Wednesday, January 29, 2014

Ram Prasad Bismil as told by Ram Krishna Khatri

(ग्रुप में रामकृष्ण खत्री 6 नं० और रामप्रसाद बिस्मिल 1o नं० पर)

कितने बलवान थे बिस्मिल ?

काकोरी काण्ड में सजायाफ्ता क्रान्तिकारी स्व० रामकृष्ण खत्रीजी से मैं १५ जनवरी १९९४ को उनके निवास (मेंहदी बिल्डिंग कैसर बाग लखनऊ) में स्वयं जाकर मिला था. उन दिनों मैं रामप्रसाद बिस्मिल के बारे में तथ्य एकत्र कर रहा था. उन्होंने मुझे बिस्मिल के शारीरिक बल और बहादुरी के कुछ हैरत अंगेज किस्से सुनाये थे. उन्हीं में से दो किस्सों का मैं यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ.  
९ मार्च १९२५ (काकोरी काण्ड से ठीक ५ महीने पहले) रामप्रसाद 'बिस्मिल' के नेतृत्व में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के कुछ सदस्यों ने एक डकैती पीलीभीत जिले के बिचपुरी गाँव में तोती नाम के एक कुर्मी के यहाँ डाली थी. इस डकैती में क्रान्तिकारियों के हाथ कोई खास रकम तो नहीं आयी अलबत्ता दो बार पुलिस से मुठभेड़ जरूर हुई. लेकिन बिस्मिल की दिलेरी और प्रत्युत्पन्नमति से दल के सभी सदस्य बाल-बाल बच गये थे.

बकौल खत्री जी जब  हम  लोग पगडण्डी पर जा रहे थे सहसा सामने से एक पुलिस का गश्ती दल आता दिखायी पड़ा. पण्डित जी (रामप्रसाद बिस्मिल) ने तत्काल सभी साथियों को खेत में छिप जाने का आदेश दिया और खुद पगडण्डी पर बुत की तरह खड़े हो गये. न हिले न डुले. हम सबको आश्चर्य हो रहा था कि अब क्या होगा पण्डित जी अकेले खड़े हैं और सामने से आने वाले गश्ती दल में पता नहीं कितने पुलिस वाले होंगे? खैर, हम सभी साथी साँस रोककर अपने-अपने हथियार सम्हाले हुए पूरी तौर पर सतर्क होकर लेट गये.

तभी गश्ती दल पास आया. पण्डित जी एक दम बुत की तरह खड़े रहे न हिले न डुले और न ही आँखों की पलक झपकने दी. पुलिस इन्सपेक्टर ने उनसे एक फुट के फासले पर जायजा लिया कि देखें तो यह बला क्या है जो चुपचाप खड़ी हुई है और कोई हरकत भी नहीं कर रही. यहाँ तक अपनी पलक भी नहीं झपका रही. इन्सपेक्टर ने किताबों में हिन्दुस्तानी भूतों की कहानियाँ पढ़ी हुई थीं. सहसा उसे लगा कि हो न हो यह कोई भूत है जो आज यहाँ मेरा रास्ता रोककर खड़ा हुआ है. क्योंकि अगर यह आदमी होता तो रास्ते से हट जाता और अगर चोर होता तो भाग खड़ा होता. वह अभी असमंजस में ही था कि पण्डित जी ने बायें हाथ से खोपड़ी पकड़कर उस इन्सपेक्टर की गर्दन इतनी बुरी तरह मरोड़ी कि वह "भूत! भूत!" कहकर उल्टे पाँव वहाँ से भाग लिया. उसकी देखा-देखी बाकी सिपाही भी उसके पीछे-पीछे हाँफते हुए दौड़ लिये.

पण्डित जी की बहादुरी से हम सब हैरान रह गये. रास्ते में पण्डित जी ने हम लोगों से हँसते हुए कहा - "देखा ये पुलिस वाले कितने बहादुर होते हैं जो आदमी तो आदमी भूत से भी इतना ज्यादा डरते हैं!"

