Sunday, January 23, 2011

नेताजी की अस्थियों की डी.एन.ए. जाँच क्यों नहीं?

२३ जनवरी १८९७ को कटक में जन्मे सुभाष का स्वभाव बचपन से ही विद्रोही था. आई.सी.एस. परीक्षा प्रथम प्रयास में ही पास कर लेने के बावजूद ब्रिटिश सरकार की नौकरी को लात मारते हुए भारत सचिव ई.एस.मांटेग्यू को अपना त्यागपत्र सौंपकर सुभाष स्वदेश लौटे और कांग्रेस में शामिल हो गए. क्रांतिकारियों  से सहानुभूति के कारण उनकी गांधीजी से कभी नहीं पटी जिसके परिणामस्वरूप वे कई बार ब्रिटिश सरकार के कोपभाजन बने. कांग्रेस में युवा नेता के रूप में उनकी सीधी प्रतियोगिता पंडित जवाहर लाल नेहरू से थी शायद इसी कारण वे गांधीजी के विश्वासपात्र कभी भी न बन सके. गांधी जी से मनमुटाव के चलते वे कई बार जेल गए और कई बार घर पर नजरबन्द रहे. हरिपुरा और त्रिपुरी में दो दो बार उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया किन्तु गांधीजी के समर्थन से प्रत्याशी बने पट्टाभि सीतारमैया को सीधे चुनाव में हराने के बाद तो वे स्पष्ट रूप से गांधीजी की आँख की किरकिरी ही बन गए.रोज रोज की खटपट से तंग आकर सुभाष ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और फारवर्ड ब्लाक के नाम से अलग पार्टी बना ली.घर पर नजरबंदी के बावजूद भेष बदलकर वे जर्मनी के रास्ते जापान पहुंचे. हिटलर ने उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें नेताजी की उपाधि से विभूषित किया जिसके बाद वे पूरे विश्व में नेताजी के नाम से ही पुकारे जाने लगे. 

आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान हाथ में आते ही सुभाष ने ब्रिटिश साम्राज्य से सीधी टक्कर लेने का ऐलान किया.चूँकि जापान सुभाष का साथ दे रहा था अतः वे बर्मा के रास्ते भारत की सीमा में प्रविष्ट हुए और कई स्थानों पर विजय पताका फहराते हुए कोहिमा तक आ पहुंचे किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार ने नेताजी के मंसूबों पर पानी फेर दिया और दिल्ली पहुंचकर लालकिले पर विजय पताका फहराने का उनका सपना अधूरा ही रह गया.नेताजी मोर्चा बदलने की तैयारी में थे क़ि एक अप्रत्याशित दुर्घटना में उनका विमान ध्वस्त हो गया और १८ अगस्त १९४५ को ताइहोकू हवाई अड्डे से उड़ान भरते ही नेताजी को कराल काल ने अपनी गोद में समेट लिया. उनकी अस्थियाँ आज भी जापान के रेंकोजी मंदिर में सुरक्षित रखी हुई हैं जिन्हें भारत सरकार ने यहाँ लाने का कोई विचार तक न किया. आज आवश्यकता इस बात की है कि  भारत की जनता सरकार पर इस बात का दबाव डाले कि वह नेताजी की अस्थियाँ जापान से मंगाकर उनकी एकमात्र जीवित पुत्री अनीता फाफ से डी.एन.ए.टेस्ट करवाए और इस बात की पुष्टि करे कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में ही हुई थी वे अन्यत्र कहीं नहीं मरे जैसी कि अटकलें आज तक बराबर लगाई जाती रही हैं. हाँ! यदि सरकार ऐसा नहीं करती तो इस बात की भी स्वतः पुष्टि हो जाएगी कि नेताजी की मृत्यु को १९४७ में भारत और इंग्लैंड  के बीच हुए गुप्त समझौते के तहत एक रहस्य बनाकर रखा गया और समय समय पर आयोग बिठाकर जनता के पैसे का दुरूपयोग किया. पाठक  चाहें  तो  साहित्य अकादमी  या  तीन मूर्ति भवन  के  पुस्तकालय में 'स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास' नामक पुस्तक  में इससे सम्बंधित और भी कई दस्तावेज देख सकते हैं.

6 comments:

Alpana Aditya said...

thought provoking article...




siddharth and alpana

KRANT M.L.Verma said...

The mistry of Netaji's death is still prevailing
and nobody is bothered about this episode.
I had given it's through a D.N.A, test.When the
court has directed for a D.N.A. test in N.D.Tewari's case on someone's petition I hope a P.I.L.will be filed sooner or later.

Unknown said...

Justice Mukherjee had confirmed that ashes kept are not of NETA JI and he had not died in air crash but could not confirm how & where died
GUMNAMI BABA as said NETA JI was also confirmed not NETA JI but did not enquire about another baba deeply
As known to me that GUMNAMI BABA was NETA JI similar face to whom NETA JI had handed over so many secrets DOCUMENTS to bring in BHARAT but he became BRITISH SPY and these are found in his room but his teeth DNA not matched with NETA JI
NETA JI right hand of GERMANY ,now born in UP & now retired as CDA AIR FORCE living in DELHI, who was with
him at the time of air crash plan and lastly admitted NETA JI in SIBERIA JAIL by another name
He is RADHEY SHYAM DWIVEDI Phone 011-20401016

KRANT M.L.Verma said...

नेताजी की विमान दुर्घटना के समय उनके साथ होने वाले जिस व्यक्ति का उल्लेख किया है उसकी उम्र नहीं बतायी केवल फोन नम्बर दे दिया है, उसका नम्बर बताएं

Anonymous said...

When the supreme court of India can order for a DNA test of Narayan Dutt Tiwari why can't our Central Govt decide for a similar test of DNA from the blood of his only daughter who is still alive. It will clear the prevailing mistry of the HISTORY.

Anonymous said...

मित्रो!अभी हाल में गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने बयान में क्रान्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियों को जिनेवा से मँगाकर मोरवी में स्थापित करने का जो रहस्योद्घाटन किया है उससे यह उम्मीद बनती है कि शायद नरेन्द्रभाई मोदी यदि उन्हें देश का नेतृत्व करने का अवसर मिले तो वे ऐसा कर सकेंगे अत: हम थोड़ा धैर्य रखें और प्रतीक्षा करें कि वह दिन इतिहास में आये जब इस रहस्य पर से पर्दा उठ पाये....