोजक कम्पनी सभी अंग्रेजी हैं।
विज्ञापन के  कारण आती मँहगाई में तेजी है।

कैसे  कैसे हथकण्डे आये दिन अपनाये जाते।
ग्लोबलाइजेशन के धोखे में हम मरवाये जाते।
आज देश के बच्चे बच्चे पर ऋण भार विदेशी है।
और इसे जो  बढ़ा रही है वह  केवल अंग्रेजी है।

Tuesday, February 8, 2011

Rang de Basanti


लखनऊ जेल में काकोरी षड्यंत्र के सभी  क्रान्तिकारी एक साथ कैद थे. केस चल ही    रहा था क़ि  'बसन्त  पंचमी' का त्यौहार आ गया. सबने मिलकर तय किया क़ि कल ' बसन्त पंचमी' को सभी  क्रान्तिकारी अपने-अपने सिर पर पीले रँग की टोपी पहन कर ही  आयेंगे ,नंगे  सिर कोई  नहीं  आएगा. पुलिस की गाड़ी में  सभी लोग भारत माता की जय का उद्घोष करके एक साथ चढ़ेंगे. इसके बाद सभी अपने- अपने हाथों    में पीला  रूमाल लेकर मस्ती  में गाते  हुए ' रिंक थियेटर' [वह  सिनेमा  हॉल,  जहाँ  मुकद्दमे  की कार्रवाई  हो रही है] चलेंगे. अपने नेता राम प्रसाद 'बिस्मिल' से सबने कहा- "पंडित जी ! कोई फड़कती हुई कविता लिखिए . हम सब लोग उसे 'कोरस' के रूप में गायेंगे." फिर क्या था बिस्मिल जी  ने आनन-फानन में यह गीत लिख डाला. देहरादून से  सन 1929  में श्रीयुत हुलासवर्मा 'प्रेमी' तथा लाहौर से  1930 में श्रीयुत लक्ष्मण 'पथिक' द्वारा प्रकाशित  पुस्तक 'क्रान्ति गीतांजलि' में 'बसन्तीचोला' शीर्षक से यह गीत इस  प्रकार प्रकाशित हुआ था :

मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे,...
मेरा रँग दे बसन्ती चोला.
इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला.
यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला.
अब बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला.
आज उसी को पहन के निकला यह बासन्ती चोला.
मेरा रँग दे बसन्ती चोला.
मेरा रँग दे बसन्ती चोला. मेरा रँग दे.,..
मेरा रँग दे बसन्ती चोला.

अगले दिन ' बसन्त पंचमी' के दिन भरी अदालत में सभी क्रान्तिकारियों ने बड़ी मस्ती में झूमते हुए यही  'रँग दे बसन्ती चोला' गीत गाया था. इन्टरनेट पर अपने सभी प्रिय पाठकों के लिए हम यह गीत देते हुए आज बड़े गौरव  का अनुभव करते हैं.             