दूसरा किस्सा खत्री जी ने लखनऊ जेल का सुनाया. 195 एकड़ में बनी हुई यह खुली जेल हुआ करती थी जिसके जेलर उन दिनों चम्पालाल जी थे. जेल में हम सभी क्रान्तिकारियों को पूरी आज़ादी थी. जेल की बैरक नं० ग्यारह में हम सभी क्रांतिकारियों को रखा गया था. सुबह का वक़्त था हम लोग अखबार पढ़ रहे थे. अखबार में एक खबर छपी थी कलयुगी भीम प्रो० राममूर्ति का ऐलान - "सरकार गौकसी बन्द कर दे तो वे रेल का इंजन रोक कर दिखा देंगे". उन दिनों प्रो० राममूर्ति जिनका पूरा नाम कोडी राममूर्ति नायडू था, हिन्दुस्तान के एक ऐसे महाबली पहलवान थे जिनकी धाक पूरे संसार में थी. मोटर गाड़ियों को रोकने का करिश्मा वे देश-विदेश में कई जगह कर चुके थे. कलयुगी भीम की उपाधि उन्हें किसी और ने नहीं वरन खुद ब्रिटिश सरकार ने दी हुई थी.

अखबार पढ़कर हम लोग आपस में बहस करने लगे. यह सब बकवास है कहाँ गाड़ी का इंजन और कहाँ एक आदमी! यह कैसे सम्भव हो सकता है? इतने में शायद मन्मथनाथ गुप्त ने मजाक में कह दिया मोटर गाड़ी रोकने की खबर अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान की भोली-भाली जनता का ध्यान बँटाने के लिये अखबार में छाप दी है इसमें कोई सच्चाई थोड़े ही है. हम सब उनकी बात सुनकर हाँ में हाँ मिलाने लगे. तभी पण्डित जी उठे और हम सबको बताने लगे- "आप लोगों ने प्रो० राममूर्ति को देखा नहीं है, मैंने देखा है जब वे खण्डवा (म०प्र०) आये थे. वे बली नहीं महाबली हैं. उनके लिये मोटर गाड़ी रोक देना बायें हाथ का खेल है." हमने भी उत्सुकता वश पण्डित  जी से प्रश्न किया-"यह कैसे सम्भव है?' उन्होंने उत्तर दिया - "योगबल से सब कुछ सम्भव है."

इतने में शचीन्द्रनाथ सान्याल बोल उठे- "तब तो पण्डित जी आप भी रोक देंगे. आप भी तो रोजाना योग करते हैं. क्यों पण्डित जी?" पण्डित जी हँसे और बोले - "हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फ़ारसी क्या?"
"हाँ भाई हाँ!" किसी ने पीछे से फिकरा कसा. दूसरा बोला- "और अपने पण्डित जी तो उर्दू-फ़ारसी भी जानते हैं. गाड़ी मँगा लो. देखते हैं रोक पाते हैं कि नहीं." इतने में पुलिस की एक बहुत बड़ी ट्रकनुमा लारी आ गयी.

पण्डित जी हँसे और बँगला में बोले - "दादा! परीक्षा मत लो किरकिरी हो जायेगी!" सचिन दा भी कम नहीं थे बोल पड़े- "यह कोई मामूली लारी नहीं, ६४ हार्सपावर का फोर व्हील ड्राइव ट्रक है. क्या समझे पण्डित जी! बाजू उखड़ के बाहर आ जायेंगे."  देखा जाये तो सचिन दा ने एक तरह से खुला चैलेन्ज ही दे दिया था रामप्रसाद बिस्मिल  जैसे एक ऐसे क्रान्तिकारी को जो पहले से ही ब्रिटिश साम्राज्य को खुली चुनौती दे चुका था.

काफी बहस के बाद तय किया गया कि ड्राइवर को कहा जाय कि वह लारी स्टार्ट करे और पण्डित जी रोक कर दिखाएँगे! इस पर पण्डित जी बोले मेरी भी एक शर्त है- "आप सब लोग लारी में बैठ जायेंगे. मैदान में कोई एक भी नहीं रहेगा वरना दादा का कोई भरोसा नहीं ये कह देंगे सारे यू०पी० वालों ने रामप्रसाद को सहारा दे दिया होगा. वरना अकेले कोई इतनी बड़ी लारी रोक कर क्या अपने अस्थिपंजर ढीले करायेगा?"

