Sunday, March 30, 2014

2014 Electioneering scenario

चौदह का चुनाव

मित्रो! इस समय चुनाव-चर्चा चरम पर है ऐसे में हम जैसे आम-आदमी की सोच को दर्शाती एक गज़ल पोस्ट कर रहा हूँ यह कालजयी रचना है जिसका मूल्यांकन शायद कभी समय ही करेगा!

हम तो ले देके दौड़ लेते हैं!
वे हवाओं से होड़ लेते हैं!

पैंतरेबाज लोग इतने हैं,
मुँह सफाई से मोड़ लेते हैं!

आज उँगली पकड़ के चलते हैं,
कल कलाई मरोड़ लेते हैं!

तोड़ने के हुनर में माहिर हैं,
दल इशारों में तोड़ लेते हैं!

हमसे सीधा ज़रब नहीं जुड़ता,
वे तो तकसीम जोड़ लेते हैं!

'क्रान्त' इनका यकीन मत करना,
ये मुखौटे भी ओढ़ लेते हैं!!

 

नव संवत्सर अभिनन्दन

२०७१ वें नव संवत्सर की शुभकामनाएँ


संवत्सरो असि,परिवत्सरो असि, ईवत्सरो असि, इद्वत्सरो असि !
उषस:, अहोरात्र:, अर्द्धमास:, मासाश्च, ऋतव:, ते कल्पयन्ताम !!

प्रेत्यैच सम सारय प्रांच वत्सर, सुपर्ण आचित असि मंगलाचित!
देवस्तया  अंगिर  सीद अस्वत,  तया  ध्रुव:  नव - संवत्सरस्य !!

(यजुर्वेद-२७/४५ की प्रार्थना  का इन्द्रवज्रा छन्द में संस्कृत काव्य रूपान्तर)


उपरोक्त का हिन्दी काव्य-रूपान्तर

नया-वर्ष लो आ गया, गया पुराना वर्ष !
नये वर्ष में आपका, हो उत्तम उत्कर्ष !!

नव-प्रभात नव रात-दिन, नया पक्ष नव-मास!
नव-ऋतु बारह मास दें, जीवन में उल्लास!!

नये सुअवसर जो मिलें, कभी न जायें व्यर्थ!
यही हमारी दृष्टि हो, यही ध्येय का अर्थ!!

डॉ. मदनलाल वर्मा 'क्रान्त'
ग्रेटर नोएडा (भारत)