Friday, March 23, 2012

New years resolve

नव सम्वत्सर संकल्प

भगत सिंह सुखदेव राजगुरु की कुर्बानी याद करें,
वैसी शक्ति हमें भी दे यह माँ से हम फरियाद करें;
नव-सम्वत्सर पर सबको है पावनतम संदेश यही-
इस जीवन का एक-एक क्षण व्यर्थ न हम बर्बाद करें.

Thursday, March 22, 2012

A big question mark?

देशभक्ति बदनाम हुई तो क्या होगा?

जिस भारत माँ की माँग सदा लोहू से भरती आयी है.
उसकी बलिदानी धरती यदि बदनाम हुई तो क्या होगा?

यह वह भू है जिसके कण-कण में माँ का मधुर दुलार भरा,
तात्या टोपे, नाना साहब, मंगल पाण्डेय का प्यार भरा;
इसके ही उर में समा गयी लड़ते-लड़ते लक्ष्मी बाई,
इतिहास बनाकर चले गये चाफेकर सगे-सगे भाई.

जिनका यश अबतक गाते हैं भारत तो क्या दुनिया के कवि,
उनकी हसरतमय क़ुरबानी नाकाम हुई तो क्या होगा?

यह है बिस्मिल की कर्मभूमि जर्रा-जर्रा तूफ़ान बना,
अशफाकउल्लाह वारसी का अल्लाह यहाँ भगवान बना;
हँसते-हँसते दीवानों ने फाँसी का फन्दा चूमा था,
उनका तूफानी इंकलाब सारी दुनिया में गूँजा था.

भर दिया बसन्ती रँग जिसने रँग लिया लहू से तन जिसने,
उस भगत सिंह की गौरवता निष्काम हुई तो क्या होगा?

नेता सुभाष जिसने इसके कण-कण में लोहू मिला दिया,
अपने बारूदी नारों से अंग्रेजी शासन हिला दिया;
आज़ाद जिसे आज़ादी से नंगे शरीर रहना भाया,
जीते-जी जिसको कोई भी हथकड़ी नहीं पहना पाया.

आखिरी समय तक भारत की मिट्टी से जिनको प्यार रहा,
ऐसे वीरों की वसुन्धरा वीरान हुई तो क्या होगा?

नेहरू जिसने युग की मशाल दी जला शान्ति के शोलों से,
ये उसे बुझाना चला रहे कुछ बड़े राष्ट्र बम-गोलों से;
गान्धी जिसने गोली खाकर आखिरी समय 'हे राम!' कहा,
यह धरती है उसकी जिसने हर भला-बुरा अंजाम सहा.

कश्मीर जहाँ की हर क्यारी तुमने लोहू से सींची है,
उसकी केसर गर सरे-आम नीलाम हुई तो क्या होगा?

सीमा का लाल बहादुर जो सीमा के पार शहीद हुआ,
उसके जाने के बाद आज उसका यह देश मुरीद हुआ;
तुम एक नहीं हो सौ करोड़ से अधिक, हिमालय बन जाओ,
दुश्मन न कहीं से घुस पाये तुम निगहबान बन तन जाओ.

तुम जागो देश पुकार रहा अब समय नहीं है सोने का,
वरना यह चढती हुई सुबह यदि शाम हुई तो क्या होगा?

Wednesday, March 7, 2012

Agony of half better half

    साली बिन ससुराल
                  (होली पर विशेष)
                   
                   **छन्द**

होंठ बिना लाली, जैसे कान बिना बाली;
बिना दीप के दिवाली, ज्यों बन्दूक बिना नाली है.
फूल बिना डाली, जैसे बाग़ बिना माली;
और लोटा बिना थाली, ज्यों कव्वाली बिना ताली है;
पान बिना छाली, रोशनदान बिना जाली;
बिना बेंट के कुदाली, जैसे चाय बिना प्याली है.
ब्याह-गीत बिना गाली, जैसे खेल बिना पाली:
सूनी ऐसे ही हमारी ससुराल बिना साली है.

                    **दोहे**

हे प्रभु! साली दीजिये, बिन  साली सब सून.
साली बिन  ससुराल में, मिलता नहीं सुकून.

साली दे क्यों आपने, मुझ पर कृपा न कीन.
साली बिन  ससुराल है, ज्यों मुख नाक विहीन.

बीबी चाहे हो न हो, साली हो नमकीन.
मजा चाह का दे सके, जीजा बने जहीन.

होली पर साली बिना, होता हमें मलाल.
साली बिन फीका लगे, रंग अबीर गुलाल.

साली होती खेलते , हम होली हर साल.
वह  रँग भर-भर फेंकती, हम फेंकते गुलाल.

दिया अगर तो क्या दिया, बिन साली ससुराल.
साली देते तो तुम्हें, कहता दीन-दयाल.

बोली गोली सी लगे, होली लगे सलीब.
साली बिन ससुराल का, रँग ढँग लगे अजीब.

यूँ तो होली पर बहुत, होता है हुड़दंग.
असली होली का मजा, है साली के संग.

होली हो ली ना हुई, पर साली के संग.
घरवाली ने मल दिया, पंसारी का रँग.

क्या साली किस्मत मिली, साली मिली न एक.
घर का कूंडा हो गया, साले मिले अनेक.

साली गाली सी लगे, पर है बड़ी विचित्र.
जी! जा! कहकर मारती, देखो मेरे मित्र!!
   

Tuesday, March 6, 2012

Comments over verdict

भरे बाजार में फजीहत

भीड़ से अब लोग घबराने लगे हैं,
जंगलों का अर्थ बतलाने लगे हैं.

जो हुनर के कायदे मनहूस निकले,
ये उन्हें गिन-गिन के झुठलाने लगे हैं.

फिर भरे बाजार में कर ली फजीहत,
अब नसीहत से भी कतराने लगे हैं.

जिन्दगी के दौर में चित हो गये तो,
मौत का ही मर्सिया गाने लगे हैं.

मुतमइन होकर के जो बैठा हुआ है,
ये उसे जा-जा के समझाने लगे हैं.

'क्रान्त' इनकी नस्ल का इतिहास इतना,
कल खिले थे आज मुरझाने लगे हैं.

शब्दार्थ: मुतमइन=निश्चिन्त,आश्वस्त