खत्री जी ने आगे जो कहानी बतायी वह स्तब्ध कर देने वाली थी. "लारी बीचोंबीच मैदान में खड़ी की गयी. हम सभी क्रांतिकारियों को उसमें बैठाया गया. ६ नम्बर का कैदी मैं था मैं सबसे बाद में इसलिये बैठा कि कहीं कुछ अनहोनी हुई तो फटाक से कूदकर पण्डित जी को बचा लूँगा. क्योंकि इन दादा लोगों का क्या भरोसा? ये पहले पेड़ पर चढ़ा देते हैं फिर उसका तना काटने लगते हैं.

पण्डित जी ने पहले हुड में रस्से को खूब मजबूती से बाँधा फिर उसे अच्छी तरह चेक किया कि कहीं टूटेगा तो नहीं. उसके बाद अखाड़े की मिट्टी अपने दोनों हाथों में मली जिससे पकड़  ढीली न हो जाये, मातृभूमि की थोड़ी सी रज लेकर माथे से लगायी और परमात्मा का स्मरण करके रस्सा पकड़ लिया. पण्डित जी साँस रोककर खड़े हो गये. ड्राइवर ने भी लारी स्टार्ट की और पूरी ताकत से एक्सेलेटर दबा दिया. खत्री जी बताया- "हम सभी के आश्चर्य का कोई ठिकाना ही न रहा जब लारी के चारो पहिये धूल फेंकने लगे और लारी अपनी जगह से एक इंच भी टस से मस न हुई. इतने बलवान थे पण्डित जी! आह! ऐसे नवजवान अब इस लोक में दुबारा कहाँ देखने को मिलेंगे?"

इतना कहकर खत्री जी की आँखें भर आयीं. मैं भी सोचने लगा परमात्मा भी कितना विचित्र है! कैसे-कैसे खेल रचाता रहता है! उसने यह देखने को मुझे ही लखनऊ भेज दिया कि जाओ और अपने साथियों के विचार  जानो, वे कैसा सोचते हैं .......    

Tuesday, January 28, 2014

Ai mere vatan ke logo! (symetrical song)



जो हुई थी इमरजेंसी में ........

कविवर रामचंद्र द्विवेदी 'प्रदीप' के लिखे और संगीतकार सी. रामचंद्र के संगीत से सजे गीत ' ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी' को ५१ साल पहले जब नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में पहली बार लता मंगेशकर ने गाया था तो उनकी आँखें भर आयीं थीं.

मैंने इमरजेंसी के दौरान इसी गीत की तर्ज़ पर यह गीत लिखा था. बाद में यही गीत बम्बई से प्रकाशित "माधुरी" पत्रिका में १० जून १९७७ को प्रकाशित हुआ था. कल जब मुम्बई में लता दीदी ने नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में लाखों लोगों के साथ इसे गाया तो मुझे लगा कि अब आवश्यकता है कि इतिहास को बतलाया जाये. इसलिये अपने ब्लाग के पाठकों के लिये यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ.

ऐ मेरे वतन के लोगों! खुश होके मनाओ दिवाली!
मुद्दत के बाद कटी हैं वो गम की घटाएँ काली!!
पर मत भूलो हम सब पर ऐसे भी बुरे दिन आये!
कुछ याद उन्हें भी कर लो,
कुछ याद उन्हें भी कर लो ....
जो जुल्म गये थे ढाये......!!!

ऐ मेरे वतन के लोगों! जरा सोच के पिछली कहानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!

जब देश में थी दीवाली, बेटा थे सितम ढाने में!
मइया बैठी थी महल में, नेता थे कैदखाने में!!
घुटने पे टिकाकर माथा, सो गये थे वो अभिमानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!

कर संविधान संशोधन पहले छीनी आज़ादी!
ऊपर से लगाकर 'मीसा' नीचे से नसें कटवा दीं!!
फिर प्रेस पे लगाकर सेंशरशिप कर दी कड़ी निगरानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!

कोई नट कोई भाट बना था, कोई चमचा कोई चपरासी!
युवराज पे मरने वाला, कहता था उन्हें अविनाशी!!
इन्दिरा हि बस भारत हैं सुनकर थी हुई हैरानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!

चण्डी की तरह झपटी थी, नेहरू की बहादुर बेटी!
अपनी 'कुर्सी' को बचाने, कस ली थी कमर में पेटी!!
जिस-जिस से उन्हें खतरा था, उस-उस को पिलाया पानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!

