Wednesday, February 29, 2012

Another Scam in Voter-List

वोटर लिस्ट में भी घोटाला

कल २८ फरवरी २००८ को मैं अपने घर से २५ किलोमीटर दूर चलकर नोएडा अपने बेटे स्वदेश बहू श्वेता और पत्नी किरन के साथ वोट डालने गया मेरी बेटी सोनू और दामाद सिद्धार्थ भी वहाँ पहुँच कर मेरा इन्तजार कर रहे थे. मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मेरा और मेरी पत्नी दोनों का ही वोटर लिस्ट में नाम नहीं था.

मैंने इसकी शिकायत वहाँ पर मौजूद चुनाव पर्यवेक्षकों से की तो उन्होंने कि वे इसमें हम दोनों की कोई मदद नहीं कर सकते. मैंने पूछा कि फिर इस मतदान पहचान पत्र का क्या उपयोग है? तो वे चुपचाप वहाँ से खिसक लिये यह कहते हुए कि चुनाव के बाद देखेंगे.

मैंने वहाँ पर मौजूद मीडियाकर्मियों से शिकायत करनी चाही तो वे भी कन्नी काट गये और उलटे हम पर यह आरोप लगाने लगे कि आपको मतदाता सूची में नाम  देखकर ही घर से आना चाहिये था. मैंने कहा आप मेरी शिकायत रिकार्ड करिये तो वे यह कहकर कि थोडा रुकिए वहाँ पर आये एक प्रत्याशी की रिकार्डिंग करने लगे और फिर तेजी से गाड़ी में सवार होकर फूट लिये शायद उन्हें अगले बूथ पर किसी और प्रत्याशी के वोट डालने का संदेश आ गया था. मुझ जैसे वेचारे कई मतदाता इसी प्रकार मतदान पहचान पत्र होने के वाबजूद अपने मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित रह गये और मायूस होकर अपने-अपने घरों को लौट गये.

मैं ६५ साल की उम्र में पहली बार अपना वोट इस बार नहीं डाल सका. घर पहुँचा तो टीवी पर मीडिया अरविन्द केजरीवाल की खिचाई करने में बुरी तरह लगा हुआ था कि वे अपना वोट डाले बगैर गोवा  भाग रहे थे. ऐसे-ऐसे आरोप लगा रहे थे मानों वे देश छोडकर पलायन कर  रहे हों.

चर्चा पूरे दिन और देर रात गये तक बराबर  चलती रही कि यह पूरी की पूरी अन्ना टीम दूसरों को तो सीख देती है मगर खुद वोट नहीं डालती. इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि मतदान पहचान पत्र होते हुए किसी भी व्यक्ति वोट डालने से वंचित रखना क्या उसके मौलिक अधिकारों का हनन नहीं हैं और क्या इसके लिये  चुनाव आयोग पर मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये?

बहरहाल मुझे ऐसा लगता है कि इस बार विधान सभा चुनाव परिणाम चौंकाने वाले होंगे और एक  प्रकार से यह चुनाव अब तक का सबसे बड़ा घोटाला सिद्ध होकर रहेगा. येन-केन-प्रकारेण विधान सभाओं  की बागडोर केन्द्र सरकार के हाथ में होगी, दैवयोग से जिसका चुनाव-चिन्ह भी हाथ  ही है.

Thursday, February 23, 2012

THY EYES

तुम्हारे नयन
 (श्रृंगारिक रचना)

मन ये करता इन्हें देखता ही रहूँ, इतने प्यारे लगे हैं तुम्हारे नयन.
अब सदा सर्वदा के लिए बस गये, इस हृदय में तुम्हारे कुँवारे नयन.

देखना चाहे कोई तो दिखती नहीं, यत्न कितने करो किन्तु बुझती नहीं;
आग ऐसी हृदय में लगाकर गये, खंजनी से कटारे तुम्हारे नयन.

यदि ये अधरों की हो तो बुझाये बने, है ये वो जो न हमसे छुपाये बने;
प्यास नयनों में कैसी जगा कर गये, चातकी से छटारे तुम्हारे नयन.

शुष्क बाती तो थी देह के दीप में, किन्तु मोती न था साँस की सीप में;
स्नेह पा प्राण की बर्तिका जल उठी, मिल गये जब हमारे-तुम्हारे नयन. 

Friday, February 17, 2012

Save Hindi & Hindu to save the country!!!

.....तो बचा रहेगा हिन्दुस्तान
                      (आल्हा छन्द)

देश-धर्म की बलि-वेदी पर, कितने लोग हुए कुर्बान;
तब जाकर आज़ाद हुआ था, मुल्क हमारा हिन्दुस्तान.
अल्लामा इकबाल ने गाया, देशभक्ति का यह जय-गान;
सारी दुनिया से अच्छा है, मुल्क हमारा हिन्दुस्तान.

