Monday, June 6, 2011

What Gandhi wrote in 1942?

गान्धी जी  की भूल सुधार

१९६९ में गाँधी जन्म शती पर प्रकाशित बापू-कथा में उनके निजी सचिव हरिभाऊ ने गान्धी जी का एक पत्र पृष्ठ संख्या २२४ से २२७ तक दिया गया है जो संक्षेप में इस प्रकार है:

"मैं चाहता हूँ भारत में रहने वाला प्रत्येक अंग्रेज इस पत्र को पढ़े और विचार करे. सबसे पहले तो मैं आपको अपना परिचय दे दूँ. मेरी नाकिस (मिथ्या) राय के अनुसार ब्रिटिश सरकार के साथ अब तक जितना सहयोग मैंने किया है, उतना और किसी हिन्दुस्तानी ने नहीं किया होगा. विद्रोह या बगावत की प्रेरणा देने वाली कठिन परिस्थितियों में रहकर भी लगातार २९ साल तक मैंने आपके साम्राज्य की सेवा की 
है. मैंने God save the king के गीत खुद गाये और दूसरों से भी गवाये हैं. मुझे भिक्षाम देहि की राजनीति में  विश्वास  था पर व्यर्थ हुआ.मैं जान गया कि इस सरकार को सीधा करने का 
उपाय यह नहीं है.अब तो राजद्रोह ही मेरा धर्म हो गया है."  

एक जनवरी १९२५ को विजय कुमार के छद्म नाम से पंडित राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने The Revolutionary के नाम  से जो पत्र प्रकाशित किया था उसमें भी सीधे सीधे विद्रोह की बात की थी अन्तर केवल इतना था कि वह पत्र आम हिन्दुस्तानियों को सम्बोधित करके लिखा गया था अंग्रेज़ों  को नहीं.

हमारे यहाँ एक कहावत मशहूर है कि सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आये तो वह भूला नहीं कहलाता. गान्धीजी चूँकि २९ साल के बाद भूल-सुधार का नाटक करते हुए १९४२ में बागी तेवरों के साथ वापस लौटे थे अतः जनता ने उन्हें भूला हुआ मुसाफिर मानकर स्वतन्त्रता-आन्दोलन का महानायक मान लिया. काश! गान्धीजी अपनी यह भूल-सुधार २० साल पहले सन १९२२ में कर लेते तो इतने सारे तेजस्वी नवयुवक अपना बलिदान क्यों करते?

(मेरी कृति स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास से उद्धृत )

बाबा रामदेव ने एक दिन का सत्याग्रह करके २९ आदमियों के हाथ पैर तुडवा डाले उनसे मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि इस जालिम सरकार को सीधा करने का सत्याग्रह उपाय है ही नहीं. सीधा-सीधा बगावत का रास्ता अपनाइये देश की सारी पार्टियों के नेताओं को एक जुट करिये और कहिये कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलें. मुझे उम्मीद है बाबा अगर पूरी ईमानदारी और सच्चे मन से कहेंगे तो एकाध को छोड़कर  बाकी सब मान जायेंगे. उन्हें यदि आवश्यकता हो तो मैं उनका पूरा साथ दे सकता हूँ पर मैं एक बात  साफ कर दूँ- मुझे कोई राजनीतिक पद या प्रतिष्ठा बिलकुल नहीं चाहिये.  

1 comment:

रवि रतलामी said...

अन्ना हजारे जैसे ईमानदार सत्याग्रह से भी तो बड़ा इम्पैक्ट पड़ता है. नहीं?