जनता को समझ कर माफिक, झट से चुनाव करवाया!
पर पाँसा ऐसा पलटा, सबका हो गया सफाया!!
जब कुछ भि न बन पाया तो कह दिया कि सह लेते हैं!
खुश रहना खिदमतगारों! हम इस्तीफ़ा देते हैं!!

सोचो तो यह सच लगता है, कुर्सी की थी क्रूर कहानी!
जो हुई थी इमरजेंसी में जरा याद करो मनमानी!!  


Tuesday, January 14, 2014

HAPPY EARTH DAY!


मकर संक्रान्ति 14 -01-2014 पर HAPPY EARTH DAY!

अहा! कर रहा अभिनन्दन नव-वर्ष तुम्हारा,
यह वसुधा का जन्म-दिवस हो सबको प्यारा!
हमें न मोहे  सुरा-सुन्दरी का आकर्षण,
राष्ट्र-प्रेम की बहे ह्रदय में अविरल धारा!

जिस धरती पर पैदा होकर मर जाते हैं,
उसके लिए होम कर दें यह जीवन सारा!
मानवता जो अब तक पड़ी कराह रही है,
उसके प्रति भी हो कुछ तो कर्तव्य हमारा!

नोट: मित्रो! १४ जनवरी मकर संक्रान्ति के दिन मैंने हम सबकी माँ धरतीमाँ के पावन जन्म-दिवस १४ जनवरी पर अपनी शुभ-कामनायें पहले अंग्रेजी में दी थीं उसके बाद उपरोक्त हिन्दी कविता में प्रस्तुत की थीं इस वर्ष नये नारे "हैप्पी अर्थ डे!" के साथ समस्त देश वासियों को अपने ह्रदय से नव वर्ष की शुभ-कामनायें देता हूँ.  

Wednesday, January 1, 2014

Krantikari - Manifesto of H.R.A. (In Hindi)

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन द्वारा १ जनवरी १९२५ को मूलत: अंग्रेजी में प्रकाशित यह घोषणा-पत्र अंग्रेजी विकिसोर्स में भी उपलब्ध है। मैंने इसका हिन्दी काव्यानुवाद २००६ में स्वयं किया था अपनी पुस्तक स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास से लेकर यहाँ पर पोस्ट किया है।
 

 
क्रान्तिकारी

                      ( भारत की क्रान्तिकारी पार्टी (एच० आर० ए०) का घोषणा-पत्र )


नया सितारा उगता है तो उथलपुथल मचती है,
बिना प्रसवपीड़ा के जननी कब शिशु को जनती है;

भारत में भी नयी व्यवस्था को पैदा होना है,

इसीलिये तो असामान्य सी स्थिति यह दिखती है!

 
जब सारे अनुमान आकलन असफल हो जायेंगे,
बुद्धिमान बलवान सरल निर्बल से घबरायेंगे;
मानवता का दुःख हरने को नये राष्ट्र उभरेंगे,
बड़े-बड़े साम्राज्य सभी मिट्टी में मिल जायेंगे!!
 
इस ताकत ने दुनिया को अन्दर से हिला दिया है।
नयी भावना ने सचमुच कैसा गुल खिला दिया है!
हिन्दुस्तानी युवा-रक्त में फिर उबाल आया है,
देशभक्ति के जज़्बे ने अपना रँग दिखा दिया है।
 
अब तक हमको बड़े-बड़ों ने हुल्लड़बाज कहा है,
उनकी घृणा-उपेक्षा को हमने हर बार सहा है।
लेकिन अब हम खुलेआम कुछ करने को निकले हैं,
तभी क्रान्तिकारी दल यह अखबार निकाल रहा है।
 
यह आन्दोलन कमजोरों को शक्ति प्रदान करेगा।
स्वस्थ और बलवानों में प्रेरक-अनुभाव भरेगा।
पढ़े-लिखे और बुद्धिमान सारे चकरा जायेंगे,
जो इसका उपहास करेगा, वह बेमौत मरेगा।
 
अत्याचार दमन कितना हो, देखें क्या कर लेगा?
क्या बसन्त ऋतु के आने को पतझड़ रोक सकेगा?
जिस उद्देश्य-प्राप्ति हित इसका आविर्भाव हुआ है,
उसे बिना पाये अब यह आन्दोलन नहीं रुकेगा।
 