Monday, February 7, 2011

बिस्मिल का क्रान्ति-दर्शन

 यूँ तो भारतवर्ष को ब्रिटिश साम्राज्यवाद की दासता से मुक्त कराने में असंख्य वीरों ने अपना बलिदान दिया किन्तु पं0  रामप्रसाद 'बिस्मिल'  एकमात्र ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने एक  साधारण परिवार में जन्म लेकर अपनी असाधारण प्रतिभा और अखण्ड पुरुषार्थ के बल पर 1920-30 के दशक मेँ  भारतीय स्वातन्त्र्य संग्राम को एक ऐसा मोड़ दिया जिसने युद्ध की दिशा ही बदल दी। 1916 मेँ १९ वर्ष की आयु में उन्होंने 'अमरीका की  स्वतन्त्रता का इतिहास ' जैसी एतिहासिक कृति   लिखी  जिसे छपते ही ज़ब्त  कर लिया गया । 'बोल्शेविकों की करतूत''स्वाधीनता की देवी- कैथेराइन' जैसे क्रान्तिकारी उपन्यास, 'चीन की राज्य-क्रान्ति', 'स्वदेशी-रँग','मन की लहर', 'क्रान्ति-गीतांजलि', 'जार्ज वाशिंगटन' जैसी विचारोत्तेजक पुस्तकें एवं  महर्षि अरविन्द की बंगला पुस्तकों-  'योगिक साधन' और 'कारा काहिनी 'का हिन्दी-अनुवाद आदि उनकी साहित्यिक कृतियों के अतिरिक्त फाँसी से 3दिन पूर्व गोरखपुर जेल में    लिखी गयी उनकी 'आत्मकथा-निज जीवन एक छटा' का अनुशीलन करने के उपरान्त ही उनकी 'सम्पूर्ण क्रान्ति के दर्शन' को समझा जा सकता है। 27 फरवरी 1985 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में पठित शोधपत्र 'शस्त्र और शास्त्र महारथी - पं.रामप्रसाद 'बिस्मिल' {पं0 रामप्रसाद 'बिस्मिल'-ए वारियर आफ पेन एंड पिस्टल}  एवं  19 दिसम्बर 1996 को कांस्टीट्‌यूशन क्लब, नई दिल्ली में पूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा विमोचित चार खण्डों की ग्रंथावली-'सरफ़रोशी की तमन्ना' के पश्चात  वर्ष 2006 मेँ प्रवीण प्रकाशन दिल्ली द्वारा तीन खण्डों में   प्रकाशित 'स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का  इतिहास' में 20वीं शताब्दी के इस महान क्रान्तिकारी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व का सम्यक आकलन करने का प्रयास  मैंने  किया था, जिसे सम्पूर्ण विश्व में यदि किसी एक व्यक्ति ने सर्वांशत: समझने व अपने जीवन में कर्मश: उतारने का दुस्साहस  किया है तो वह है आज के युग का एक सर्वाधिक लोकप्रिय युवा सन्यासी बाबा रामदेव! मेरी  उस  परम पिता परमात्मा   से प्रति पल यही  प्रार्थना है कि वह बाबा रामदेव जी  के' भारत स्वाभिमान  अभियान' को यथाशीघ्र  सफल बनाये जिससे शहीदों के सपनों का हिन्दुस्तान बन सके । इति शम!

Sunday, February 6, 2011

Original photo of 'Bismil'

महान क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद 'बिस्मिल'
[1897-1927]


जिन्दगी से जूझे थे वे मौत से मजाक किया, क़ातिलोँ की बाजुओं से जोर आजमाया था।
राम    के    प्रसाद  थे  प्रसाद की  ही  भाँति निज , शीश काट- काट मातृभूमि पे चढ़ाया था।
देश -  दुर्दशा को  देख   घायल  हुए  थे ,   इस लिए  'बिस्मिल'   उपनाम   उन्हें   भाया    था ।
आदमी  नहीं  थे  वे  थे   देवता तभी तो स्वयं ,  दे  के  बलिदान देशभक्ति को जगाया था।

Congress Corrupted Country

$@#भ्रष्टाचार का भस्मासुर#@$

आज़ादी के बाद देश में  भ्रष्टाचार  बढ़ा  है ।
लोकतन्त्र के साये में कुल का आकार बढ़ा है॥

भारत भ्रष्टाचार राशि दोनों की एक रही है ।
काँग्रेस के साथ करप्शनका भी हाल यही है॥

पहले केवल हरे नोट पर गान्धी जी आए थे।
उसके  माने  काँग्रेस ने हमको बतलाए थे ॥

 चपरासी बाबू अफसर जब दफ्तर में तन जाए।
हरा नोट दिखला दो बिगड़ा हुआ काम बन जाए॥

आम आदमी को पहले इसकी आदत डलवाई ।  
उस के  बाद करप्शन की  सीमायें गईं  बढ़ाई ॥

दस के बाद पचास बाद में सौ पर  बापू आए ।
उसके बाद करप्शन ने अपने जौहर दिखलाए ॥

काँग्रेस ही सूटकेस की धाँसू  कल्चर  लाई ।
बापू की तस्वीर पाँच सौ के नोटों पर आई॥

दो गड्डी में पेटी भर का काम निकल जाता है।
लेन देन का धन्धा भी सुविधा से चल जाता है॥