महामना ने बतलाये थे, देश-भक्ति के तीन निशान-
भाषा-धर्म-देश के माने,"हिन्दी"-"हिन्दू"-"हिन्दुस्तान".

आज़ादी मिलते ही खो दी, हमने अपनी वह पहचान;
अपनी भाषा भूल गये हम, देश-धर्म का रहा न ध्यान.
भारत माता की जय भूले, भूल गये वह गौरव-गान;
झण्डा ऊँचा रहे हमारा, जाये कभी न इसकी शान.

चाहे जान भले ही जाये, बच्चा-बच्चा हो बलिदान;
लेकिन अपना मुल्क रहेगा, सबसे ऊँचा हिन्दुस्तान.

आज़ादी के बाद खो दिये, हमने अपने सभी निशान;
भाषा खो दी धर्म खो दिया, देश खो दिया हिन्दुस्तान.
अंग्रेजी ने छीन लिया है, हिन्दी से उसका स्थान;
सरकारी सेकुलर नीति ने, हिन्दू की खो दी पहचान.

भाषाओँ में भेद बताकर, कुटिल नीति से बना विधान;
प्रान्त-प्रान्त की भाषाओँ में, बाँट दिया कुल हिन्दुस्तान.

जन-जन की भाषा में करना, राज न था उनको आसान;
अंग्रेजी को लाद देश की, बेजुबान कर दी सन्तान.
भूल हमारी देखो हम सब, इसे मान बैठे निज-शान;
अपनी भाषा भूल विदेशी, भाषा का गाया गुणगान.

अंग्रेजी-घुट्टी पिलवाकर, बचपन हमने किया जवान;
आज उसी का बुरा नतीजा, भोग रहा है हिन्दुस्तान.

कहीं न कोई देश-भक्ति है, कहीं न कोई गौरव-गान;
कहीं न कोई त्याग-तपस्या, कहीं न गुरुओं का सम्मान.
फिर बतलाओ कहाँ रहेगा, देश हमारा हिन्दुस्तान?
जब हम सभी भुला बैठे हैं, "हिन्दी"-"हिन्दू"-"हिन्दुस्तान".

वेदों की भाषा संस्कृत थी, जग में था उसका सम्मान;
उसके बाद उसी की बेटी, हिन्दी ने पाया वह मान.

तुलसी ने जब मानस लिखकर, रामायण कर दी आसान;
जन-जन की भाषा में गाया, गौरव-ग्रन्थों का गुणगान.
आज़ादी के बाद भुला दी, हमने अपनी वह पहचान;
इसीलिये तो जूझ रहा है, खतरों से यह हिन्दुस्तान.

अभी समय है सोच-समझकर, मेरी सीख सभी लो मान;
"हिन्दी" "हिन्दू" बचे रहे तो, बचा रहेगा "हिन्दुस्तान".

शब्द-संकेत- महामना= मदनमोहन मालवीय, मानस=रामचरितमानस (हिन्दी)
रामायण=वाल्मीकि रामायण (संस्कृत)

Sunday, February 5, 2012

Change them all

सियासत वनाम कौमियत
     (राजनीति वनाम राष्ट्रनीति)

सियासत कौमियत में ठन गयी है , 
हमारे  बीच  ये  रस्साकसी है.

मिलाकर हाथ क्यों देते हो धोखा,
मियाँ! जब दिल-से-दिल मिलता नहीं है.

वो कहते हैं यहाँ अम्नो-अमन है,
हमें तो वह कहीं दिखता नहीं है.

यहाँ मुद्दत से खिचड़ी पक रही है,
                                                                मगर कुछ आपसे होता नहीं है.

हमेशा मार खाते जा रहे हो,
पलट कर मारना आता नहीं है.

जिसे देखो वही पीछे पड़ा है,
कोई क्योँ आपसे डरता नहीं है.

वजह क्या है जरा शिद्दत से सोचो,
अभी तक आपने सोचा नहीं है.

समझते हैं सब इसमें झूठ क्या है,
हमारी कौम में एका नहीं है.

हमें इमला रटाया जा रहा है,
असलियत कोई समझाता नहीं है.

यहाँ जयचन्द माहिल मीरजाफर,
हैं कितने यह कोई गिनता नहीं है.

ये सब हैं कौम के गद्दार इनसे,
निबटना आपको आता नहीं है.

अजब हालात ऐसे बन गये हैं,
ये बदलेंगे अभी लगता नहीं है.

लड़ाते जा रहे आपस में हमको,
हुकूमत का चलन बदला नहीं है.

बदलने की कोई तरकीब सोचो,
पके पत्तों में कुछ रक्खा नहीं है.