क्रूर हमारा दमन करेंगे, धोखेबाज हँसेंगे।
कुछ इसकी भर्त्सना करेंगे, बाकी व्यंग्य कसेंगे ।
क्या तलवारों से विचार को कोई काट सका है,
ये जालिम सय्याद जाल में अपने आप फँसेंगे
 
यह आन्दोलन महा-क्रान्तिकारी संग्राम रचेगा।
जिसकी भीषणता से भारत में कोहराम मचेगा।
इसका तिरस्कार करने वाले यह खूब समझ लें,
जो ऐसा सोचेगा वह फिर जिन्दा नहीं बचेगा।
 
विगत बीस बरसों में इसको खत्म नहीं कर पाये।
बड़े-बड़े नेताओं ने भ्रम-जाल बहुत फैलाये।
लेकिन नौजवान उनके मनसूबे समझ चुके थे,
इसीलिये वे उन्हें छोड़कर साथ हमारे आये।
 
इसका ही भविष्य है, इसको कोई नहीं नकारे।
कहो विश्व से वह भी इस सच्चाई को स्वीकारे।
किसी विदेशी शासक के अनुचित दबाव में आकर,
अब कोई भी देश उपेक्षा से मत इसे निहारे।
 
विदेशियों को हम पर शासन का अधिकार नहीं है।
उनसे कहो कि जायें, हमको उनसे प्यार नहीं है।
दमन और उत्पीड़न में जो हिंसा वे करते हैं,
उनसे पूछो-क्या इसका कोई प्रतिकार नहीं है?
 
इस अन्यायी शासन को जड़ सहित मिटाना होगा।
चप्पे-चप्पे से खदेड़कर उन्हें हटाना होगा।
तलवारों के बल पर अब तक हम पर राज किया है,
उसी धार का लोहा अब उनसे मनवाना होगा।
 
क्रान्तिकारियों के दल का यह अन्तिम लक्ष्य रहा है।
बिल्कुल नहीं सहेंगे, जो अब तक अन्याय सहा है।
अंग्रेजों के आकाओं को साफ-साफ समझा दो,
कान खोलकर सुन लें जो हमने इस बार कहा है।
 
शस्त्र-क्रान्ति के द्वारा हमको प्रजातन्त्र लाना है।
भारत को गणतन्त्र राज्य का जामा पहनाना है।
जनता द्वारा चुनकर जब हम संसद में जायेंगे,
इसका अन्तिम संविधान तब हमको बतलाना है।
 
प्रजातन्त्र में मत देने का सबको मौका होगा।
कोई शोषण नहीं, किसी के साथ न धोखा होगा।
यातायात, जहाज, रेल, संचार, लौह-उत्पादन
सहित सभी उद्योगों पर सरकारी .कब्जा होगा
 
इस पद्धति में जनता को सारा अधिकार मिलेगा।
चुना हुआ प्रतिनिधि उसकी इच्छा अनुसार चलेगा।
यदि जनता को लगे कि प्रतिनिधि काम नहीं करता है
तो फिर उसे बदल देने का अवसर उसे मिलेगा।
 
यह  राष्ट्रीय  नहीं,  अन्तर्राष्ट्रीय-पार्टी  होगी।
सभी राष्ट्रों से इसको मित्रता निभानी होगी।
विश्व-शान्ति के लिये सभी देशों को अपनी-अपनी,
होड़ छोड़कर, पारस्परिक-सन्धि अपनानी होगी।
 
मानवता के हित की जो ये बातें हम करते हैं।
सिर्फ ढिंढोरा नहीं, न इसकी डींग कभी भरते हैं।
कोई तो कुछ करे, इसी से हम आगे आये हैं
कायर औ कमजोर करें क्या, वे इससे डरते हैं।
 
सम्प्रदाय का प्रश्न हमें मिल-जुलकर हल करना है।
एक-दूसरे के मन में अब घृणा नहीं भरना है।
किसी वर्ग को कभी विशेष अधिकार नहीं हम देंगे,
जिससे द्वेष फैलता हो वह जहर हमें हरना है।
 