अब  तो चिदम्बरम साहब  चश्में को पोंछ रहे हैं।
भ्रष्टाचार  घटाने  की  तरकीबें  सोच  रहे  हैं ॥

बड़े-बड़ों के घर आए दिन छापे  डाल रहे हैं ।
गान्धी बाबा गड़े हुए हैं उन्हें निकाल रहे हैं ॥

पहले सारा गड़ा हुआ   धन  ये बाहर ले आए ।
फिर  हजार के नोटों पर गान्धीजी  को छपबाए॥

पेटी अब पैकेट बनकर पाकेट में आ जाती है।
सोन चिरैया भारत में अब नजर नहीं आती है॥

लालू एक हजार कोटि की सीमा लाँघ चुके हैं।
नरसिम्हा चन्द्रास्वामी सब इसे डकार चुके हैं॥

माया के चक्कर में बी.जे.पी. ने साख गँवाई।
छ: महिने में माया ने अपनी माया दिखलाई॥

गली- गली नुक्कड़-नुक्कड़ चौराहे-दर-चौराहे।
बाबा साहब  भीमराव के  स्टेचू  गड़वाए ॥


नोटों पर गान्धी बाबा ने अपना रंग दिखाया ।
चौराहे पर    बाबा साहब ने  वोटर  भरमाया ॥

स्विस-लाण्ड्री से जिनके कपड़े धुलकर आते  थे।
और मौज मस्ती को जो स्वित्ज़रलैंड जाते  थे॥

काँग्रेस ने उनसे इन्ट्रोडक्शन करा लिया है।
नाती-पोतों के खातों का मजमा लगा दिया है॥

रानी की शह पाकर ए.राजा ने हद कर डाली।
कलमाड़ी के कीर्तिमान की कली-कली चुनवा ली॥

मनमोहन बन भीष्म बैठकर नाटक देख रहे हैँ।
चीर- हरण हो रहा और वे आँखें सेंक रहे हैँ ॥

अब तक ६३  सालों में जो कुछ हमने पाया है।
वह सब विश्व बैंक के चैनल से होकर आया है॥

काँग्रेस   का    बीज    यहाँ   अँग्रेजों    ने    बोया   था ।
जिसके  कारण भारत का जो स्वाभिमान खोया था॥

उसको योग-क्रान्ति के द्वारा  फिर वापस लाना है।
'बाबा' का सन्देश हमें  अब  घर-  घर पहुँचाना है ॥

Thursday, February 3, 2011

रामदेव का योग



मैं,मेरी पत्नी और मेरी बेटी (योगपीठ हरिद्वार में)





पूछ  रहे  हैं लोग   है,   रामदेव  क्या  चीज  ?
कहे 'क्रान्त' इस व्यक्ति में, है'बिस्मिल' का बीज.

राम एक युगपुरुष थे, 'बिस्मिल'राम-प्रसाद.
जो  आज़ादी   का हमें,    देकर  गए  प्रसाद.

अंग्रेजी साम्राज्य था,  सचमुच कितना दुष्ट.
क्रांतिकारियों को किया, एक एक कर नष्ट.

सन सत्ताईस में चढ़े,  सूली  रामप्रसाद.
बीस बरस के बाद यह, देश हुआ आजाद.

आत्मकथा में लिख गए,  बिस्मिल जी यह बात.
पुनः   जन्म   लूँगा   यहीं,    दुखी   न   होना   मात.

निश्चित ही इस जन्म में, कमी रही कुछ शेष.
जिसके कारण मैं नहीं,  कुछ कर सका विशेष.

लेकिन अगले जन्म में, पूर्ण शक्ति के साथ.
फिर  आऊँगा  दुष्ट  से,   करने   दो  दो   हाथ.

सन सैंतालिस में दिया, देश जिन्होंने बाँट.
रामदेव का योग  है,   उन दुष्टों  की  काट.