असंगठित व्यवसाय अकेले करना बेमानी है।
मिलकर काम करो तो उन्नति निश्चित ही आनी है।
इसीलिये हम भारत में सहकारी युग लायेंगे,
क्योंकि हमें आर्थिक प्रगति भी करके दिखलानी है।
 
आध्यात्मिक क्षेत्र में हमको ऐसा कुछ करना है।
जिससे आत्मा की उन्नति हो वही भाव भरना है।
माया या भ्रम नहीं, सत्य पर यह जग आधारित है,
जीवन में प्रकाश भर के अब अन्धकार हरना है।
 
ब्रह्म सभी में है यह सारे जग को समझाना है।
यही बिन्दु है जिस पर सारे जीवों को आना है।
दुनिया भर के प्राणी जिस चक्कर में पड़े हुए हैं,
उनको उस भ्रम से निकालकर सत्पथ पर लाना है।
 
दल की नीति-कार्यक्रम, सब कुछ पहले से ही तय है।
लेकिन उसे प्रकट करने के पीछे अभी समय है।
हाँ, यदि यह सरकार कभी चाहेगी तो देखेंगे,
अभी हमारा इसे गुप्त रखने का दृढ़ निश्चय है।
 
अन्य पार्टियों के प्रति इसका यही स्वभाव रहेगा।
जैसा जहाँ उचित होगा वैसा ही भाव रहेगा।
असहयोग-सहयोग, असहमति-सहमति में कोई-सा,
कांग्रेस की नीति देखकर ही वर्ताव रहेगा।
 
लेकिन जो कुछ वर्तमान में कांग्रेस करती है।
यह पार्टी हमारी उसका बहिष्कार करती है।
संवैधानिक ढँग से जो आन्दोलन चला रहे हैं,
उन समस्त नेताओं का यह तिरस्कार करती है।
 
शान्तिपूर्ण कानूनी ढँग से क्या कुछ हासिल होगा?
धोखा भले स्वयं को दे लो, प्रश्न नहीं हल होगा।
जो दुर्दशा देश की इन दुष्टों ने कर रखी है,
ऐसे में कानून शब्द मिलना भी मुश्किल होगा।
 
शत्रु हमारी शान्ति भंग करने पर तुला हुआ है।
दंगे कौन कराता है यह पर्दा खुला हुआ है।
हर कीमत पर शान्ति-शान्ति की कसम उठा रक्खी है,
उनसे पूछो-'क्या अंग्रेजों का मुँह धुला हुआ है?
 
करने को वे आदर्शों का ढोंग खूब करते हैं।
सत्य हमेशा कहने का खोखला दम्भ भरते हैं।
पूर्ण स्वराज्य चाहिये यह सच साफ-साफ कहने में,
पता नहीं क्यों वे इतना अंग्रेजों से डरते हैं?
 
आदर्शों को जीने वाले दुःख ही दुःख सहते हैं।
राष्ट्र तभी बनते हैं जब आदर्श उच्च रहते हैं।
पूर्ण स्वराज्य माँगने से हरदम डरने वाले भी,
जाने कैसे वे अपने को आध्यात्मिक कहते हैं?
 
ऊपर से दिखते हों पर क्या वे सचमुच ऐसे हैं?
जिसे 'महात्माकहते हो क्या उसमें गुण वैसे हैं?
समय आ गया है यह सच्चाई सबको बतला दो,
ऊपर से जो दिखते हैं, वे अन्दर से कैसे हैं?
 
हम बतलाते हैं आदर्श हमारा कैसा होगा?
मानवता की सेवा जिससे हो, कुछ वैसा होगा।
वह सेवा भी संघबद्ध होकर हम लोग करेंगे,
लेकिन उसके लिये देश का तन्त्र न ऐसा होगा।
 
जब तक वह परतन्त्र रहेगा धोखा ही खायेगा।
ऐसे में कैसे उसको आदर्श समझ आयेगा।
इसीलिये पहले स्वदेश को मुक्त कराना होगा,
उसके बाद कहीं जाकर वह लक्ष्य समझ पायेगा।
 
शान्तिपूर्ण वैधानिक ढँग से क्या कुछ हासिल होगा?
बच्चा भी यह बात जान लेगा जो काबिल होगा।
जिन कानूनों के बल पर शासन हम पर करते हैं,
क्या अब उन्हें बनाने में भारत भी शामिल होगा?
 
ब्रिटिश इण्डिया के चंगुल से इसे छुड़ाना होगा।
इसको पहले जैसा भारतवर्ष बनाना होगा।
ब्रिटिश नियन्त्रण के रहते यह कभी नहीं सम्भव है,
पहले उसका संविधान-कानून हटाना होगा।
 
भारत के राज्यों को अब संयुक्त किया जायेगा।
उसको अपने संविधान से युक्त किया जायेगा।
हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ तभी यह होगा,
ब्रिटिश गुलामी से इसको जब मुक्त किया जायेगा।
 
भारत के नवयुवको! झूठे अविश्वास को छोड़ो।
स्थिति को समझो, संघर्षों से मुँह कभी न मोड़ो।
अब जो कुछ होना है, सो होना है फिर भय कैसा?
क्रान्तिकारियों की पार्टी से खुलकर नाता जोड़ो।
 
शान्ति और सुख की कोई भी कली नहीं खिलनी है।
शान्तिपूर्ण ढँग से भारत को मुक्ति नहीं मिलनी है।
याद करो इन शब्दों को जो लिक्खे राबर्सन ने,
इन शब्दों से ही इस साम्राज्य की जड़ हिलनी है।
 
आन्दोलन के साथ कार्यक्रम जो सुधार के आये।
प्रोटेस्टेण्ट आयरिश नेताओं ने वे दिलवाये।
ब्रिटिश राजनयिकों ने ही यह घातक भेद दिया था,
जिसके कारण वे अंग्रेजों को काबू कर पाये।
 
यह रहस्य जो कुछ उनको उन लोगों ने बतलाये।
वे सारे हथकण्डे ही उन लोगों ने अपनाये।
ताकत के बल पर तुम इनसे कुछ भी ले सकते हो,
इन अंग्रेजों से न बहस में कोई कुछ ले पाये।

हैनोवर के शासन में जब इंग्लिस्तान रहा है।

उस इतिहास-पुस्तिका का यह सूत्र प्रधान रहा है।
यह रहस्य शायद इन नेताओं को ज्ञात नहीं है,
या शायद मूर्खता पूर्ण इनका अभिमान रहा है।
 
भारत के इन बुद्धिमान लोगों का ऐसा मत है।
कभी न शस्त्रों से जीता जा सकता, यह भारत है।
वह इस आशा को रखना मूर्खतापूर्ण कहते हैं,
उनका कहना ऐसा ही, या उससे बड़ा गलत है।
 
जिसे मूर्खता का दर्जा इन सबने दिया हुआ है।
इनसे पूछो उसे हाथ में किसने लिया हुआ है।
इनको पता नहीं दुनिया का एक पाँचवा हिस्सा,
मुट्ठी भर अंग्रेजों ने -कब्जे में किया हुआ है।
 
क्या इस प्रामाणिकता पर कोई कुछ कह सकता है?
बेशक हमें देखने में कल्पनातीत लगता है।
लेकिन यह सच है इस सच्चाई को तो स्वीकारो,
मुट्ठी भर अंग्रेजों की इस भारत पर सत्ता है।
 
किसे अराजकता, किसको आतंकवाद कहते हैं?
थोड़े शब्द इन्हीं दो शब्दों पर अब हम कहते हैं।
जो अनर्थ भारत में इन शब्दों का कर रक्खा है,
जिसके कारण हम आरोपों की वर्षा सहते हैं।
 
क्रान्तिकारियों के विरुद्ध जब कुछ करना होता है।
या फिर उन्हें सीखचों के पीछे धरना होता है।
सबसे सुविधाजनक यही दो शब्द उन्हें लगते हैं,
गिरफ़्तार करने का परवाना भरना होता है।
 
हम न अराजकतावादी हैं, न आतंकवादी हैं।
हम सच्चे अर्थों में पक्के मानवतावादी हैं।
हम अपने उद्देश्य यहाँ पहले ही बता चुके हैं,
जो हमको ऐसा कहते हैं, वे मिथ्यावादी हैं।
 
स्वतन्त्रता की प्राप्ति हेतु आतंकवाद साधन है।
अपना यह विश्वास नहीं है ना अपना यह मन है।
जो आतंकवाद फैलाते हैं वे साफ समझ लें,
जनता को आतंकित करना ही उनका शासन है।
 
जिसके बल पर वह सबको -कब्जे में लिये हुए हैं।
इस भय के कारण ही मुँह उन सबके सिये हुए हैं।
भारतीय जनता को अंग्रेजों से प्यार नहीं है,
प्यार जताने का वह केवल नाटक किये हुए हैं।
 
अंग्रेजों की सिर्फ़ सहायता का जो दम भरती है।
इसका कारण यह है वह उनसे बेहद डरती है।
क्रान्तिकारियों की सहायता तभी न कर पाती है,
वरना ऐसी बात नहीं, वह उन्हें प्यार करती है।
 
सरकारी आतंकवाद का उत्तर भी देना है।
इसीलिये तो हमने भी यह बना रखी सेना है।
इस समाज में जिधर देखिये, बेहद लाचारी है,
इस लाचारी की समाप्ति का निर्णय भी लेना है।
 
हम आतंकवाद से नयी भावना फैलायेंगे।
जनता को इसके बारे में खुलकर बतलायेंगे।
जो अंग्रेजों या उनके गुर्गों ने कर रक्खा है,
अब वे कभी न भूले से भी वैसा कर पायेंगे।
 
जो ऐसा करना चाहेगा रोक दिया जायेगा।
हर सम्भव ढँग से उसका प्रतिरोध किया जायेगा।
इस पर भी जो यह करने से बाज नहीं आया तो,
उसका जीवन, जैसे भी हो, छीन लिया जायेगा।
 
इस आतंकवाद की चर्चा दुनिया में फैलेगी।
इसके जरिये बात हमारी दूर-दूर पहुँचेगी।
जो ब्रिटेन के दुश्मन हैं वे हमसे स्वतः जुडेंगे,
जिसके कारण भारत को आजादी शीघ्र मिलेगी।
 
सरकारी एजेन्ट बड़े पैमाने पर आते हैं।
वही हमारी माँ-बहनों पर हमले करवाते हैं।
किन्तु समय की नाजुकता को हमने भाँप लिया है,
इसीलिये हम उसका बदला अभी न दे पाते हैं।
 
किन्तु पार्टी उचित समय पर अन्तिम चोट करेगी।
लेकिन कभी जरूरत हो तो बिल्कुल नहीं डरेगी।
यदि कोई अंग्रेज कभी भी अग्नि-परीक्षा लेगा,
उसकी खाल खींचकर उसमें भूसा तभी भरेगी।
 
अंग्रेजों की मदद करेंगे या जो जुल्म करेंगे।
उन सबके विरुद्ध आन्दोलन हम प्रारम्भ करेंगे।
चाहें हो वह भारतीय, अथवा हो यूरोपवासी,
छोटा हो या बड़ा, रियायत बिल्कुल नहीं करेंगे।


पार्टी इसके बावजूद यह कभी नहीं भूलेगी।
बिना बात आतंकवाद का पक्ष नहीं वह लेगी।
हाँ, इतना अवश्य है वह अनवरत रूप से अपना
दल स्थापित करने में कछुये की चाल चलेगी।
 
निष्ठावान समर्पित लोगों को संगठित करेगी।
त्यागी निस्वार्थी कार्यकर्त्ताओं को खोजेगी।
सामाजिक के साथ राजनीतिक स्वतन्त्रता पाने
के सारे उपाय सर्वोत्तम ढँग से स्वतः करेगी।
 
सभी स्वयंसेवी पद्धति से अपना कार्य करेंगे।
राष्ट्र-भवन निर्माण हेतु वे ऐसी नींव धरेंगे।
जिसमें आत्मोत्सर्ग स्वयं करने का भाव रहेगा,
बलिवेदी पर पुरुष-स्त्री हँसते हुए मरेंगे।
 
ऐसा करने में वे खुद मरने से नहीं डरेंगे।
अपनी या अपने स्वजनों की चिन्ता नहीं करेंगे।
उनके मन में सदा देश का हित सर्वोपरि होगा,
इसके हित में सदा जियेंगे इसके लिये मरेंगे।

ह० विजयकुमार (बिस्मिल का छद्म नाम)
अध्यक्ष, केन्द्रीय परिषद
भारतीय प्रजातन्त्र संघ (एच० आर० ए०)